खाऊंगा तो हाथी ही

एक बार की बात है । शब्द थे अपनी दादी के पास... और दादी बना रही थीं पूड़ी । 

बुआ ने एक पूड़ी शब्द की ओर बढ़ाई और बोलीं – खाओ... 
 शब्द : मैं नहीं खाऊँगा...
बुआ : क्यों नहीं खाओगे... 
शब्द : मुझे भूख नहीं लगी है... 
बुआ : अच्छा चिड़िया बना देती हूँ... खाओगे... 
शब्द : चिड़िया क्या खाई जाती है... 
बुआ : सचमुच की थोड़े न... आटे की... 
शब्द : आटे की क्या कोई चिड़िया होती है...  
बुआ : हाँ... होती है... खाने वाली होती है... 
शब्द : तो क्या हाथी भी होता है खाने वाला...
बुआ : हाथी भी होता है खाने वाला... 
शब्द : तो हाथी बना दो... वो खाऊँगा... 
बुआ : हाथी मैं नहीं बना पाती हूँ... 
शब्द : तो चिड़िया कैसे बना लेती हो... 
बुआ : चिड़िया बना लेती हूँ... 
शब्द : तो हाथी तो बनाना ही पड़ेगा... वरना कुछ नहीं खाऊँगा... 

अब बुआ से लेकर दादी, मम्मी सब पड़ गए चक्कर में । शब्द ने ठान ली जिद । खाऊँगा तो हाथी ही खाऊँगा ।  

 सबने कोशिश की बनाने की लेकिन बना नहीं पा रहा था कोई भी । 

 किसी से पूछ नहीं बनती तो किसी से उसकी सूड... 

 किसी के बनाए पैर नहीं समझ आते शब्द को तो कोई हाथी की जगह कुछ और ही बना देता था। 

 ऐसे हाथी बनाते-बनाते सब गए थक लेकिन हाथी किसी से न बना । 

 अब शब्द लगे रोने । खूब रोने । 

 ‘...खाऊँगा तो हाथी ही...’ शब्द ने पकड़ ली पक्की वाली जिद । 

 शब्द की रोने की आवाज़ सुनकर बाबा आ गए अंदर । जब पता चला कि शब्द के लिए कोई भी आटे से हाथी नहीं बना पा रहा है तो वह मुस्कुराए । उन्हें हाथी बनाना आता था । उन्होंने आटा लिया और झट से दो हाथी बना दिए । शब्द थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराए। 

 दादी ने हाथी को कढ़ाई में डाल के तल दिया तो बुआ ने प्लेट में दोनों हाथी रखकर शब्द को दिए । 

बोलीं : खाओ... अब खाओ हाथी... 

...और शब्द को देखकर थोड़ा-सा मुस्कुरा दीं । 

शब्द फिर बिफर पड़े । 

बोले : क्या हाथी खाया जाता है... मैं नहीं खाऊँगा इसे बिलकुल... मैम बताती हैं एनीमल फ्रेंड होते हैं... मैं तो बिलकुल नहीं खाऊँगा... 

...और धीरे से मुस्कुराए... 
अब सबने पीट लिया अपना सिर । 

शब्द भाग गए बाहर । खेलने अपने दोस्तों के साथ । 

बेचारे हाथी आज बाल-बाल बच गए...  
सुनील मानव

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