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Showing posts from December, 2014

छोटे शहर की समस्याएं और शाहजहाँपुर का रंगमंच  सुनील ‘मानव’

छो टे शहरों की सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक व बौद्धिक स्तर पर अनेक समस्याएं होती हैं। यह एक ऐसा संक्रमण कालीन समाज होता है , जहाँ कस्बाई प्रवृत्तियाँ पूरी तरह से छूटती नही हैं और महानगरीय प्रवृतियाँ पूरी तरह से अस्तित्व में आ नहीं पाती। इसका चरित्र अन्तर्विरोधात्मक होता है। नए मूल्य स्थापित नहीं हो पाते और पुराने मूल्य छूट नहीं पाते। प्रगति और परम्परा के बीच बनता-बिगड़ता संतुलन इसे एक ऐसा चरित्र प्रदान करता है , जो सामान्य संकल्पना से बिल्कुल भिन्न होता है। बाज़ार और विज्ञापनवादी संस्कृति के प्रभाव ने इसकी प्रवृतियों को और उलझा दिया है। भूमण्डलीकरण और प्रछन्न आर्थिक उपनिवेशवाद ने छोटे शहरों के चरित्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। कुल मिलाकर तमाम तरह के सामाजिक - आर्थिक दवाबों से छोटे शहरों का स्वरूप विशिष्ट और जटिल हो जाता है। छोटे शहरों का समाज संक्रमणकालीन होता है। इसका निर्माण तमाम तरह की विरोधी प्रवृतियों से होता है। शिक्षा , स्वास्थ तथा रोजगार का स्तर जहाँ एक ओर प्रगति की सूचना देता है , वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास , आर्थिक असमानता तथा तीव्र जनसंख्या वृद्धि इसके विकास की अवरुद्धता क

कॉमेडी किंग का ज़मीनी सफर  सुनील ‘मानव’

शा हजहाँपुर का नाम अगर उसके समृद्ध इतिहास तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में  क्रांतिकारी भूमिका के लिए जाना जाता है तो वर्तमान में उसकी एक पहचान अत्यंत समृद्ध रंगमंच के कारण भी है। वैचारिक प्रखरता , समाज से संपृक्तता , जनपक्षधरता तथा अल्पसाधनों के बावजूद तकनीकि समृद्धता ने यहाँ के रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्रदान की है। शाहजहाँपुर में 100 वर्षों से भी अधिक पुराने रंगमंच का इतिहास नौटंकी , लोकनाट्य तथा पारसी नाटकों से लेकर वर्तमान आधुनिक नाटकों तक की अविरल एवं समृद्ध परंपरा से पूर्ण है। शाहजहाँपुर की इस परंपरा को नवीन ऊँचाइयों पर पहुँचाने में कमेडी किंग राजपाल यादव का विशेष स्थान है।भारतीय फिल्मों में ‘एक सौ पचास’ का आंकड़ा पार करके अब ‘हॉलीवुड’ में भी अपना परचम फैलाने वाली श्री यादव का रंगमंचीय सफर गाँव और कस्बे की गलियों और नुक्क्ड़ों से आरंभ होकर अभिनय के शिखर तक भले ही जा पहुँचा हो अथवा आज वह भले ही कमेडी किंग बन चुके हों लेकिन उनके कदम आज भी अपने गाँव, घर और ज़मीन से उसी प्रकार जुड़े हुए हैं।   वास्तव में राजपाल यादव का नाम स्मृति में आते ही हमारे मस्तिष्क में दो छवियां