तुम्हारी औकात क्या है पियूष मिश्रा

तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा : पीयूष मिश्रा

इस किताब को केवल ‘आरंभ है प्रचंड’ गीत की पृष्ठभूमि को समझने के लिए पढ़ना आरंभ किया था, कुछ फिल्मों में उन्हें एक अभिनेता के रूप में देखने से अधिक कोई परिचय नहीं था । किताब क्या उठाई, पागलपन के चरम पर पहुंचता चला गया । 

बहुत कम आत्मकथाएं पूरी ईमानदारी, पूरी सपाटबयानी के साथ लिखी जा रही हैं । इस किताब ने अंदर तक झकझोर दिया । बने-बनाए उत्स तोड़ डाले । ग्वालियर से लेकर मुंबई तक के सफर का संघर्ष किसी भी व्यक्ति को तोड़ के रख सकता है, इस बंदे ने खुद को बचाया । महज बचाया ही नहीं बल्कि खुद को बुना और सँजोया भी । 

आत्मकथाओं में सबसे अधिक फरेब होता है । हमेशा पढ़ने के बाद मुझे लगता रहा । कुछ-एक को छोड़ दिया जाए तो । इस किताब ने उस धारणा को ठेंगा दिखाया । पीयूष मिश्रा ने अपने जीवन के संघर्ष को, अपनी कमियों को, अपनी बत्तमीजियों को, अपने प्रेम को, शराब-सिगरेट की लत को बड़ी ही स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है । 

मुंबई में स्टारडम पाले हुए स्ट्रगलर्स को अथवा थियेटर कर रहे नौजवानों को अथवा जीवन के किसी भी प्रकार के संघर्ष से जूझ रहे व्यक्ति को यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए । 

यहाँ आपको कोई सीख अथवा किसी प्रकार का मोटीवेशन नहीं मिलेगा । बस आप किताब के अंत तक पहुंचते-पहुंचते अंदर से हिलने अवश्य लगेंगे । ... और विश्वास कर पाएंगे कि सच को सच के रूप में लिखना कितना दुष्कर है, कितना कष्टप्रद है और कितना जरूरी भी है । 

कमेन्ट बॉक्स में लिंक है । किताब पर कुछ कहा है मैंने । आप बात कर सकते हैं ।
सुनील मानव

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