वीडियो

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 49
#जह_वीडियोनि_गांवुंकि_एकताकु_नासु_कद्दो ...

मैं बहुत छोटा ही था । इतना कि उस स्मृति को स्पष्ट रूप में याद नहीं कर पा रहा हूँ । बस कुछ धुंधलका-सा अंदर कहीं कुलबुला रहा है । गाँव में किसी के घर ‘लड़का’ जन्मा था । उस ‘लड़के’ के नामकरण यानि कि डस्ठौन पर पहली बार हमारे गाँव में ‘वीडियो’ आया था जिसमें चलते हुए चित्रों को देखकर कई लोग उत्साह और आश्चर्य से चीख पड़े थे ‘अरेउ अहिमा ता फ़ोटो चल्त हइं...’ बस फ़िर क्या था इस वीडियो ने गाँव के पुराने सभी मनोरंजन के साधनों को निगल लिया । एक ही बार में । एक ही झटके से । गाँव की संस्कृति रोई । थोड़ी गिड़गिड़ाई । वीडियो को तरस न आया । वह सीना ताने अपनी रंगीनी के आगोश में पूरे गाँव को लेता चला गया । 

स्थान था ‘अमिलिया तीर’, प्रबन्धक थे ‘बद्री दद्दा’ । मैलानी जाकर ‘लढ़िया’ से वे ही लाए थे इस वीडियो को । जिसने अपने लड़के के डस्ठौन पर वीडियो का यह आयोजन करवाया था, सीना फ़ुलाकर पूरे गाँव में अपनी ‘हिटलरी’ दिखा रहा था । लोग-बाग उसके नखरों को दुधारु जानवर-सा सहते हुए उसकी चापलूसी और मनुहार करने में लगे थे । बद्री दद्दा का अपना अलग ही जलवा था । जगतियापुर के इतिहासपुरुष बनने का सौभाग्य उन्हीं के नाम था । वीडियो की प्रबन्धकी में ऐसे मदमस्त हुए जा रहे थे जैसे चार गाँव की जमीदारी मिल गई हो । 

अमिलिया तीर वीडियो चलना था । जगह पर्याप्त थी । गाँव के तमाम लोग उसकी तैयारी में लगे थे । बच्चे और नौजवान सभी उस तैयारी का हिस्सा बनकर अपने भाग्य पर इठला रहे थे । हल्की सर्दी का मौसम था । शाम को चार बजे के आस-पास वीडियो गाँव में आ गया था । लड़के-बच्चे तो दोपहरी से ही गाँव के ‘धूरे’ पर इंतजार में जा बैठे थे । वास्तव में यह इंतजार बड़ा कठिन था । कहीं दूर से कोई ‘चब्भर’ कानों पड़ती नहीं कि सभी लड़के-बच्चे उसकी ओर भाग पड़ते । बड़े-बूढ़े अपने उत्साह को झूठमूठ के लिए छिपाते हुए लड़के-बच्चों को डाँटकर अपने अंदर के बच्चों को समझाने का प्रयास करते ‘उरेउ लउटि थोरोइ जइही ... अइही ता गांमइंम ...’ लेकिन लड़के बच्चे कहाँ मानने वाले । 

अंतत: अमिलिया तीर वीडियो की तैयारी पूरी हुई । गाँव के लड़के-बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़े और लड़कियाँ-औरतें सब की सब, बस कुछ ‘सवर्ण परिवारों’ को छोड़कर, अपना-अपना बिचावन लेकर ‘वीडियों’ को निहारते हुए उसमें चलते हुए चित्रों को देखने के लिए बेताब हुए जा रहे थे । वीडियो आपरेटर ने जब बद्री से कहा कि ‘अब ठीक है बताओ कौन सी फ़िल्म चलनी है पहले ...’ फ़िर क्या था । एक बार फ़िर से ‘ले-ले’ मच गई । फ़िल्मों की जितनी भी जानकारी थी जिस किसी के पास, उसके अनुसार फ़िल्मों की फ़रमाइस होने लगी । अंतत: तय हुआ कि पहले कोई ‘धार्मिक’ फ़िल्म ही चलेगी । बद्री सहित कुछ बड़ों ने बूढ़ों की इजाजत से निर्णय लिया कि पहली फ़िल्म चलेगी ‘संतोषी  माता’ । पूरे पांडाल में जयकारा गूँज उठा ‘बोल संतोसी माता की’ ... वो जय ध्वनि हुई कि आस-पास के गाँवों तक में उसकी गूँज सुनई दी होगी । 

आपरेटर ने कैसेट मशीन के अंदर डाली और स्क्रीन पर आडी-तिरछी लकीरें बस आनी शुरू ही हुईं थीं कि पैदा हुए लड़के का बाप, जो जगतियापुर में इस वीडियो चलवाने का इतिहास रच रहा था, थोड़े नशे और गर्व में आ धमका । मूछों पर ताव देते हुए हुए बोला ‘अबहि कहिने भों... वालेनि चलवाइ दो वीडियो .... पहिली निउता हुइही ... तहिके बादि चलिही .... ।’ 

आपरेटर ने वीडियो बन्द कर दिया । दर्शक दीर्घा उसके खिलाफ़ हो गई और जिसके मुँह में जितनी बातें आईं । कह गया । 

