जाति क्या होती है मिश्रा जी



जगमोहन साहब ने ऑफिस से आकर अभी खाना भी नहीं खा पाया था कि मिसेस श्रीवास्तव आ पहुँचीं । यूँ तो जगमोहन साहब को उनके आने का अंदाजा पहले से ही था, पर वो अभी आ पहुँचेंगी, इस बात का भान नहीं था ।
“. . . माफी चाहती हूँ सर मैं आपको डिस्टर्व करने आ पहुँची . . .” मिसेस श्रीवास्तव एक दिखावटी हँसी हँसीं तो जगमोहन साहब ने भी उसी प्रकार उनका साथ दिया ।
“. . . अरे सुनती हो . . . श्रीवास्तव मैम आई हैं . . .” अंदर को मुँह करके जगमोहन जी ने अपनी मोहतरमा को उनके आने की सूचना देने का अभिनय किया और मिसेस श्रीवास्तव जी को बैठने को कहकर अंदर चले गए ।
जगमोहन जी जब अंदर पहुँचे तो मिसेस ने बेढ़ंगा-सा मुँह बनाते हुए मिसेस श्रीवास्तव के बेटाइम आने पर आपत्ति दर्ज की तो जगमोहन जी ने भी कंधे उचकाते हुए अपनी दयनीयता व्यक्त कर दी ।
“. . . नमस्ते मैम . . .” मिसेस जगमोहन ने कमरे से ड्रॉइंगरूम में कदम रखते हुए मिसेस श्रीवास्तव का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित किया ।
जगमोहन जी के कमरे में चले जाने के बाद मिसेस श्रीवास्तव बेटाइम आने की अपनी गलती को छुपाने के लिए जगमोहन जी के ड्रॉइंगरूम में अलमारियों में सजी किताबों के शीर्षक पढ़ने लगीं । मिसेस जगमोहन की आवाज से उनकी बेचैनी बाधित हुई ।
“. . . नमस्कार मैम . . . नमस्कार . . . कैसी हैं आप . . . अब देखो मैंने आप लोगों को बेटाइम डिस्टर्ब कर दिया . . . ” मिसेस श्रीवास्तव पीले-पीले दाँत दिखाते हुए हँसने में ‘नेचुरल्टी’ लाने के प्रयास में बोलती चली गईं ।
“. . . ठीक हूँ मैम आपका आशीर्वाद है . . .” मिसेस जगमोहन ने मिसेस श्रीवास्तव की अनचाही हँसी से बचने के लिए हाथ जोड़कर अपनी कृतज्ञता प्रकट की ।
“. . . आप बैठिए मैम . . . मैं चाय बना लाती हुईं आपके लिए . . .” कहते हुए मिसेस जगमोहन किचेन की ओर बढ़ीं, जो ड्रॉइंगरूम से ही सटा हुआ था ।
मिसेस श्रीवास्तव ने मिसेस जगमोहन को अनचाहे मन से रोकने का प्रयास किया लेकिन मिसेस जगमोहन ने मिसेस श्रीवास्तव की मीलों लम्बी तथा कभी न समाप्त होने वाली बातों से बचने के लिए किचन में घुस जाना ही उचित समझा । मिसेस श्रीवास्तव कुछ पल को चुप हुई । एक पल को मानवीय बोलचाल में शांति स्थिर हो गई, लेकिन कमरे व किचन से कुछ आवाजें आती रहीं ।
“. . . अरे सीमा जी . . .” मिसेस श्रीवास्तव अपने आपको अधिक देर तक शांत नहीं रख सकती थीं ।
“. . . आइये बैठिये आकर हमारे पास . . . ”
“. . . जी मैम . . . आती हूँ . . .” कहने के कुछ देर में मिसेस जगमोहन एक ट्रे में दो कप व एक प्लेट में कुछ भुने हुए काजू लेकर उपस्थित हुईं ।
“. . . अरे देखिये मैम . . . आपको बेटाइम परेशान कर दिया . . .” मिसेस श्रीवास्तव ने एक बार फिर से हँसने के प्रयास में पीले दाँत दिखाते हुए एक हाथ से कप और दूसरे में पाँच-सात काजू एक साथ उठा लिए ।
मिसेस जगमोहन ने मेज पर ट्रे रखते हुए अंदर की ओर आवाज लगाई “. . . चाय बन गई है . . . पी लीजिए आकर . . . ”
जगमोहन जी अब तक फ्रेस हो चुके थे । स्कूल की ड्रेस के स्थान पर ट्रेकसूट पहन लिया था । आकर मिसेस जगमोहन के सामने वाले सोफे पर बैठ गए तो मिसेस जगमोहन ने चाय का कप पति की ओर बढ़ाया ।
“. . . आप पीजिए . . . मेरा मन नहीं कर रहा है . . . खाना ही खाऊँगा अब . . . ” जगमोहन जी ने लग रही भूख को मिसेस श्रीवास्तव के समक्ष प्रकट किया । संभवत: यही समझकर वह उनकी परेशानी को समझ सकें ।
