ये पेंटिंग कौन बनाता है पापा
एक दिन की बात है । शब्द अपने मम्मा-पापा के साथ बाइक से अपने बाबा के पास जा रहे थे । शब्द बाइक पर आगे बैठते हैं और खूब बातें करते हैं ।
...तो शब्द कर रहे थे बातें...
...खूब सारी बातें...
पहले तो वह गाना गाते रहे... कान्हा वाला... फिर वन... टू... थ्री... कहना शुरू कर दीं...
घर फिर भी नहीं आया ।
अब शब्द अपने गले में पड़ी दूरबीन से दूर रास्ते को देखने लगे...
एक तरफ से देखते तो रास्ता दूर दिखता था...
बहुत दूर...
और दूसरी तरफ से देखते तो बिलकुल पास... एकदम यहीं पर...
और भी न जाने क्या-क्या बातें...
ऐसे ही बाइक गाँव की ओर वाले रास्ते पर मुड गई...
अब चारों रास्ते के दोनों ओर थे खेत...
शब्द शुरू हो गए... ये क्या है... ये क्या है...
पापा बताते जाते...
ये सरसों है...
सरसों क्या होती है...
...जिसमें से तेल निकलता है... फिर उससे खाना बनता है...
अच्छा ये क्या है...
फिर ये क्या है...
फिर एकदम से...
अच्छा पापा ये स्काई में क्या है...
बादल हैं...
हमें तो पेंटिंग लगती है...
हाँ ! पेंटिंग ही तो है...
कौन बनाता है ये पेंटिंग...
हवा बनाती है...
हवा कैसे बना सकती है... हमें तो दिखती ही नहीं है... क्या उसके पास भी ब्रस और कलर होते हैं...
और नहीं तो क्या... उसके पास बड़े-बड़े ब्रस और कलर होते हैं...
पापा बीच-बीच में शब्द के बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिस कर जाते ।
...ऐसे ही करते-करते शब्द पहुँच जाते हैं अपने बाबा के पास । फिर क्या था । बाबा को सुनाने लगते हैं कहानी । स्काई में हवा रहती है... वो खूब अच्छी पेंटिंग बना लेती है... लेकिन वो हमको दिखती क्यों नहीं...
सब शब्द के प्रश्नों से डरने लगते हैं । शब्द खूब खुश होते हैं...
सुनील मानव
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