पी जा हर अपमान और कोई चारा भी तो नहीं-२


तूने स्वाभिमान से  जीना चाहा  यही  गलत  था,
कहां  पक्ष में तेरे  किसी समझ  वाले का मत था ।
केवल  तेरे ही  अधरों पर  कटु  आस्वाद  नहीं  है,
सबके   अहंकार   टूटे   हैं   तू  अपवाद  नहीं  है ।
तेरा  असफ़ल  हो  जाना  तो पहले से ही तय था,
तूने     कोई  समझौता  स्वीकारा  भी  तो  नहीं ।

गलत परिस्थिति, गलत समय में, गलत देश में होकर,
क्या  कर  लेगा  तू  अपने  हाथों  में  कील चुभोकर ।
तू  क्यों  टंगे  क्रास  पर  तू  क्या  कोई   पैगम्बर   है,
क्या   तेरे   ही   पास   अबूझे    प्रश्नों  के   उत्तर  हैं ।
कैसे   तू   रहनुमा   बनेगा   उत्तेजित   भीड़ों   का,
तेरे   पास   लुभाने   बाला   नारा   भी   तो   नहीं ।

यह  तो  प्रथा  पुरातन  दुनिया  प्रतिभा  से डरती है,
सत्ता  केवल  गलत  व्यक्ति  का ही चुनाव करती है ।
चाहे  लाख  बार  सिर  पटके  दर्द  नहीं  कम होगा,
नहीं  आज  भी कल भी जीने का यह ही क्रम होगा ।
माथे  से  हर  सिकन  पोंछ  दे  आंखों  से  हर आंसू,
पूरी  बाजी  देख   अभी  तू  हारा  भी  तो  नहीं ।।

 (साप्ताहिक हिन्दुस्तान, १० जनवरी १९७१ : बालस्वरूप राही)

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