पी जा हर अपमान और कोई चारा भी तो नहीं-२
तूने स्वाभिमान से जीना चाहा यही गलत था,
कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था ।
केवल तेरे ही अधरों पर कटु आस्वाद नहीं है,
सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है ।
तेरा असफ़ल हो जाना तो पहले से ही तय था,
तूने कोई समझौता स्वीकारा भी तो नहीं ।
गलत परिस्थिति, गलत समय में, गलत देश में होकर,
क्या कर लेगा तू अपने हाथों में कील चुभोकर ।
तू क्यों टंगे क्रास पर तू क्या कोई पैगम्बर है,
क्या तेरे ही पास अबूझे प्रश्नों के उत्तर हैं ।
कैसे तू रहनुमा बनेगा उत्तेजित भीड़ों का,
तेरे पास लुभाने बाला नारा भी तो नहीं ।
यह तो प्रथा पुरातन दुनिया प्रतिभा से डरती है,
सत्ता केवल गलत व्यक्ति का ही चुनाव करती है ।
चाहे लाख बार सिर पटके दर्द नहीं कम होगा,
नहीं आज भी कल भी जीने का यह ही क्रम होगा ।
माथे से हर सिकन पोंछ दे आंखों से हर आंसू,
पूरी बाजी देख अभी तू हारा भी तो नहीं ।।
Comments
Post a Comment