मुस्कुराते रहो, गम भुलाते रहो ।

मुसकुराते रहो, गम भुलाते रहो

मुझे फूलों का मुस्कुराना, लहराते हुए फूलों की मदहोशी में खो जाना हमेशा से अच्छा लगता रहा है । बावजूद इसके मुझे गुलाब जैसे फूल कभी नहीं भाए । हालांकि गुलाब की अलग-अलग अवस्थाओं के मैंने बहुत सारे फोटो खींचे । एक ही गुलाब के कली निकलने से लेकर मुरझा कर गिर जाने तक की अनेकानेक अवस्थाओं के फ़ोटो मैंने लिए, लेकिन पता नहीं ऐसा क्या रहा कि सामंत वर्ग के सिर का ताज रहा यह गुलाब, धार्मिक आस्था का सिरमौर रहा यह गुलाब मेरे मन को कभी नहीं भाया । हो सकता है कि मैं अपने साहित्यिक पुरखे ‘निराला’ से प्रभावित रहा होऊँ, लेकिन वैसी ताकत खुद में न भर पाया कि गर्व से सीना फुलाकर कह सकूँ – ‘अबे ! सुन बी गुलाब ।’ ... और ऐसी स्थित में तो बिलकुल ही नहीं जबकि देश की राजनीति अपने सीने पर इस फूल को सजाए हुए हो । ये निराला जी की ‘बिल पावर’ थी । मेरी ऐसी औकात नहीं है । और यदि यदा-कदा मन में ऐसा विचार आ भी जाए कि राजनीति के सिरमौर की सामंती मोहब्बत पर कुछ कहने की सोचूँ भी तो भए से मन कांप उठता है । 

इसलिए भी मेरी मोहब्बत ज़मीन के फूलों के साथ अधिक है । मेरे मन में हमेशा जमीन से जुड़े फूलों के प्रति प्रेम रहा, अतीव स्नेह रहा । उन्होंने ही मुझे ज्यादा आकर्षित किया । मेरे जन सामान्य से हृदय को आह्लादित किया । 

छोटे पर जब गांव में होली के समय लड़कियां होली पूजन के लिए जो फूल चुनती थीं, वह फूल मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करते थे । खिचड़ी के फूल होते थे, जिन्हें चमरौधा भी कहा जाता था । यह सम्बोधन सवर्णीय अहं का पोषक लगा मुझे हमेशा ही । बोगनवेलिया के फूल होते थे, सरसों के फूल होते थे, अलसी और तिल के फूल होते थे । ऐसे बहुत सारे फूल होते थे जो यहाँ-वहाँ कहीं भी अपने आप उग आते थे । सहज ही मुस्कुराते थे । मुझे हमेशा इनकी मुस्कुराहट ने अपनी ओर खींचा । मैं घंटों बैठा करता था खेत-खलिहान में उग आए इन फूलों के बीच । 

इन्हीं फूलों में एक फूल हुआ करता था ‘बिलइया’ का फूल । एकदम छोटा सा । उंगली की एक पोर के बराबर । खिलने पर सामने से ऊपर को थोड़ा फूल जाता था । दूब घास के बीच होता था । बहुत ही ‘रेयर’ । अपनी सुंदरता में अभूतपूर्व । अतीव सुंदर नायिका को भी लजा दे, ऐसा । इसके बारे में कहा जाता था कि जिस विवाह योग्य लड़की को यह ‘बिलइया’ का फूल मिल जाएगा और वह इससे होलिका-पूजन करेगी तो आने वाली अगली होली तक उसको मनपसंद ‘वर’ मिल जाएगा । 

लड़कियों के अंदर के इस ‘अभिलाषा’ का फायदा गाँव के लड़के उठाने का प्रयास करते थे । लड़के बड़ी मेहनत से इस फूल को तलाशते थे और ‘अपनी किसी एक’ को इस उम्मीद से देते थे कि कम से कम इसके बदले उन्हें एक ‘चुम्मा’ तो मिल ही जाएगा । दिल की मुराद पूरा होने की उम्मीद को मजबूत करने के बदले कई लड़कियों को एक ‘चुम्मे’ का सौदा महँगा नहीं लगता था । बावजूद इसके उस दौर में यह बड़ा कठिन ‘टास्क’ होता था । उस लड़के के ‘मन की मुराद’ पूरी होती थी या नहीं, उस लड़की के ‘मन की मुराद’ पूरी होती थी या नहीं लेकिन एक विशेष आकर्षण और विशेष जुड़ाव की आपसदारी अवश्य मजबूत होती थी । 

आज भी जब मैं कहीं निकलता हूं और इस प्रकार के फूल जो धार्मिक आस्थाओं से परे हैं, जो मेहनतकश वर्ग का प्रतीक हैं, मुझे अपनी ओर खींचते हैं । मैं अलग-अलग फूलों के फोटो खींचने का प्रयास करता हूं । 

आज साइकिलिंग के दौरान ‘राधा माधव पब्लिक स्कूल, बरेली’ के आसपास के कुछ हंसते-मुस्कुराते हुए फूल मुझे मिले । मैं इनकी ओर खिंचा चला गया । कुछ देर निहारता रहा । कुछ फोटोग्राफी की और फिर न जाने क्या-क्या सोचता हुआ आगे निकल गया । 

यह खूबसूरती बनी रहे । यह प्रेम बना रहे । यह मुस्कुराहट बनी रहे । यह आकर्षण जो अपनी तरफ अनायास ही खींच लेता है, बना रहे । जिंदगी में खुश रहने को इससे ज्यादा और क्या चाहिए ?
सुनील मानव
20.04.2023

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