भूख लगी हम चब्बइं का
शब्द जैसे-जैसे बड़े होते जा रहे हैं, उन्हें कहानियाँ सुनने की लत-सी लगने लगी है । मम्मा-पापा तो कभी-कभी इस बात पर डाँट तक देते हैं । फिर क्या – बैठ जाते हैं मुँह फुलाकर ।
इस बार सर्दियों की छुट्टी में जब गाँव गए तो पकड़ लिया दादी को । ...और दादी के पास तो मानो कहानियों का खजाना ही है । शब्द की तो जैसे लाटरी ही लग गई ।
शाम हुई नहीं कि शब्द जा घुसे दादी की रजाई में । एक मीठा चुम्मा इधर से... एक मीठा चुम्मा उधर से... बस यही बहुत होता कहानी सुनने के लिए...
आज दादी के पिटारे से एक चिड़िया की कहानी निकल पड़ी ।
दादी ने कहानी सुनानी शुरू की -
‘बात है बहुत पुरानी...
शब्द : कितनी पुरानी ?
शब्द के प्रश्न तो मानो शांत बैठ ही नहीं सकते हैं ।
दादी झल्ला पड़ीं – हमें नहीं पता... सीधे-साधे कहानी सुननी हो तो सुनो... नहीं तो हम नहीं सुना पाएंगे... हाँ नहीं तो क्या...
शब्द : अच्छा-अच्छा सुनाओ-सुनाओ...
दादी : तो बात है बहुत पुरानी । एक थी चिड़िया । नाम था उसका चिर्रु...
एक दिन की बात है । चिर्रु कहीं से एक दाना लेकर आई थी । चने का आधा टुकड़ा । एकदम छिला हुआ । इसे कहते हैं ‘दिउला’, बोलें तो चने की दाल ।
... तो चिर्रु ‘दिउला’ लेकर आई और एक ‘खूँटे’ पर जा बैठी ।
शब्द : ये खूँटा क्या होता है ?
दादी : (थोड़ा ज़ोर से) अरे वही जिसमें घर के जानवरों को बाँधा जाता है ।
(शब्द दादी से चिपकाकर कहानी सुनने लगते हैं ।)
इसके बाद चिर्रु सोचने लगी कि हाथ-पैर मुँह साफ कर ले, फिर खाया जाए । वह ‘दिउला’ खूँटे पर रखकर मुँह धोने लगती है । जब वह वापस खूँटे के पास आती है तो देखती है कि उसका ‘दिउला’ खूँटे के अंदर चला गया है, क्योंकि खूँटे में एक दराज थी।
अब चिर्रु बड़ी परेशान हो गई । उसे लगी थी बड़ी ज़ोर की भूख । वह बड़े प्यार से खूँटे से गाकर कहने लगी –
खूँटा-खूँटा दिउला दइ दे
खूँटा हमका भूख लगी
भूख लगी हम चब्बइं का ?
खूँटा कुछ बोलता नहीं है । चिर्रु होने लगती है परेशान । उसकी भूख बढ़ने लगती है । अब परेशान होकर वह जाती है बढ़ई के पास । वही जो लकड़ी से मेज, कुर्सी आदि बनाता है ।
चिर्रु उससे मदद मांगती है । वह कहती है –
बढ़ई-बढ़ई खूँटा चीरु
खूँटा दिउला देति नाइं
भूख लगी हम चब्बइं का ?
बढ़ई चिर्रु की बात सुनकर उसकी मज़ाक बनाता है । वह उस पर हँसने लगता है और खूँटा चीरने से मना कर देता है – ‘बड़ी आईं... मैं क्यों खूँटा चीरूँ... ?
चिर्रु बढ़ई की बात सुनकर निराश हो गई । अब वह राजा के पास जाती है ।
...और राजा से गुहार लगाती है –
राजा-राजा बढ़इक डाँटु
बढ़ई खूँटा चीत्ति नाइं
खूँटा दिउला देति नाइं
भूख लगी हम चब्बइं का ?
उस समय राजा था किसी बात पर बहुत परेशान । उसने चिर्रु को दिया डाँट । ‘भागो यहाँ से...’
चिर्रु राजा के पास से निराश होकर चल देती है । राजा के घर के बाहर उसे राजा का हाथी दिखता है । वह हाथी से अपनी बात कहने लगती है –
हाथी-हाथी राजइ गिराउ
राजा बढ़इक डाँटति नाइं
बढ़ई खूँटा चीत्ति नाइं
खूँटा दिउला देति नाइं
भूख लगी हम चब्बइं का ?
