ये खिलौने बाजार में नहीं मिलते

शब्द फाइव इयर का हो गया है । वह अपने मम्मी-पापा के साथ शहर में रहता है । वहीं एक स्कूल में पढ़ता भी है । यहाँ उसके कई अच्छे दोस्त बन गए हैं । अक्षत भइया, गोंटू, नमो भइया, वीर तो शब्द के मोहल्ले में ही रहते हैं ।  

...इसके अलावा मायरा, नियति, आराध्या, राज, शुभ, अनुष्का, दानिश और इसनेहा मैम उसके स्कूल के बेस्ट फ्रेंड हैं । 

शब्द इन सबके साथ खूब खेलता है । 

स्कूल के फ्रेन्डों के साथ वह स्कूल में मैम के सामने खेलता है । झूला झूलना, पेंसिल से खेलना, पकड़म-पकड़ाई...

कभी-कभी वह इन दोस्तों के साथ अपनी वैन में भी खेलता है... 

...लेकिन शब्द का असली खेल तो मोहल्ले वाले दोस्तों के साथ होता है । इन सबके पास खूब सारे खिलौने हैं । वह सब टीवी के कार्टून वाले खेल खेलते हैं...  

शब्द के पास खूब सारी गेंदें हैं... सब उसके साथ गेंदों से खेलते हैं...

गोंटू के पास कई सारे टैड़ी हैं... सब उसके साथ टैड़ी से खेलते हैं... 

वीर के पास बहुत बढ़िया साइकिल है... सबने अपने पापा से साइकिल मंगाईं... अब सब साइकिल से भी खेलते हैं... 

नमो भइया के पास एक बंदूक है । उसमें से कई तरह की आवाजें निकलती हैं... वह सबको चलाने को देता है । सबने अलग-अलग तरह की बंदूकें ले ली हैं... कुछ की बंदूकों से तो कलर भी निकलता है... अब सब उन बंदूकों से भी तरह-तरह के खेल खेलते हैं... 

अक्षत भइया तो शब्द का सबसे फ़ेबरेट फ्रेंड है । उसके पास सुपरमैन वाला सूट है । शब्द ने अपने लिए स्पाइडरमैन वाला सूट मंगाया है । उनके पास कुछ मास्क भी हैं... 

अब सब सुपर हीरोज वाले खेल भी खेलते हैं...  

शाम को सबकी धमा चौकड़ी मचती है तो सब कहते हैं – 

...ये बच्चे इतने खेल लाते कहाँ से हैं... शैतान कहीं के... 

फिर सब इनको डांटते रहते हैं । बच्चे किसी पर ध्यान नहीं देते । वह रोज नए खेल खेलते हैं । 

एक दिन की बात है । शब्द के स्कूल में कई दिन की छुट्टी हो गईं । वह अपनी मम्मा के साथ गाँव आ गया । 

गाँव में उसे बहुत अच्छा लगता है । यहाँ उसको प्यार करने वाले बहुत लोग हैं । बाबा हैं, दादी हैं, बुआ हैं, चाचा हैं, चाची हैं, मौसी, मामा, नाना, नानी हैं... 

शब्द को गाँव बहुत अच्छा लगता है... यहाँ उसको स्कूल का कोई काम नहीं करना होता है । यहाँ वह जो चाहें कर सकता है । यहाँ उसे कोई भी नहीं डाटता है । यहाँ उसके खेलने के लिए खूब सारी जगह है । 

वह कभी मंदिर के चबूतरे पर खेलता है, कभी बड़े से आँगन में खेलता है, कभी बाग में चला जाता है तो कभी दूसरे खेतो में... शब्द को इसलिए गाँव में बहुत अच्छा लगता है... 

यहाँ गाँव में भी शब्द के कई दोस्त बन गए हैं । 

चींटा, छोटा चींटा, कउसिल्लिया, नइना, बिंदिया, निधिया और दरपनुआ... 

इनके पास खूब सारे खिलौने नहीं हैं... जैसे शब्द और उसके शहर वाले दोस्तों के पास हैं... 

...लेकिन सबने बहुत सारे खिलौने बना लिए हैं... शब्द को इनके खिलौने अधिक अच्छे लगने लगे हैं... 

दरपनुआ के पापा ने उसको टूटी चप्पल के पहियों से एक खिलौना बना दिया है । दरपनुआ उसे ‘टिकटरु’ कहता है । कुछ बच्चे इसे ‘गड़गड़ा’ भी कहते हैं । ये शब्द को जब अपना ‘गड़गड़ा’ चलाने को देता है तो शब्द को बहुत अच्छा लगता है । वह अपने सभी खिलौने उन बच्चों को देने के लिए तैयार हो जाता है इसके लिए... 

कउसिल्लिया, नइना, बिंदिया, निधिया मिलकर घर-घर खेलते हैं । वह मंदिर के सामने वाले मैदान में, पीपल के नीचे जो धूल है, उसमें धूल से घर बनाते हैं । घर में कपड़े के गुड्डे-गुड़िए के खेल खेले जाते हैं । 

शब्द को इनके साथ खेलने में बड़ा मज़ा आता है । चींटा ने उसको मिट्टी के कुछ दिए गिफ्ट किए हैं । शब्द उनमें मिट्टी भरकर तरह-तरह की चीजें बनाता है... 

हितेशा के साथ टॉफी के डिब्बे में वह मिट्टी का केक बनाता है । सभी बच्चे मिलकर गुड्डे का हैपी बड्डे वाला केक काटते हैं...   

गाँव में रहते हुए शब्द इन बच्चों के साथ न जाने कितने खेल खेलता है लेकिन उसे किसी भी खिलौने की जरूरत नहीं पड़ती । बुआ कहती हैं – लो इससे खेलो... लेकिन शब्द को अब इनसे खेलना अच्छा नहीं लगता है । 

स्कूल खुला तो शब्द वापस शहर आ गया । 

उसने शहर के दोस्तों को कुछ खिलौने दिखाए । ये उसे गाँव के दोस्तों ने दिए थे । 

दरपनुआ ने गड़गड़ा दिया था...

कउसिल्लिया ने उसे एक कपड़े का गुड्डा दिया था...
चींटा ने कुछ मिट्टी के दिए दिए थे... 

निधिया ने पत्ते से बनी हुई एक पपीरी दी थी... 

अब शब्द के पास जो खिलौने हैं, वह उसके किसी भी दोस्त के पास नही हैं... 

...और सबसे मजे की बात कि ये खिलौने बाजार में भी नहीं मिलते हैं...  

सभी शब्द के इन खिलौनों को बार-बार छूकर देखते हैं । गोंटू तो पपीरी बजाने ही लगता है... 

सब कोई शब्द के इन खिलौनों और शब्द के बताए खेलों को खेलना चाहता है... लेकिन यहाँ जब यह बच्चे मिट्टी में इन खिलौनों से खेलते हैं तो सभी की मम्मियाँ डांटती है... सभी बच्चे बड़े कन्फ्यूज हैं... 

...उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि ये खेल खेलने पर उनकी डाँट क्यों पड़ रही है...   

सुनील मानव

Comments

Popular posts from this blog

आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आंचल

भक्तिकाव्य के विरल कवि ‘नंददास’

चुप्पियों में खोते संवाद : माती की स्मृतियों से जूझता मन