नीलगाय पर तीन कविताएँ
नीलगाय बचपन में पहली बार सुना था उसके बारे में सुना था कि जंगली होती हैं वह गाय भी और जंगली भी एक साथ दोनों यह एक स्वप्न था सच्चाई उन्हें जंगली अधिक घोषित करती है यह मांसाहारे नहीं होती अर्थात् मलेच्छ नहीं कहलाती शाकाहारी होती है एकदम सनातनी शुद्ध आनाज ही इनका आहार है समय के साथ इन्होंने अपने को बदला भी है साहित्य में जैसे जैसे बदलते गए नायक ठीक वैसे वैसे ही बदलती गईं यह भी यह किसी व्यक्ति पर जानलेवा हमला नहीं करतीं लेकिन जान लेना इनकी फितरत है दिखती गाय जैसी हैं लेकिन काम हमेशा शेर का करती हैं शेर से भी दो हाथ आगे बढ़कर इनके जादू से ढेर हो जाते हैं कई कई जन एक साथ वास्तव में नीलगाय ठाकुर नहीं होती हैं वह राय साहब होती हैं नीलगाय-१ नीलगाय कभी भागती नहीं बस ओझल हो जाती हैं हमारी आंखों से पूस की ठण्डी रात में हल्कू को सोया जानकर निकल आती हैं अपनी दो गुनी शक्ति के साथ और रौंदने लगती हैं हल्कू की आत्मा को जो ठिठुर रही है पूस की रात में. . . जब जब आती है पूस की एक रात नीलगाय भी वापस आती हैं और ज्यादा भीड के साथ और भी ज्यादा सयानी होकर नीलगाय-२ नीलग