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Showing posts from October, 2016

नीलगाय पर तीन कविताएँ

नीलगाय बचपन में पहली बार सुना था उसके बारे में सुना था कि जंगली होती हैं वह गाय भी और जंगली भी एक साथ दोनों यह एक स्वप्न था सच्चाई उन्हें जंगली अधिक घोषित करती है यह मांसाहारे नहीं होती अर्थात् मलेच्छ नहीं कहलाती शाकाहारी होती है एकदम सनातनी शुद्ध आनाज ही इनका आहार है समय के साथ इन्होंने अपने को बदला भी है साहित्य में जैसे जैसे बदलते गए नायक ठीक वैसे वैसे ही बदलती गईं यह भी यह किसी व्यक्ति पर जानलेवा हमला नहीं करतीं लेकिन जान लेना इनकी फितरत है दिखती गाय जैसी हैं लेकिन काम हमेशा शेर का करती हैं शेर से भी दो हाथ आगे बढ़कर इनके जादू से ढेर हो जाते हैं कई कई जन एक साथ वास्तव में नीलगाय ठाकुर नहीं होती हैं वह राय साहब होती हैं नीलगाय-१ नीलगाय कभी भागती नहीं बस ओझल हो जाती हैं हमारी आंखों से पूस की ठण्डी रात में हल्कू को सोया जानकर निकल आती हैं अपनी दो गुनी शक्ति के साथ और रौंदने लगती हैं हल्कू की आत्मा को जो ठिठुर रही है पूस की रात में. . . जब जब आती है पूस की एक रात नीलगाय भी वापस आती हैं और ज्यादा भीड के साथ और भी ज्यादा सयानी होकर नीलगाय-२ नीलग

मकसूद मियां : सुनील मानव

ईशा की नमाज़ पढ़कर मकसूद मियां बाहर आए तो बाजपेई जी बरोठे में ही बैठे मिले। बोले – ‘चतुर्वेदी जी नमाज़ पढ़नी तो छोड़नी पड़ेगी . . . ’ मकसूद मियां के पोपले गालों पर चमक आ गई – ‘मियां बाजपेई . . . अब यह नमाज़ तो जनाजे तक साथ रहेगी . . . ’ एक ओर रखा हुक्का निकाल कर पास में ही बैठकर गुड़गुड़ाने लगे। दो मिनट तक कोई नहीं बोला। ‘. . . प्रचारक जी आए थे आज . . . कल फिर आएंगे . . . ’ बाजपेई जी ने चुप्पी तोड़ी। ‘. . . हाँ हाँ क्यों नहीं . . . हम पहुँच जाएंगे वक्त पर . . .’ बाजपेई जी उठकर जाने लगे । ‘राम राम पंडित जी . . .’ ‘राम राम मियां बाजपेई . . . . और मियाँ . . .  मिसरा जी, मनकू चौधरी, रामलाल यादव, सरपंच जी सबको बुला लेना . . . हमारी हिम्मत बनी रहेगी . . . सुना है रायपुर के मौलाना साहब फतवा सुनाने की सोच रहे हैं . . .’ ‘. . . उनकी तो . . . ’ बजपेई जी बहुत कुछ कहते-कहते रुक गए – ‘आप हम पर भरोसा रखिए। अब तो आप वापस अपने घर में शामिल होने जा रहे हैं . . .’ दोनों ने एक-दूसरे की ओर थरथराए से होंठों और मुस्कुराई सी आँखों से निहारा। मकसूद मियां पंचनमाजी मुसलमान थे। इस गाँव में अकेले भी। पुर