Posts

Showing posts from May, 2015

भाग गई सन्नों . . .

भाग गई सन्नों . . . Ø   सुनील ‘मानव’ रोज की ही भांति आज भी उसने ट्‍यूशन जाने की तैयारी शुरू की थी। अपने रोज ले जाने वाले बैग में कुछ किताबें रखीं, साइकिल को झाड़ा-पोंछा। नहाने-धोने के बाद अच्छे से कपड़े पहने और धूल से मुंह को बचाने के लिए दुपट्टे से मुंह को जकड़ा। अम्मा का जी रखने के लिए जल्दी-जल्दी में परांठे के दो-चार कौर मुंह में ठूंसे और कमरे में से दो बैग निकालकर साइकिल में टांगे। अम्मा ने पूछ ही लिया ‘इस दूसरे बैग में क्या है. . . कहाँ लिए जा रही हो इसे. . .’ ‘. . . ओ. . . हो अम्मा आप भी ना . . . चलते-चलते टोकोगी जरूर. . . लो देखो आकर . . . कपड़े हैं. . . सोचा प्रेस ही करवा लाउंगी. . . कल कॉलेज जाना है. . .। और भी ना जाने क्या-क्या। सन्नों ने रोज की भाँति अम्मा को गले लगाकर उनके गाल पर चुम्मा लिया और साइकिल पर निकल गई. . . निकल गई ट्‍यूशन पढ़ने . . .। ‘. . . अच्छा बाबा नहीं टोकूंगी . . . जा तू . . . पढ़ने जा . . . और हाँ जल्दी आ जाना. . . घर पर कोई नहीं है। तुम्हारे पापा भी पता नहीं कब तक लौटेंगे. . .। और अम्मा बड़ी ही वात्सल्यता से अपने करेजे के टुकड़े को निहारती रहीं।