सबीहा आंटी वाली कहानी

शब्द रोज वाली जिद फिर करने लगे । पापा के गले में गोफा डाले हुए कहानी सुनाने की मनुहार...

काफी देर पोटने-पाटने पर पापा तैयार हुए...

...और शब्द को टालने के प्रयास से लगे वही पुरानी कहानी सुनाने... 

‘...बहुत दिनों की बात है...’

शब्द समझ गए कुछ-कुछ, लेकिन अभी चुप रहे...

‘...एक गाँव में एक राजा और एक रानी रहते थे...’

अब शब्द से न रहा गया । पापा की गोद में चढ़ते हुए उनके लिप्स पर फिंगर रख दी । 

‘...अब नहीं... बिलकुल नहीं... ये वाली कहानी बिलकुल नहीं सुननी है...

...एक राजा वाली नहीं सुनाना...

...एक रानी वाली भी नहीं सुनाना...’ 

‘...फिर कौन-सी सुनाऊँ... ’ पापा थोड़ा झुँझलाते हुए बोले । 

‘...कोई भी सुना दो... आपको तो बहुत सारी कहानियाँ आती हैं... इतनी सारी किताबें पढ़ते हो... कोई भी सुना दो भाई मेरे... 

...मून वाली...
...टाइगर वाली...
...जंगल वाली... 
...साइकिल वाली... 
...सन वाली...’ 

पापा सोचने लगते हैं ।

 ‘...कौन-सी सुनाऊँ... कौन सी सुनाऊँ...’

शब्द : अच्छा वो वाली सुना दो...
पापा : कौन वाली... 
शब्द : सबीहा वाली... जो आंटी बम में फ्लावर लगाती थीं... 

पापा को ‘साइकिल’ की एक कहानी याद हो आई... । वह शब्द को कई बार सुना चुके थे ये... 

इस कहानी को सुनने के बाद शब्द कई खाली पड़े डिब्बों में घास के टुकड़े, पौधों की पत्तियां, तिनके और न जाने क्या-क्या रोप चुके थे... 

शब्द को ऐसा करते देख मम्मा पूछतीं... 

‘क्या शैतानी कर रहे हो शब्द... दिन भर गंदगी करते रहते हो... ’

शब्द अपने काम में मग्न बड़े ही गंभीर होकर उत्तर देते – ‘प्यार के पेड़ लगा रहा हूँ... पापा ने कहानी सुनाई थी... वही... जब ये बड़े हो जाएंगे तब सभी प्यार करने लगेंगे...’ 

इस पर मम्मा के पास कोई उत्तर नहीं होता । वह अपने जिगर के टुकड़े को वैसा करते हुए दूर से निहारती रहतीं और बाद में मुझे बता-बताकर खुश होतीं... 

पापा सोच में डूबे थे । शब्द ने झिझोड़कर फिर कहानी सुनाने के लिए कहा । 

...और पापा शब्द को पेट पर लिटाकर एक बार फिर से सबीहा आंटी वाली कहानी सुनाने लगे... 

सुनील मानव

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