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Showing posts from April, 2016

बच्चूलाल

जो भी बच्चूलाल के बनाए हुए बर्तनों को देखता बस देखता ही रह जाता और उन्हें खरीदने के मोह से अपने को बचा नहीं पाता था। ऐसा होता भी क्यों ना! . . . चूँकि गाँव में और भी कई लोग बर्तन बनाते थे लेकिन काम के प्रति जो लगन और एकनिष्ठता बच्चूलाल के काम में दिखाई पड़ती थी वह औरों में देख पाना जरा मुश्किल ही था। किसी ने उनको कभी खाली बैठे नहीं देखा था। बस वे इसी में लगे रहते थे कि किस प्रकार उनके बर्तनों में और भी सुघड़ता और कसाव आ जाए। रात से भीग रही मिट्टी के गारे को गलियाना  और गलियाई जा चुकी मिट्टी का ठेर बनाकर उसे बार-बार एक आधे चांद की आकृति के लोहे के हसिए से महीन से महीन बनाने में ही उनकी सुबह की पूजा का आरंभ होता था। सुबह तड़के ही वह इस काम में लग जाते थे। दो-तीन घण्टे तक मिट्टी बनाने के बाद ही कहीं जाकर वह चाय पीते थे और रात की रखी हुई दो रोटियां, जो बेलामती सरसों के तेल और लहसुन-प्याज के नमक से चुपड़ कर देती थीं, भी खाते थे। इस तरह सुबह के नाश्ते के बाद आरंभ होता था उनका बर्तन बनाने का असली काम। सबसे पहले वह चाक को छूकर अपने माथे से लगाते, हाथ जोड़कर मन ही मनकुछ बुदबुदाते और फिर चाक घ

खानबन्धु की बाल कविताओं के वैश्विक आयाम

आज के दौर में भी जब हम बालसाहित्य की बात करते हैं तो हमारे मनोमस्तिष्क में वह बाल छवि अनायास ही कौतूहल मचाने लगती है, जिससे हम निकलकर आए हैं अथवा जिसके संग-साथ हम रोज ही अपने बचपन को महसूस करते हैं। बच्चों की मासूमियत, उनकी संवेदना, उनके मनोभाव, उनके सहज से तर्क और प्रश्न हमें कभी-कभी निरुत्तर से कर देते हैं। सुभद्रा जी की कविता की ‘बिटिया’ ज्यों ही अपने नन्हें हाथों में ली हुई मिट्टी को माँ की ओर खाने को बढ़ाती है, माँ का हृदय अह्लाद से भर उठता है। सुनील मानव की बाल लघुकथा ‘मैंने शू-शू कर ली’ एवं ‘मम्मी थक जाती हैं ना दादा’ का नन्हा नायक ‘शिखर’ अपने मासूमियत से भरे तर्कों से बड़े और गंभीर मस्तिष्कों को निरुत्तर कर देता है। कहने का तात्पर्य यह कि बालमन में तर्क-वितर्क नहीं केवल कोमल भाव निहित होते हैं। उन पर वातावरण का प्रभाव उनके बढ़ते जाने के साथ-साथ ही पड़ने लगता है। आज का दौर बाज़ारवाद का दौर है। हमारे जीवन के समस्त पहलुओं को बाजार अपनी चपेट में लेता जा रहा है। हमारे जीवन की प्रत्येक आवश्यकता का निर्धारण बाजार ही कर रहा है। यहाँ तक कि बच्चों की सुकुमार संवेदना को भी ग्रहण लग रह