जगमोहन जी आवासीय स्कूल में अध्यापक थे । स्कूल का रुटीन कुछ इस प्रकार का था कि जगमोहन जी आराम नहीं कर पाते थे । दो बजे घर आकर खाना खाकर चाय पीते थे और कुछ देर शवासन में लेटते थे, तब तक तीन बज जाते थे । वापस स्कूल जाने का समय । आज इस एक घण्टे के कन्जस्टेड टाइम में मिसेस श्रीवास्तव ने हमला कर दिया था ।
“. . . पी लीजिए सर . . . कितनी अच्छी बनी है चाय . . . लीजिए काजू खाइये . . . भूनकर लाई हैं सीमा जी . . . ” मिसेस श्रीवास्तव ने अपनापन दिखाते हुए काजू की प्लेट जगमोहन जी के सामने बढ़ाई तो जगमोहन जी ने अनमनेपन से एक काजू उठाते हुए मिसेस श्रीवास्तव का मान रख लिया ।
“. . . मैम मेरी बात हुई थी पूरनपुर वाले सज्जन से . . . ” हाथ में लिए हुए काजू को मुँह में रखते समय कुछ रुके और वापस बात को आगे बढ़ाया “. . . लेकिन. . . लेकिन . . वह तो दहेज की बात कर रहे हैं . . . बोले या तो लड़की कुछ करती हो अथवा कुछ लेन-देन की बात हो जाए . . .इसके आगे मेरी उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी . . .” जगमोहन जी ने पूरी वस्तु स्थिति एक सांस में मिसेस श्रीवास्तव के सामने इस लिहाज से रख दी कि वह अब और अधिक देर नहीं रुकेंगी । स्पष्ट सा जबाब सुनते ही चल देंगीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
“. . . अच्छा किया आपने सर . . . बहुत अच्छा किया . . . ऐसे दहेज के लोभियों के यहाँ थोड़ो न बिहयेंगे अपनी बेटी को . . .” मिसेस श्रीवास्तव का गर्व उनके चेहरे पर अठखेलियाँ करने लगा ।
“. . . मैंने अपनी बेटी को पढ़ाया-लिखाया है . . . अच्छे संस्कार दिये हैं . . . क्या इसी दिन के लिए कि शादी में दहेज भी दूँ. . . मुझे तो ऐसा लड़का चाहिए सर . . . जो अच्छे घर का हो, अच्छे संस्कारों का हो . . . और अच्छा खाता-कमाता हो . . .” मिसेस श्रीवास्तव जी और भी न जाने क्या-क्या कहती चली गईं । जगमोहन जी बेचारे कभी मिसेस श्रीवास्तव के चेहरे पर नजर डालते हुए अपना मायूस का चेहरा उनकी आत्मा के केन्द्र में लाने का प्रयास करते तो कभी चोरी-छुपे अपना मोबाइल उठाकर देखते कि तीन बजने में कितने मिनट शेष बचे हैं । इन दोनों क्रियाओं के बीच किचन में दरवाजे के पास खड़ी पत्नी पर एक नज़र डालते तो आँखों में लगातार बढ़ रहे क्रोध को देखकर वापस मिसेस श्रीवास्तव की बातों को सुनने का प्रयास करने लगते ।
मिसेस श्रीवास्तव की उमर तकरीबन पचास के आस-पास पहुँच चुकी थी । बड़ी लड़की के लिए कई वर्षों से वर की तलाश कर रही थीं, लेकिन उनकी शर्तों पर कोई लड़का नहीं मिल पा रहा था । एक दिन यूँ ही रास्ते में चलते-चलते जगमोहन जी से इस बात का जिक्र कर बैठीं तो जगमोहन जी ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि ‘नज़र में कोई आयेगा तो बतायेंगे ।’ बस इसी दिन से जगमोहन जी गाहे-बगाहे मिसेस श्रीवास्तव के सामने असमंजस्य की स्थिति में आ जाते थे ।
“. . . तो ठीक है न सर . . .” मिसेस श्रीवास्तव ने अपनी वाणी को कुछ पल के लिए विराम दिया । जगमोहन जी अब तक अकुता चुके थे । अब वह किसी भी स्थिति में और सुन पाने की हालत में नहीं थे । घड़ी में दो बजकर चालीस मिनट हो चला था और उन्हें अभी खाना भी खाना था । जगमोहन जी ने अपनी बैठने की स्थिति को थोड़ा परिवर्तित करते हुए एक बार फिर से मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र डाली ।
“. . . मैम मैं आपको जल्द ही बताऊँगा. . . ” जगमोहन जी का धैर्य जवाब देने लगा था ।
“. . . हाँ सर आपकी बड़ी मेहरबानी होगी . . . ” एक हल्की सी साँस लेकर मिसेस श्रीवस्तव वापस बोलने लगीं “. . . सर यदि आपकी कास्ट में कोई अच्छा लड़का हो तो भी बताइयेगा. . . किसी अच्छे ब्राह्मण परिवार का कमाऊ लड़का हो तो मैं तैयार हूँ शीलू की शादी करने को . . . ”
