गाँव की स्त्रियों को देखकर


आज भी 
जब कि हम जी रहे हैं
21वीं सदी में
आज भी 
जब कि हमारे आगे 
दी जाती है 
स्त्रियों के स्वाधीनता की दुहाई  
आज भी
जब हम बात करते हैं 
स्त्रियों की पुरुषों से बराबरी की 
आज भी
जब हम वकालत करते हैं 
विमर्श करते हैं 
बहस करते हैं
स्त्रियों के वजूद पर 
उस स्थिति में 
आज भी 
ना जाने कितनी स्त्रियां 
कैद हैं पुरुष प्रधान घरो में सदियों से ।
आज भी ना जाने कितनी स्त्रियां 
की गई हैं क्वारेनटाइन 
ना जाने कितने स्वाधीन घरों में ।
न जाने
कब खत्म होगा इनका यह लॉकडाउन ? 
गांव में स्त्रियों को देखते हुए
मुझे रोज ऐसा ही लगता है । 

सुनील मानव
01.04.2020

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