इस घर में आप भी रहोगे न पापा

एक दिन की बात है । तब शब्द स्कूल नहीं जाया करते थे लेकिन पापा रोज स्कूल जाते थे । एक दिन पापा जब स्कूल से वापस आए तो देखा शब्द ने कुछ बनाया है । बेड के चार गद्दों, तकियों से । 

 एक मेज को खड़ी करके उसके इधर-उधर से गद्दे लगाए गए थे । एक ओर अपनी साइकिल ‘इबनेबतूता’ को भी खड़ी कर लिया था । उसके अंदर शब्द ने मम्मा के किचन से कुछ बर्तन भी रख लिए थे । साथ ही अपनी कुर्सी और मेज भी । 

शब्द के इस क्रियेशन को देख पापा मुस्कुराए । 

उन्होंने चेयर पर बैठ अपने जूते निकालते हुए पूछा – ये क्या बना है शब्द... 

‘घर बनाया है...’ – शब्द तपाक से बोल पड़े । 

‘इस घर में आप भी रहोगे न पापा...’ शब्द पापा से मनुहार करते हुए बोले । 

पापा ने खुश होकर कहा – ‘हाँ क्यों नहीं ! मैं तो जरूर रहूँगा इसमें...’ 

फिर क्या था । पापा, मम्मा को साथ लेकर जा पहुंचे शब्द के इस घर में...  

शब्द बहुत खुश हुए । वह बताने लगे – 

‘ये आपका बेडरूम है... यहाँ हम सब लेटेंगे... 
इस कमरे में आप अपनी किताबें और कंप्यूटर रख लेना...
ये मम्मा का किचन है... इसमें हम खाना बनाएंगे... 

‘... आज क्या बनाया है शब्द... मुझे तो बड़ी भूख लगी है...’ पापा ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा । 
‘ये है खाना...’ 

...और शब्द ने एक प्लेट में कुछ ब्लॉक्स और अक्षरों को खाने के रूप में पापा को दे दिया । 

‘यमी है...’ पापा ने खाने के चटकारे लेते हुए शब्द से कहा । 

फिर क्या था । शब्द ने झट से सारा खाना गड्ड-मड्ड कर डाला । 

...और देखते ही देखते पूरा घर गिराकर शरमा कर भाग गए अपने कमरे में । 

शब्द ऐसे खेल रोज ही खेलते हैं... और आप...  
सुनील मानव

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