लोग जो मुझमें रह गए : अनुराधा बेनीवाल

हमारे बौद्धिक समाज में आए दिन कोई न कोई विमर्श होता रहता है । अत्यधिक बौद्धिक जुगाली के बाद वह निहायत खोखले ही मुझे अक्सर नज़र आए । अब चाहें वह दलित विमर्श हो, मुस्लिम विमर्श हो अथवा स्त्री विमर्श । सब एक तरफा विद्रोह की भावना से भरे हुए हैं । मानवीय समालोचना मुझे बहुत कम ही जगहों पर दिखी । ऐसे में अनुराधा की यह किताब स्त्री विमर्श को नए सिरे से व्याख्यायित करती नज़र आती है मुझे । स्पष्टता के साथ कहा जा सकता है कि यह किताब ‘स्त्री विमर्श’ को ध्यान में रखकर नहीं लिखी गई है । यहाँ लेखिका की यात्राओं के दौरान उसमें रह गए लोगों की अभिव्यक्ति मात्र है, लेकिन उसका अपना एक विशेष दर्शन है, एक विशेष शैली है और उस शैली का सहज प्रवाहित रूप है । यहाँ आप किसी विमर्श में नहीं फँसते हैं लेकिन जमाने से चले आ रहे विमर्श को सहज ही अपने अंदर समझा हुआ सा महसूस करने लगते हैं ।   

‘यायावरी आवारगी’ सीरीज की यह दूसरी किताब है अनुराधा की । यहाँ वह, बहुत कुछ है जो यात्रा विवरण की किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ में कहने से रह गया था । वह लोग समाए हैं इसमें जो लेखिका की यात्रा में उसके अंदर रह गए । 

खुद लेखिका के अनुसार – ‘‘इस किताब में वे लोग हैं जो दिखते चाहें हमसे अलग हैं, बसते हमसे बहुत दूर हैं, खानपान-पहनावा भले ही उनका हमसे अलग है, लेकिन हैं बिलकुल हमारे जैसे ही । ये वे लोग हैं जो मेरी यात्राओं में मुझसे मिले, मुझमें रह गए, मुझे बदल गए । इस किताब को लिखना मुझे जरूरी लगा, उन धारणाओं को तोड़ने के लिए जो हमने औरों के लिए बना ली हैं । बिना उनसे मिले, बिना उन्हें जाने । यह किताब उन सब जजमेंट्स को तोड़ने की कोशिश है – वेस्ट ऐसा होता है, गोरे ऐसे होते हैं, काले ऐसे होते हैं, जवान लड़कियाँ ऐसी होटी हैं, ईसाई ऐसे होते हैं, मुसलमान वैसे होते हैं । 
 मैं जैसे-जैसे दुनिया घूमती गई, अलग-अलग देशों में फिरती गई, नए-नए लोगों से मिलती गई, वैसे-वैसे दुनिया छोटी और अपनी होती गई । सब तरह के लोगों से मिलकर मैंने जाना कि जो एक चीज़ सब चाहते हैं, वह है प्रेम; और प्रेम ही आजादी है ।’’

यह किताब अनुराधा की पहली किताब की पूरक तो है ही, साथ ही यूरोप को, पूरी दुनिया को हमारी देखने की जजमेंटल दृष्टि को बदलने वाली भी है । यह किताब स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ही लेकिन उससे एक इंच भी कम महत्वपूर्ण पुरुषों के लिए भी नहीं है ।    

लेखिका की इन दोनों किताबों को एक प्रवाह में, यानि कि एक के बाद एक पढ़ा जाना चाहिए । उन लड़कियों को तो अवश्य ही पढ़ा जाना चाहिए जो अपने पंखों उड़ना चाहती हों ...

सुनील मानव 
11.05.2023

Comments

Popular posts from this blog

आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आंचल

भक्तिकाव्य के विरल कवि ‘नंददास’

पुस्तक : भुवनेश्वर व्यक्तित्व एवं कृतित्व संपादक : राजकुमार शर्मा विधा : संग्रह एवं विमर्श प्रकाशन : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ प्रथम संस्करण : सन् 1992 मूल्य : रु.90 (हार्ड बाउंड)