शब्द बने वैज्ञानिक

एक दिन की बात है । पापा अपने एक फ्रेंड से बातें कर रहे थे । शब्द भी वहीं खेल रहे थे । पापा और उनके फ्रेंड गाँव में गोबर से गैस और बिजली बनाने की योजना बना रहे थे । शब्द दोनों की बातें ध्यान से सुन रहे थे । फिर पापा के फ्रेंड चले गए तो शब्द पापा से बिजली बनाने के बारे में पूछने लगे । तब पापा ने बताया – 

गाँव में हमारे घर पर जो काऊ, बफेलो हैं । उनका गोबर होता है। 
शब्द – गोबर क्या होता है ?
पापा – काऊ और बफेलो की पॉटी...  
शब्द – पॉटी तो हमारी होती है... 
पापा – उनकी भी होती है...  
शब्द – तो उसे गोबर क्यों कहते हैं... हमारी पॉटी को गोबर क्यों नहीं कहते हैं...  
(पापा चुप ! उनके सिर पर चाँद-तारे नाचने लगे ।)
शब्द – अच्छा बताओ... गोबर से बिजली कैसे बनती है...  
पापा – गोबर को एक गड्ढे में डाला जाता है... उसमें से गैस निकलती है और बिजली बनती है । 

शब्द ने खूब ध्यान से पापा की बात सुनी । 
फिर दोनों सो गए । 

अगले दिन जब पापा ऑफिस से वापस आए तो देखा कि दरवाजे पर किसी जानवर ने गोबर किया था और शब्द ने उस गोबर पर बिजली बनाने के लिए प्रयोग ! 

पापा – यह क्या है ? 
शब्द – अरे यार पापा मैं बहुत देर से मेहनत कर रहा हूँ लेकिन यह बल्ब नहीं जल रहा है । 

शब्द ने गोबर के चांटे के बीच में बिजली का एक बल्ब लगाया था । यह बल्ब उसने अपनी मम्मा से जिद करके लाया था । फिर बल्ब के चारों ओर गत्ते के छोटे-छोटे टुकड़े लगाए । 

बस अब इसी सोच में उसके पास बैठा है कि उसने प्रयोग तो सही किया है लेकिन बल्ब जल क्यों नहीं रहा है ! 
उसको देखकर पापा भी परेशान हैं कि बल्ब को कैसे जलाया जाए !

सुनील मानव

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