सुई लगा दूंगा

शब्द के बाबा डॉक्टर हैं । शब्द उन्हें रोज ही लोगों को दवाई देते देखते हैं । जब बाबा दुकान पर चले जाते हैं तब वह उनकी सीट पर जाकर बैठ जाता है और उनकी नकल करने लगता है । 

पहले वह बाबा का चश्मा अपनी आँखों पर लगाता है । फिर आला गले में डालता है । इसके बाद एक कॉपी पर कुछ लिखने लगता है । सब लोग उसे देखते रहते हैं । 

 फिर कुछ मरीज़ आ जाते हैं । दादी... बुआ आदि...  

 दादी – डॉक्टर साहब मुझे बुखार है...

 बुआ – डॉक्टर साहब मुझे खांसी आ रही है...
 शब्द – अच्छा... 

 ...फिर शब्द दोनों मरीजों को पहले आला लगाकर देखते हैं ... 

बारी-बारी से सभी मरीजों की नब्ज़ देखते हैं ... 

इसके बाद कागज की दवाई देते हैं और कहते हैं – गुनगुने पानी से खाना ...

 फिर जब मरीज पैसों के लिए पूछते हैं तो वह उनसे कागज के ही पैसे लेकर भाग जाते हैं । 

 बाबा जब दुकान से वापस घर आते हैं तो शब्द उनकी दवाइयों वाला झोला चारपाई पर उलट देते हैं और उसमें से उनका आला निकालकर अपने कान में लगा लेते हैं । इसके बाद फिर से शुरू हो जाता है घर के सभी लोगों का चेकअप । ऐसा करने से या किसी अन्य बात पर कोई शब्द को डांटना चाहता है तो शब्द धमकी देने लगते हैं - अभी सुई लगा दूँगा... 

सब डर जाते हैं... इस पर शब्द को बड़ा मज़ा आता है...

वह रोज ही सबको डॉक्टर–डॉक्टर खेलने के लिए मनाता है... 

एक दिन बुआ को वास्तव में बुखार आ गया । उसने बुआ को कागज की गोली दी । बुआ ने गोली खा ली... बुखार फिर भी न उतरा... 
घर के सब लोग बाहर थे । बुआ अकेली लेटी थीं । शब्द को बुआ की चिंता थी... 
वह बाबा की दुकान से एक इंजेक्शन ले आया । जब तक बुआ को पता चलता, सुई उनकी बांह में लग चुकी थी... 

इस पर बुआ को ज़ोर से गुस्सा आ गया... बुआ ने लगा दिया एक चांटा...  

शब्द लगे रोने । तब बुआ को बुरा लगा । बुआ चुपाने लगीं शब्द को । 

तब शब्द बोले – बाबा जब सुई लगाते हैं तो उनको कोई नहीं मारता है, हमें क्यों मारा... मैं तो आपका इलाज कर रहा था... और मुँह बनाकर एक ओर बैठ गए...

सुनील मानव

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