पुस्तक : मैं बोरिशाइल्ला लेखक : महुआ माजी विधा : उपन्यास प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली संस्करण : 2007 मूल्य : रु. 195 (पेपरबैक)

बंगलादेश के अभ्युदय पर लिखा गया एक बेहतरीन उपन्यास है यह । ‘बोरिशाल के एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमें साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ और फिर भाषायी तथा भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान टूटकर बांग्लादेश बना ।
समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अंत:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है । यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके जबर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है ।’
बकौल कृष्णा सोबती ‘इसने हिन्दी में तथ्य आधारित रचनाशीलता को नया श्वरूप और विस्तार दिया है ।’
राजेन्द्र यादव का कहना है कि ‘महुआ माजी का यह उपन्यास बांग्लादेश के मुक्ति-संग्राम और एक नए राष्ट्र क अस्तित्त्व में आने की कहानी है । इसे कहने के लिए महुआ ने जितनी खोज और मेहनत की है, उसे देखकर आश्चर्य होता है ।’
अशोक वाजपेयी कहते हैं कि ‘इस उपान्यास अकी एक विशेषता यह है कि इसमें प्रकृति पृष्ठभूमि भर नहीं, औपन्यासिक उपस्थिति है । यह एक तरह से समकालीन कथा के मानवीय यथार्थ से आक्रांत  परिसर में प्रकृति का पुनर्पाठ है, कई अर्थों में भारतीय परम्परा से मेल खाता हुआ ।’
. . . और तस्लीमा नसरीन . . . का कथन ‘महुआ माजी ने अत्यंत महत्ता से बांग्लादेश के जीवन, संस्कृति तथा उससे जुड़ी घटनाओं का वर्णन किया है ।’ उपन्यास की विश्वसनीयता को गंभीरता से भर देते हैं ।
अपनी विषय-वस्तु में यह एक बेहतरीन उपन्यास है ।
सुनील मानव, 13.06.2018

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