जगमोहन साहब अब तक तैयार हो चुके थे मैडम से भिड़ने को । उन्होंने अपने आपको बड़ी ही हिम्मत से काबू में किया और ठीक से मिसेस श्रीवास्तव के सामने बैठ गये ।
“. . . मैडम एक लड़का है और हमारी नज़र में . . . जब आपने इंटरकास्ट की बात की तो नज़र दौड़ गई उस पर . . . एम.बी.ए. करके किसी बड़ी कंपनी में काम करता है. . . अच्छे पढ़े-लिखे परिवार का है . . . और सबसे बड़ी बात कि उनके यहाँ दहेज की कोई बात नहीं उठेगी . . .” जगमोहन साहब अब पूरे आवेग में आ चुके थे ।
सुशील और सज्जन लड़का . . . वह भी बिना दहेज के . . . सुनते ही मैड़म के चेहरे पर प्रफुल्लता आ गई । बालकों की भाँति उछल-सी पड़ी मैड़म ने कई सारे प्रश्नों की झड़े लगा दी ।
“. . . कौन है . . . कहाँ का है . . . ” इत्यादि ।
“. . . नाम है राममोहन जाटव . . . पिता जी रेलवे में नौकर थे . . . अब रिटायर हो चुके हैं . . . ” जगमोहन साहब एक ही साँस में पूरी जन्मपत्री सुना गए, लेकिन मिसेस श्रीवास्तव अभी तक एक ही शब्द पर अटकी हुई थीं । जगमोहन जी को बीच में ही रोकती हुई बोलीं “. . . क्या कहा आपने जाटव है . . . यानि कि सिड्यूल कास्ट . . . ”
“ . . . तो क्या हुआ मैम . . . पढ़ा-लिखा है . . . खाता-कमाता है . . . समाज में इज्जत है . . . और क्या चाहिये आपको . . .” जगमोहन साहब ने मैडम के मनोभावों को भाँप लिया था ।
“. . . लेकिन है तो जाटव . . .” मैडम अभी भी वहीं अटकी पड़ी थीं ।
“. . . तो क्या हो गया मैडम . . . अभी आप इंटरकास्ट की बात कर रही थीं . . . तभी तो मैंने बताया आपको ।
“. . . हाँ कह रही थी. . . लेकिन यह तो नहीं कह रही थी कि सिड्यूल कास्ट में कर दूँ . . . चूहे-चमारों के यहाँ करनी होती तो कब की कर चुकी होती मैं . . .” मिसेस श्रीवस्तव के तेबर बदलने लगे । उनके चेहरे पर एक आक्रोश छा गया ।
“. . . तो आप श्रीवास्तव होकर ब्राह्मण के लड़के से क्यों करना चाहती हो . . . क्या ये जातीय दंभ नहीं है मैडम . . . जब आप अपने से नीचे की कास्ट में अपनी बेटी का विवाह नहीं कर सकती हो तो कोई ब्राह्मण अपने बेटे का विवाह अपने से नीची कास्ट में कैसे कर लेगा . . . ” जगमोहन जी के पेट में चूहे दौड़ने लगे थे ।
मिसेस श्रीवास्तव को जगमोहन जी की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी थी । उठकर खड़ी हो गईं । दरवाजे की ओर बढ़ते-बढ़ते रुक गईं । वापस मुड़ीं और जगमोहन जी से बोलीं “. . . मिश्रा जी मैं आपको अभी तक बहुत ही सज्जन और पढ़ा-लिखा समझती थी, लेकिन आप भी बाकी सब लोगों जैसे ही निकले . . . मिश्रा जी मैं तो जाति को नहीं मानती लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपनी बेटी की शादी किसी नीच जाति में कर आऊँगी . . .” मिसेस श्रीवास्तव के चेहरे पर रुआंसी देख जगमोहन जी भी अपनी कही बात पर आत्मग्लानि महसूस कर उठे ।
“. . . मैम मैं तो बिलकुल ही जाति को नहीं मानता हूँ . . . विवाह रीति-रिवाजों से हटकर अपने ही साथ में पढ़ने वाली लड़की से किया है, जो खुद एक दलित परिवार से आती हैं . . .” जगमोहन जी ने मिसेस श्रीवास्तव जी के क्रोध को कुछ शांत करने का प्रयास किया, लेकिन यह प्रयास सफल न हो सका । मैडम ने जगमोहन जी के सामने हाथ जोड़े और तेजी से बाहर निकल गईं ।
जगमोहन जी कुछ पल दरवाजे पर खड़े हुए मैडम को जाते हुए देखते रहे, लेकिन मैडम ने पलटकर नहीं देखा । दरवाजा बन्द करके अंदर को मुड़े तो पत्नी जी हाथ में खाने की थाली लिए हुए खड़ी थीं ।

सुनील मानव
मानस स्थली
26.02.2017
+919307015177
manavsuneel@gmail.com

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