हाथी भी उसकी कोई मदद नहीं करता है । उल्टे वह चिर्रु की मज़ाक बनाता है । चिर्रु उदास होकर वहाँ से चल देती है ।
इसके बाद चिर्रु अपनी फ़रियाद लेकर डंडे के पास, आग के पास, पानी के पास, कुत्ते के पास जाती है । कोई उसकी बात नहीं सुनता है । सब उसका मज़ाक बनाते हैं ।
चिर्रु थक जाती है । वह खूँटे के पास जाकर बैठ जाती है । भूख से परेशान होकर रोने लगती है । वहीं पर एक चींटी का घर होता है । चिर्रु को रोते देख वह उसके पास आ जाती है और उससे उसके रोने का कारण पूछती है । चिर्रु उसे सब बता देती है।
चिर्रु की बात सुनकर चींटी को आ जाता है गुस्सा । वह चिर्रु को साथ लेकर चल देती है समुद्र के पास । चींटी गुस्से में ज़ोर से चिल्लाती है –
समुदा-समुदा आग बुझाउ
नाहींत हम पी जइहीं तुमइं
चींटी के गुस्से से समुद्र डर जाता है । वह तुरंत आग बुझाने के लिए तैयार हो जाता है ।
समुद्र से आग डर जाती है । वह कहती है – ‘मुझे क्यों बुझाओगे... मैं अभी डंडे को जला देती हूँ...’ और आग डंडे को जलाने के लिए भाग पड़ती है । चिर्रु और समुद्र उसके साथ भागते हैं ।
डंडा जब आग को, उसके पीछे समुद्र, चींटी और चिर्रु को अपनी ओर आते देखता है तो डर जाता है...
वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगता है – ‘मुझे क्यों जलाओगी... मैं अभी कुत्ते को मारता हूँ...’
इससे कुत्ता मारे डर के कांपने लगता है ।
वह हाथ जोड़कर बोलता है – ‘मुझे मत मारो मैं अभी हाथी को भौंक कर डराता हूँ...’ और कुत्ता हाथी पर ज़ोर-ज़ोर से भौकने लगा । यह देखा सब हँसने लगते हैं । चिर्रु को मज़ा आ रहा था । चींटी की भौहें अब भी तनी हुई थीं ।
हाथी दौड़ा-दौड़ा राजा के पास जाता है । वह राजा से बोलता है -
राजा-राजा बढ़इक डाँटु
बढ़ई खूँटा चीत्ति नाइं
खूँटा दिइउला देति नाइं
भूख लगी चिर्रु चब्बइ का ?
हाथी ने कहा – राजा ऐसा नहीं करोगे तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से गिरा दूंगा ।
राजा डर जाता है । वह बढ़ई को बुलवाता है ।
बढ़ई डरता हुआ राजा के पास आता है । राजा डांटता हुआ बढ़ई से कहता है -
बढ़ई-बढ़ई खूँटा चीरु
खूँटा दिइउला देति नाइं
भूख लगी चिर्रु चब्बइ का ?
बढ़ई मारे डर के कांपने लगता है । वह दौड़ा-दौड़ा खूँटे के पास जाता है और अपनी कुल्हाड़ी से खूँटे को चीर देता है ।
खूँटा चिरते ही ‘दिइउला’ चिर्रु के सामने आ जाता है । चिर्रु की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है । सब खुश हो जाते हैं चिर्रु को खुश देखकर ।
अब चिर्रु सोच में पड जाती है । ‘दिइउला’ एक है और खाने वाले बहुत से ।
चिर्रु सबको दावत देती है ।
फिर क्या था । चिर्रु के साथ-साथ बढ़ई, राजा, हाथी, कुत्ता, डंडा, आग, समुद्र और चिर्रु की पक्की वाली दोस्त चींटी... सब मिलकर ‘दिइउला’ की दावत बड़े मौज में उड़ाते हैं ।
दादी ने पूरे रौ में कहानी सुना डाली । शब्द ने इससे पहले इतनी बड़ी कहानी सुनी नहीं थी । दादी ने जब शब्द को पुकारा, तब तक शब्द दादी से छिपाता हुआ सो चुका था ।
(एक लोक कथा पर आधारित,
जो शब्द की मातृ भाषा ‘कन्नौजी’
में भी मिलती है ...)
सुनील मानव
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