पुस्तक : ऋतु आए ऋतु जाए . . . लेखक : शरद दत्त विधा : जीवनी (फिल्म संगीतकार अनिल विश्वास की जीवन-यात्रा) प्रकाशक : सारांश प्रकाशन, दिल्ली-हैदराबाद संस्करण : 2003 मूल्य : रु. 500 (हार्डबाउंड)

यह पुस्तक हिन्दी फिल्म जगत में फिल्मी संगीत के जन्मदाता कहे जाने वाले व्यक्तित्व अनिल विश्वास की शरद दत्त की जीवन यात्रा है । बकौल फ्लैप ‘उस समय के सुप्रसिद्ध फिल्म-समीक्षक तथा ‘फिल्म इंडिया’ पत्रिका के संस्थापक-संपादक बाबूराव पटेल के शब्दों में, अनिल विश्वास हंदी फिल्म-संगीत को स्वतंत्र व्यक्तित्व सौंपने वाले पहले संगीत-निर्देशक हैं । उन्होंने फिल्म-संगीत को मराठी नाट्‍य एवं भक्ति-संगीत के सर्वग्रासी प्रभाव से मुक्त किया और शास्त्रीय तथा लोक-संगीत की सहायता से फिल्म-संगीत की एक ऐसी परंपरा को जन्म दिया, जो उनके समकालीन तथा परवर्ती संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई ।’
सर्वोत्तम लेखन के लिए वर्ष 2002 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित यह पुस्तक संगीत जगत के पुरोधा और संगीत के भीष्म पितामह कहे जाने वाले एक ऐसे व्यक्ति की जीवन यात्रा है, जिसमें संगीत के साथ-साथ बदलता हुआ ‘दौर’ जीवंत-सा लगने लगता है । शरद दत्त के उत्कृष्ट लेखन ने पुस्तक को ऊँचाई प्रदान की है, वह अत्यंत सराहनीय है ।
साढ़े तीस सौ पृष्ठ की इस पुस्तक को तीन प्रमुख खण्डों में बाँटा गया है । जीवन-यात्रा, संगीत-चिंतक एवं कवि गीतकार तथा कृतित्व । पहले भाग में जीवन और परिवेश से लेकर कलकत्ते का संघर्ष जो आगे बढ़कर बंबई पहुँचता और सितारों से आगे की राह दिखाता है । बंबई का उनका जीवन नवीन इबारतें लिखने के बाद भी रास नहीं आता है और अनिल जी बंबई से निकलकर दिल्ली में अपना बसेरा बनाते हैं । आपका अंतिम समय दिल्ली में ही बीतता है । दूसरे खण्ड में अनिल जी के संगीत-चिंतक एवं कवि-गीतकार का श्वरूप शरद जी ने स्पष्ट किया है । इसके तहत भारतीय शास्त्रीय तथा लोकसंगीत की संपदा का फिल्मों में किस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है, एक महत्त्वपूर्ण चिंतन है । इसमें अनिल जी की लेखनी भी बराबर की हिस्सेदारी निभाती है । पुस्तक के अंतिम तीसरे खण्ड में ‘अनिल विश्वास के संगीत-निर्देशन में बनी फिल्में’, ‘किस गायक ने कितने गीत गाए’, ‘गीत और उनके गायक’ तथा ‘कुछ कालजयी गीतों की स्वरलिपियाँ’ संग्रहीत की गई हैं ।
वास्तव में शरद दत्त जी द्वारा लिखी गई संगीतकार अनिल विश्वास की यह जीवन-यात्रा आने-जाने वाली तमाम ॠतुओं को अपने में समेटे हुए है ।
जो पाठक अनिल विश्वास के संगीत के साथ-साथ हिन्दी फिल्म जगत की एक लम्बी यात्रा करना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।
सुनील मानव, 22.05.2018

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