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Showing posts from March, 2015

होली

श रद ऋतु की शीतलता अब कुछ कम हो चली थी। जबसे सूर्य मकर रेखा से उत्तरायण हुए थे , भास्कर महराज की उर्जा सीधे तौर पर पृथ्वी की ओर उन्मुख हो चली थी। इस पर दो-तीन बार हुई बारिश ने मौसम को और भी साफ कर दिया था। ‘माह’ महीने की कपकपाहट से रजाई में दुबक चुके किसना ने जब रजाई से बाहर मुँह निकाला तो सूर्य नारायण उसके चेहरे पर दीप्तमान हो उठे। बावजूद इसके हवा के झखोरों ने उसे रजाई में ही कुछ देर और दुबके रहने पर मजबूर कर दिया। अब वह रजाई में ही दुबके हुए बदलते हुए मौसम का जायजा लेने लगा। किसना के बरोठे के सामने ही उसका बाग था। अत: अनायास ही उसका ध्यान सीधे बाग में भ्रमण करने लगा। उसने देखा कि तमाम सारे पेड़ों के पत्ते पीलापन ले चुके थे, शरदी की शीतलता से भरी हुई बयार से वह ऐसे डोल रहे थे जैसे किसी बिरही का हृदय प्रिय-मिलन को डोलता है। पीले हो चुके पत्तों का पेंड़ों के साथ उनका जुड़ाव अब टूटा कि तब टूटा वाली स्थिति को बयाँ कर रहा था। वह कभी भी डालियों का साथ छोड़ सकते थे। बाग में भ्रमण करता हुआ किसना का मन प्रफुल्लित हो उठा। अब वह रजाई से निकलकर पूरी तरह से प्रकृति के इस मनभावन वाताव