अच्छरो की बाजार

शब्द के पास खूब सारे रंगों के खूब सारे अच्छर हैं । हिन्दी के और अंग्रेजी के भी । शब्द को ‘अंग्रेजी’ बोलना अच्छा नहीं लगता है । 

वह कहता है – ये अंग्रेजी के नहीं होते हैं... मैम कहती हैं ये इंग्लिश के होते हैं... 

पापा हार मान लेते हैं । उसकी प्यारी इसनेहा मैम के आगे उनकी कहाँ चलने वाली !  

अच्छरों के रंग और आकार उसे बहुत पसंद हैं । वह उनसे अपने खेलने के लिए खूब सारे खिलौने बना लेता है । कभी छिपकली, कभी चूहा, कभी बंदर, कभी लंबी सूड वाला हाथी । 

कभी वह इन्हीं रंगीन अच्छरों से रेमबो भी बनाता है । 

शब्द पापा का हैपी बड्डे अक्सर मनाता है । इसके लिए वह इन्हीं अच्छरों से खूब सुंदर केक और मिठाई भी बनाता है । पापा को देने के लिए गिफ्ट भी इन्हीं अच्छरों से बनाया जाता है । 

मम्मा के बराबर में शब्द ने कुछ बिस्तरों को मिलाकर अपना एक किचन बनाया है । इस किचन में मम्मा के किचन के कुछ बर्तन भी रख लिए हैं । कुछ चम्मच हैं, एक कढाही है, एक बड़ा चम्मच है । फिर अपने पढ़ने की टेबल को चूल्हा बनाकर वह इन बर्तनों को उस पर चढ़ाता है । इसके बाद उसमें अपने प्यारे रंगीन अच्छरों से सब्जी, दाल, रोटी, चावल, मिठाई आदि बनाता है । 
एक दिन तो शब्द ने अपने इन्हीं अच्छरों से एक बाजार लगाई । 

पापा ने पूछा – यह क्या है शब्द ?
शब्द – बाजार है...  

(शब्द ने अलग-अलग रंगों के अच्छरों को अलग-अलग सजाया था)

पापा – अच्छा बाजार है... क्या-क्या है इस बाजार में...  
शब्द – ये सब्जी है... ये मिठाई है... ये फ्रूट हैं... ये बुक्स हैं... ये कपड़े हैं...  

पापा ने शब्द की इस बाजार से खूब सारी चीजें खरीदीं लेकिन पापा के पास पैसे नहीं थे । 

शब्द – ऑनलाइन दे दीजिए... 

और शब्द ने एक बर्तन का मोबाइल उठाकर पापा के सामने रखा । पापा ने अपने मोबाइल से स्केन करके शब्द को रंगीन अच्छरों की इन खूब सारी चीजों के पैसे दे दिए ।   

पापा शब्द की इस बात पर हंस पड़े । फिर क्या था । शब्द ने तुरंत बाजार उठाकर अपने बैग में डाल दी और मम्मा के पास भाग गया । 

पापा अब उससे अक्सर कहते हैं – शब्द अब कब बाजार लगाओगे... इस पर शब्द शर्मा जाता है ।

सुनील मानव

Comments

Popular posts from this blog

आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आंचल

भक्तिकाव्य के विरल कवि ‘नंददास’

चुप्पियों में खोते संवाद : माती की स्मृतियों से जूझता मन