राम सागर

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 25
#इच्छाशक्ति_की_मिशाल_रामसागर

ये हैं हमारे गाँव के भाई रामसागर जी । जन्मान्ध हैं । उम्र करीब चालिस सें पैंतालिस के आस पास । इनके लिए जीवन एक काली रात है, लेकिन इन्होंने जीवन में अपने तरीके से उजाला भरा है । जीवंतता की एक बेहतरीन मिशाल पेश की है । 

घर से लेकर खेत-खलिहान तक के सभी काम यह स्वयं करते हैं । गन्ने की छिलाई हो या धान की रोपाई, खेत-खलिहान के सभी कामों से लेकर जानवरों के लिए चारा एकत्र करना, उन्हें चराने जाना आदि सब कुछ एक सामान्य मनुष्य की ही भाँति करते हैं । वह सारे काम जो एक आंख वाला व्यक्ति कर सकता है, ये अपनी इच्छा शक्ति एवं अभ्यास के बल पर करते हैं ।

यहाँ तक कि बाज़ार जाना, रिश्तेदारी में जाना, गाँव-गिरांव में घूमना आदि सब कुछ इनके लिए एक सामान्य क्रिया है । इनके पैरों को ज़मीन की गहराई तक पहचान है । बस जाते पैदल ही हैं । वह भी बिना चप्पल-जूते पहने । ऐसा लगता है कि सही राह स्वयं इनके चलते हुए पैरों के पास आ जाती है । जैसे 'घूमती हुई पृथ्वी आती है पतंग उड़ाने वाले बच्चों के बेचैन पैरों के नीचे ।'

एक बार मैंने पूछा 'रामसागर दद्दा चप्पल-जूते क्यों नहीं पहनते हो', तो बोले -'चप्पल-जूते पहनकर वह रास्ता भटक जाता हूँ ।' जैसे व्यवधान हों यह अप्राकृतिक साधन उनके और ज़मीन के रिश्ते के बीच ।

रामसागर दद्दा के चेहरे पर मैं होली की धमार मण्डली के साथ धमार गीत गाते समय सबसे अधिक उत्साह और प्रसन्नता में देखता हूँ । हरद्वारी लाला या किसी अन्य का हाथ पकड़े हुए धमार मंडली के एक गुट में वह भी पैतरे बदल-बदल कर चलते हुए पूरी तन्मयता के साथ धमार गा रहे हैं । अपनी टोली के साथ पूरे जोश के साथ गया उठाते 'रथ बइठि सिया पछिताइं हमारे राम लखन बिछुडन भाये ...' । 

देखने वाले विस्मित हो जाते रामसागर का यह जोश देखकर , जिसकी परिणति सबके संग-साथ में चुल्लू-दो चुल्लू मदिरापान करके होती थी । ... और झूमते हुए घर की ओर निकल जाते ।
 
गाँव में जब भी इनसे मुलाकात होती है तो प्रसन्नता के साथ राम-जुहार होती है । वह गाँव के सभी लोगों को उनके अलग-अलग स्वर से पहचानते हैं, जिसे सुनकर वह उक्त व्यक्ति का नाम और गाँव-गिरांव का रिश्ता जोड़कर हँसी-मशखरी करते हुए आगे निकल जाते हैं । 

कहीं से आते हुए यदि मेरा स्वर उनके कान में पड़ जाता है और मैं उन्हें नहीं देख पाता तो स्वयं ही बोल उठते हैं -'अउरु लल्ला कब आए ? कइसे हउ ?'

सुनील मानव

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