खैर ! आधा-पौन घंटे में वीडियो चला । एक-दो धार्मिक फ़िल्मों के बाद शत्रुहन सिन्हा, धर्मेन्द्र और मिथुन की फ़िमें चलाई गईं । पूरी रात सब एकटक वीडियो देखते रहे । मैं भी टस से मस न हुआ । फ़िल्मों से यह मेरा पहला लगाव था । उस दिन संभवत: पता नहीं था कि आगे मैं भी इनकी स्क्रिप्ट और कहानियाँ लिखने का प्रयास करूंगा लेकिन उस वीडियो ने फ़िल्में देखने का जो चस्का लगाया था, वह खूब आगे तल लगा रहा । 

गाँव में कहीं भी वीडियो चलता । मेरी उपस्थिति अनिवार्य थी । भले ही घर में लोगों की डाँट-फ़टकार और मार खानी पड़ती । यह सिलसिला गाँव से निकलकर जब मैलानी पढ़ने पहुँचा, वहाँ तक चलता रहा, जिसने एक नया रूप धारण किया था । (इसको आगे लिखूंगा)

गाँव में पड़ गई इस वीडियो की परंपरा ने जहाँ गाँव को तकनीकि और आधुनिकता से जोड़ा वहीं वह गाँव की संस्कृति को भी निगल गया पूरी तरह से । हमारे गाँव में वीडियो से पहले भजन मंडली, हुडुक, नौटंकी, ढोला, धमार, सुआंग आदि लोक से जुड़े माध्यमों की खूब प्रबलता थी, वीडियो ने धीरे-धीरे इन सबको किनारे कर दिया । 

कई बड़े-बूढ़ों ने इसका विरोध भी किया । कौन सुनता है उन्हें । वीडियो ने नया रूप ग्रहण किया । अमिलिया तीर अब अक्सर वीडियो चलने लगा । गाँव में किसी के यहाँ भी कोई उत्सव या मांगलिक कार्यक्रम होता, वह वीडियो चलवाने लगा । गाँव तो गाँव आनगाँव तक से लोग वीडियो के दीवाने होकर आते । धीरे-धीरे यह परंपरा मज़बूत होती गई और कमाई का धंधा भी बन गई ।

आगे चलकर अमिलिया तीर बरसात के महीने में जब किसानों-मज़दूरों के पास कोई काम न होता था, महीना-महीना वीडियो चलने लगा । रामायण, महाभारत से लेकर श्रीकृष्णा और न जाने क्या-क्या । इसके लिए बाकायदा गाँव के लोगों से चंदा भी होता था । प्रबन्धक गण चंदा एकत्र करते थे पूरी मज़बूती के साथ । 

कई बार तो ऐसी भी घटनाएँ सामने आने लगीं कि पूरा गाँव वीडियो देख रहा होता था और गाँव के घरो में चोरियाँ होने लगती थीं । बस यहीं से वीडियो का अवसान भी आरम्भ हो गया । 

समय बदला और गाँव में टी.वी. आई । एक... दो... चार... फ़िर तो कहना ही क्या । घर-घर टी.वी. हो गई । लोग अपने-अपने घरो में कैद हो गए । सामाजिक रूप से एक स्थान पर जुटना तक मुस्किल होता गया । 

गाँव का यह स्वरूप बदला । आर्थिक संपन्नता आई । लोगों को अपने वजूद का अनुभव हुआ । लोग स्वयं को समझने लगे । तरक्की करने लगे । लेकिन इस सबके पीछे हमारा ‘जगतियापुर’ दम तोड़ने लगा । हमारा जुड़ाव समाप्त होने लगा । 

आज तो यह सब एक स्वप्न भर रह गया है । बड़े-बूढ़े या हमारे हमउम्र तक के तो आपस में राम-जुहार कर लेते हैं लेकिन बाद की पीढ़ी इससे अलग हो गई । सबके हाथों में मल्टीमीडिया मोबाइल और वॉट्सएप विश्वविद्यालय के ज्ञान ने एक दूसरी ही दुनिया का प्राणी बना दिया है । शिक्षा की कमी ने इस अलगाव को हवा दी और दूरियों को मज़बूती प्रदान कर दी । 

गाँव आज भी है लेकिन अब हमारे गाँव में फ़ूस के छप्पर, टूटे-फ़ूटे चकरोट, अनगढ़ बातें, लोगों की हँसी-ठिठोली कुछ भी न बचा । सब बदल गया । घर और रोड पक्के हो गए, बिजली हो गई, राजनीति हो गई, हिन्दू सभा, दलित सभा, ब्राह्मण सभा आदि ने सबको गुटो में विभाजित कर दिया । 

अब हमारे यहाँ से वह वीडियो भी उठ गया जो पूरे उत्साह के साथ लढ़िया पर आया था । सही कहा किसी ने ‘जो आया है उसे जाना ही होगा ।’ वीडियो के जाने का कोई अफ़सोस नहीं मुझे लेकिन ‘लोक’ के जाने ने बहुत आहत किया । 

आज पूरे गाँव में सभी प्रसन्न हैं, क्योंकि सब ‘मॉर्डन जगतपुर’ के निवासी हैं लेकिन मैं और मेरा जगतियापुर रो रहे हैं । सिसक-सिसक कर । ... क्योंकि हम अपने गाँव की संस्कृति और उसके जुड़ाव को याद कर रहे हैं । 

 “सुखिया सब संसार है, खावे अरु सोवे ।
 दुखिया दास कबीर है, जागे अरु रोवे ॥” 

सुनील मानव
03.06.2020

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