नत्थू लोहार

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 26
#देखउ_हो_नत्थूकि_भइया_आइ_गे 

#नत्थू_लोहार, इनकी जो पहली छवि हमारे मस्तिष्क में अंकित है वह 'अमिलिया तीर' होने वाली भजन मंडली की है । भजन मंडली जमी हुई है । पचासों लोग बैठे हुए हैं । नत्थू लोहार एक पैर ढ़ोलक पर रखे हुए मज़बूत थापों से ढ़ोलक बजा रहे हैं । मज़ीरा श्रीपाल के हाथों में थिरक रहा है। साथ ही कुछेक तो गीतों की धुन पर गमछा डालकर मंडली के बीच खड़े होकर नाचने तक लगता है । कुल मिलाकर भजन मंडली अपने पूरे यौवन में है । आस-पास के सभी चेहरे चित्रलिखित से गदगद हुए जा रहे हैं । उत्साह अपने पूरे चरम पर है । नत्थू की ढ़ोलक सबके आकर्षण का केंद्र है । 

इस भजन मंडली के मुख्य कलाकार और साथ के गाने-बजाने वालों की उमर पचास से ऊपर ही हुआ करती थी । बालक और नौजवान इन्हीं से प्रेरणा लेते थे । 

नत्थू लोहार की यह छवि मैं कभी भूल न सका । 

नत्थू लोहार से जुड़ी एक बड़ी मजेदार बात आज भी गाँव में गाहे-बगाहे याद की जाती है । जब भी कभी ये हमारे सामने पड़ते हैं, वह किस्सा कुछ देर के लिए चर्चा का विषय बन जाता है । 

नत्थू लोहार का शारीरिक रंग गांव में अन्य लोगों की अपेक्षा कुछ अधिक ही काला है, जो कोई विशेष महत्त्व की बात नहीं है । असल किसा यह हुआ कि एक बार नत्थू किसी मनाचके के चढ़ावे पर इन्होंने अपने खूब सफेद हो चुके सिर और  दाढ़ी-मूछों पर काला रंग करवा दिया । 

जवानी का उत्साह जाएगा उठा और उसमें सराबोर नत्थू लोहार जोगराजपुर से गाँव की ओर आए । मेरे गाँव में आते समय एक नहर पड़ती है, जिसकी पुलिया पर गाँव के कुछ लोग।हमेशा बैठे ही रहते हैं । लोगों ने ऊपर से नीचे एकदम काले बालों वाले एक अधेड़ व्यक्ति को आते देखा । पहले तो पहचाने में परेशानी हुई लेकिन पास आने पर पहचानने में देर न लगी ।  

उन्हें देखते ही सबकी हँसी छूट गई । किसी बच्चे को शरारत सूझी तो वह अन्य लोगों को संबोधित करते हुए चिल्लाया "अरे देखउ देखउ हो... नत्थूकि भइया आइ गे ... "  

बच्चों का यह मज़ाक पूरे गांव में आग की तरह फैल गया । नत्थू लोहार पीछे-पीछे आ रहे थे और लड़के-बच्चे आगे-आगे पूरे गांव में शोर मचा रहे थे । 

जब यह बात गाँव के अन्य लोगों को पता चली तब किसी ना किसी रूप में अपने स्तर पर सब उनकी मजाक बनाने लगे । 

अब जाकर नत्थू को इस बात का।अहसास हुआ कि वह बूढ़े हो गए हैं और गांव में उन्हें अब जावन नत्थू के रूप में कोई स्वीकारने को तैयार नहीं है । खासकर लड़के-बच्चे । इस बात को लेकर लड़के-बच्चों से इनकी कई बार झड़प भी हुई । फिलहाल गाँव के लोग बहुत दिनों तक इनकी इस बात का मजा लेते रहे । 

कल जब हरिपाल बाबा के यहाँ उनसे मिलने गया तो स्वयं ही अपने घर से निकल आए और बोले "तुम ता लल्ला कतइ दिखाईय नाइं देत ..." कुछ और बातों के बाद।मैं वहाँ से चला आया लेकिन उनके बाल रंगने वाली घटना याद आते ही होंठों पर मुस्कुराहट आ गई ।
 
आज भी गाँव में जब कभी यदा-कदा भजन मंडली या धमार आदि की टोली सजती है तो नत्थू लोहार उसमें एक सामान्य सिपाही की भांति उसके साथ हो लेते हैं । हाँ यह अलग बात है कि अब ढ़ोलक की बजंत हो या गायन आदि, अब न ही वह उत्साह रहा और न ही शरीर का साथ ।

कुछ भी हो नत्थू लोहार हमारे गांव की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं जो कि अब करीब करीब समाप्त होने को ही है । 

सुनील मानव, 25.04.2020

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