क्रांतिबीज सुधीर विद्यार्थी से कुछ बातचीत
सुनील ‘मानव’ : क्रांतिकारी लेखन से आपका जुड़ाव कब, क्यों और किस रूप में हुआ? भारतीय साहित्य-विमर्श में जहाँ पाब्लो नेरूदा, नेल्शन मंडेला, एन्गेल्स इत्यादि को नायक के रूप में भारतीय जनता के समक्ष प्रस्तुत किए जाने का रिवाज है, वहीं आपने भारतीय क्रांतिवीरों को अपने लेखन का अधार बनाया है। इसके पीछे क्या कारण रहे?
सुधीर विद्यार्थी : इसके पीछे कारण यह था कि हमने जिन दिनों पढ़ना आरम्भ किया था और हमारा क्रांतिकारी साहित्य की तरफ झुकाव हुआ था, उस समय यशपाल का लिखा हुआ ‘सिंहावलोकन’ और मन्मथनाथ गुप्त की कुछ किताबें या बनारसीदास चतुर्वेदी आदि को देख-पढ़ के यह लगा कि उनमें वह सारी चीजें नहीं आ पा रही हैं जो कि आंदोलन में हम पूरी समग्रता में देख चुके हैं, जिनका इतिहास, जितना मैंने पढ़ा था। उसमें हमें लगा कि ऐसा है कि नायक केवल भगतसिंह या चन्द्रशेखर आजाद ही नहीं, या वही नहीं हैं जो केवल शहीद हुए हैं अथवा जिन्हें शहादत के रूप में बड़ा दर्जा मिला है। बल्कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के वो नायक, जिन्हें दूसरी श्रेणी में रखा जा सकता है (जिन्हें शहादत नहीं मिली), वह भी उतने ही महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारी थे