पुस्तक : भुवनेश्वर समग्र संपादक : दूधनाथ सिंह विधा : संग्रह प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली प्रथम संस्करण : सन् 2012 मूल्य : रु.600 (हार्ड बाउंड)

भुवनेश्वर परिचय के क्रम में यह तीसरी महत्त्चपूर्ण किताब है । मेरी समझ से अब तक की अंतिम भी । भुवनेश्वर को समझने / समझाने की जो शुरुआत प्रेमचंद ने की थी, दूधनाथ सिंह जी ने उसे असीम ऊँचाइयों तक पसारने की जो कोशिश की है, मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि वह ऊँचाई केवल दूधनाथ सिंह ही प्रदान कर सकते थे । इस पुस्तक में भुवनेश्वर की दुर्लभ से दुर्लभ रचनाओं का जो संग्रह किया है दूधनाथ जी ने, वह दूधनाथ सिंह ही कर सकते थे । इसके अतिरिक्त साठ पृष्ठ की जो गंभीर भूमिका लिखी गई है, मुझे लगता है कि उसमें दूधनाथ सिंह का भुवनेश्वर में एक प्रकार का विलय हुआ है ।
शाहजहाँपुर की ज़मीन से संपादित पिछली दोनों पुस्तकों (साहित्य का धूमकेतु भुवनेश्वर तथा भुवनेश्वर व्यक्तित्व एवं कृतित्व) में संकलित आलेखों, संस्मरणों से भले ही भुवनेश्वर को समझने में बड़ी मदद मिलती है, लेकिन दूधनाथ सिंह लिखित साठ पृष्ठ की भूमिका में उन्होंने भुवनेश्वर को जिया सा जान पड़ता है ।
‘ऐ ग़में-दिल क्या करूँ !’ के अंतर्गत अपनी भूमिका में दूधनाथ सिंह आरम्भ करते हैं कि ‘भुवनेश्वर प्रेमचन्द की खोज हैं ।’ यह एक छोटा-सा वाक्य दूधनाथ की पूरी भूमिका की गंभीरता को बयां कर जाता है । इसके बाद तो दूधनाथ जी भुवनेश्वर की कविताओं के मूल्यांकन से आरम्भ कर उनके नाटकों, कहानियों, एकांकियों और वैचारिक लेखक की जो गंभीर पड़ताल करते हैं, मुझे कई बार लगा कि वैसा विश्लेषण हिन्दी साहित्य में यदि कोई कर सकता था तो वह एकमात्र दूधनाथ सिंह ही हैं ।
वास्तव में इस समग्र की भूमिका पढ़ते हुए पाठक भुवनेश्वर की समग्रता से गहराई तक परिचय प्राप्त करता है । यदि आप भुवनेश्वर की समग्रता को एक स्थान पर पाना चाहते हैं और दूधनाथ सिंह जैसे आलोचक की दृष्टि से समझना भी, तो यह पुस्तक भुवनेश्वर पर सबसे सटीक पुस्तक सिद्ध होगी । बकौल संपादक दूधनाथ सिंह ‘श्रीयुत् भुवनेश्वर प्रसाद का निर्वाण एक कला है, जिसकी कोई मिसाल नहीं । और होनी भी नहीं चाहिए ।’
संपादक की भूमिका की यह अंतिम पंक्तियाँ भुवनेश्वर को समझने और आत्मसात करने के लिए लालायित करने को बहुत हैं एक अच्छे पाठक के लिए ।
इस समग्र का संकलन कुछ इस प्रकार है –
अंग्रेज़ी में लिखी कविताएँ और उनका अनुवाद : - TO RUTH, रूथ के लिए, THE MIST OF THE EYES, आँखों की धुंध में (एक), ग़रीबी के पछोड़ में (दो), RAIN UPON RAIN, बौछार पे बौछार, OPEN SESAMA, खुल सीमासा, ON BOTH SIDES OF THE RIVER, नदी के दोनों पाट, SOMEWHERE, कहीं, A DIRGE (-IF IT MAY BE), शोकगीत, IN THE CONDUITS OF THE MIND, दिमाग़ की सुरंगों में, THE ROMANCE OF THE SPERMETOZOA, शुक्राणुओं की प्रेमकथा, THE BIRTH OF CHRIST, ईसा का जन्म, OF TIDES AND SHIPS.

हिन्दी कविताएँ : - पुकार, विश्वास, अँगीठी, ओ प्राण पपीहे  बोलबोल, दर्शन, गीत ।

कहानियाँ : - भविश्य के गर्भ में, मौसी, हार रे मानव हृदय !, जीवन की झलक, एक रात, डाकमुंशी, माँ-बेटे, भेड़िये, मास्टरनी, सूर्यपूजा, लड़ाई, आज़ादी : एक पत्र ।

नाटक : -  एकाकी के भाव, प्रतिभा का विवाह, श्यामा : एक वैवाहिक विडम्बना, पतित (शैतान), एक साम्यहीन साम्यवादी, रोमांस-रोमांच, लॉटरी, मृत्यु, स्ट्राइक, ऊसर, आदमख़ोर, रोशनी और आग, ताँबे के कीड़े (एकांकिका), आज़ादी की नींद, जेरूसलम को, सिकन्दर, ख़ामोशी ।

अनूदित नाटक : - एक विषाक्त घटना, किन्नरी, राजा का प्रेम, इंस्पेक्टर जेनरल ।

आलोचना और टिप्पणियाँ : - रहस्यवाद के कुछ अनुभव, ‘माधुरी’ पत्रिका में भुवनेश्वर निराला विवाद (क. श्रीसूर्यकान्त त्रिपाठी निराला-भुवनेश्वर, ख. निराला का उत्तर-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, ग. श्री भुवनेश्वरप्रसाद की तारीफ़, घ. भुवनेश्वर जी के संस्मरण-बलभद्र प्रसाद मिश्र, ड़. भुवनेश्वरप्रसाद जी का उत्तर-भुवनेश्वर), प्रेमचन्द जी का स्वर्गवास, भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स, शब्बीर हसन ‘जोश’, कवि-सम्मेलन में अक्षम्य अशिष्टता, गांधीवाद और स्त्री-आन्दोलन, प्रवेश (कारवाँ की भूमिका), उपसंहार, एक खत : अश्क के नाम ।

साक्षात्कार : - कारवाँ, साहित्य में उनका स्थान सुरक्षित और स्थायी है, भुवनेश्वर की याद ।

अस्तु ‘भुवनेश्वर समग्र’ की विषय-वस्तु पूर्ण होती है ।
भुवनेश्वर पर यह तीन पुस्तकें (‘साहित्य का धूमकेतु भुवनेश्वर’–संपादक : चन्द्रमोहन दिनेश, ‘भुवनेश्वर व्यक्तित्व एवं कृतित्व’–संपादक : राजकुमार शर्मा तथा ‘भुवनेश्वर समग्र’–संपादक : दूधनाथ सिंह) गंभीर से गंभीर पाठक और अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगी, ऐसा मेरा विश्वास है । 

सुनील मानव
मानस स्थली
18.05.2018

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