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गांव का सूनापन

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।। 01 ।। एक अजीब सी संवादहीनता है गांव में । कहीं सामूहिक हुई मौतों से उत्पन्न भयाक्रांत सन्नाटा । यह शून्यता वर्षों पहले महसूस हुई थी, जब गांव में एक बीमारी के चलते कई मौतें हुई थीं । बचपने में वह विस्मृत हो गईं । आज गांव के सूनेपन ने उस समय की याद दिला दी ।   गोरू घर नहीं लौट रहे हैं । बचे ही नहीं । आसमान में एकाध पखेरू भर हैं वापस जाने भर को । वापस आने के लिए इंतजार का कोई आलंबन भी तो होना चाहिए । सब कुछ शांत है । सही कहा ‘वापस आना बड़ा मुश्किल है ।’ पांच–सात घंटे हुए हैं गांव आए हुए । सोने के अलावा बापू के साथ कुछ देर उनकी दुकान पर जा बैठा । एक अजीब सी उदासी है उनकी आंखों में । पूरे जीवन की जिम्मेवारियों के बाद के अलगाव से उत्पन्न चिंगारियों सी ।  अभी कुछ एक लोग निकले हैं मोटरसाइकिल से । एकदम मेरे सामने से । पड़ोस के गांव से लौटे रहे हैं शराब पीकर । मुझे इनके इस नशे का आलंबन दिखाई दे रहा है खामोश उदासी के बीच । एक साइकिल सवार भी निकला है सामने से । चुपचाप अपनी राह पर । मेरी धड़कने तेज़ हो उठी हैं । रक्तचाप अपनी गति बदल रहा है । कोई संवाद नहीं । जैसे कोई जानता ही न हो और इन्हें मैं