मैंने शू शू कर ली

वो महज़ तीन् साल् का हो पाया था अभी | मां के साथ् बाज़ार जाने की स्वाभाविक् जिद करने लगा. मां ने हर् संभव् प्रयास किया बच्चे को समझाने का. जब किसी तरह से बच्चे को समझाया नहीं गया तो मां ने उसे अपने साथ बाज़ार् ले जाने का फैसला लिया और् बच्चे से गोद में ना चढ्ने काम पक्का बाला वादा लेकर् चलने के लिए अपनी अंगुली उसकी ओर् बढा दी. बच्चा ने मां की आंखों में मुस्कुराकर देखा और उनके साथ् बाज़ार् चल दिया.
मां बेटे अभी घर् से कुछ दूर ही पहुंचे थे कि बच्चे के छोटे छोटे पांव् थकने लगे. मां को अपने करेजे के टुकड़े का मासूम चेहरा ना देखा गया. ना चाहते हुए भी उसने बच्चे को गोद में उठा लिया. बच्चे के चेहरे पर प्रशन्नता का भाव् खिल् उठा.
बाजार तक बच्चा मां की गोद में पहुँच गया तो खरीदारी में हो रही असुविधा के चलते मां ने बच्चे को नीचे उतार दिया. उसकी अंगुली पकडी और खरीददारी करने लगीं. एक दुकान से दूसरी और तीसरी. फिर चौथी, पांचवीं, छठी .... मां की खरीदारी समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी और् ऐसे में बच्चे की अकुलाहट मां को महसूस नहीं हो पास रही थी.
कुछ देर की और खरीद फरोख्त के बाद जब मां का ध्यान बच्चे पर गया तो उसकी करेजे का वात्सल्य आंखों में उतर आया. झट से गोद में उठा लिया, पर अगले ही पल वापस नीचे.
“...तुम बता नहीं सकते थे क्या.... कच्छे में ही शू शू कर ली.... छेम छेम... गंदा बचा.... “ मां ने मनुहार भरी कई बातें बच्चे के मासूम हृदय में उडेल दीं.
बाजार से घर तक का सफर बच्चे को मां के उलाहने सुनते हुए बीता. सोच रहा होगा कि चलो घर पहुंचकर मां के इन उलाहनों से छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन नहीं. घर पहुंचकर तो और भी ज्यादा.
मां के पेट में बात नहीं पची. बच्चे के अंदर से बेड मैनर निकालकर ही दम लेना चाहती थीं। पापा से लेकर घर आई बच्चे की नानी और उसके बडे भाई सबको बता दिया कि “.... बाजार में शिखर ने कच्छे में शू शू कर ली...”
अब सब मिलकर बच्चे के अंदर से बेड मैनर निकालने लगे. बच्चा चुपचाप सुनता रहा और सबके चेहरों को निहारता रहा. कुछ ना बोला. एक शब्द भी नही. चेहरे की मासूमियत ने गंभीरता का भाव ग्रहण कर लिया.
जब सबको लगने लगा कि अब बच्चे के अंदर से बेड मैनर निकल गया होगा. दुनियादारी की अन्य बातों में मशगूल हो गये. बच्चे ने एक बार सबके चेहरों को निहारा. किसी का ध्यान अब उस पर नहीं था. बच्चा एकदम से ठहाका मारकर हस पडा.
बातों को अपनी जगह पर छोड सबका ध्यान एकबार वापस बच्चे पर टिक गया. इस बार सबकी निगाहों में कौतूहल था. एक प्रश्न् था.
आखिर बच्चा इस तरह से हसा क्यूं....
जब तक कोई कुछ समझ पाता या बोल पाता बच्चा चहक उठा “... मैंने शू शू कर ली और किसी ने नहीं कर पाई....”
अब किसी के पास कोई उत्तर नहीं था. अगर कुछ था तो सामने बच्चे का मासूम चेहरा और शांत सा सन्नाटा, जिसे कुछ पल बाद बच्चा अपनी किलकारी से चीरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया....
                                                                                                        सुनील मानव

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