नदी : मेरी आत्मा हो तुम

#सेव गोमती# अभियान, मोहम्मदी के साथियों को समर्पित जो तन मन और धन से गोमती के अस्त्तिव रक्षा में लगे हुए हैं : सुनील मानव ।

मेरे सपनों में,
पिछली कई रातों से
एक नदी आती है ।
ह्ंसती
मुस्कुराती
मचलती
खिलखिलाती
और स्वप्न के अंत को रसहीन बनाती हुई-सी
पानी की छलछलाहट में
तैरता
कूदता
फांदता
और गोते लगाता हुआ-सा मैं
खोने लगता हूँ
नदी की जलविहीन धारा में
(पागलों की भांति मचलता हुआ)
एकाएक
सूख चुका-सा जल
मेरे अंदर भर देता है
रेत-सा खुरदुरापन
और
नदी की सजीवता का मृत हो चुका-सा एक चित्र ।
मेरे बचपन की वह नदिया
जिसमें तैरा करती थी
मेरी कल्लो भैंस
और भैंस की पीठ पर
औंधे मुंह लेटा हुआ-सा मेरा वजूद
पानी की वह छलछलाती बूंदें
और कीचड के सूख चुके दाग
मेरी आत्मा की अनंत गहराइयों पर
चिपक गए हैं ।
जैसे चिपका करती थीं
कल्लो भैंस की गर्दन के नीचे
छोटी और सफेद-सी
मटमैली और घृणास्पद
एक किलनी ।
मेरे बचपन की वह नदी
जो मेरी दादी की
अनगिनत कहानियों का
सजीव रूप हुआ करती थी
अब मेरे गले और
आत्मा में चिपकी हुई है ।
मेरी आत्मा में बहने वाली नदी की कलकलाहट
सूख चुकी है
जैसे सूख चुकी हैं आज की आत्माएं
सुनील मानव, 11.06.2018

चित्र : खान इशरत परवेज

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