हसि कहइ मंदोदरि नारि, असुर लंका मइं होरी किन खेली



होली के धमार गीतों में एक गीत - हसि कहइ मंदोदरि नारि, असुर लंका मइं होरी किन खेली - अक्सर गाया जाता था । यह एक ताल में गुपली कई तर्ज पर गाया जाता था, जहाँ रावण की मृत्यु के बाद की पृष्ठभूमि है ।

होली का वातावरण है । लंका की सत्ता बदल चुकी है । राजनीति अब विभीषण के हाथ में है । हर्ष, उल्लास के बीच रावण-मेघनाद आदि की विधवाएं शोकमग्न हैं । मंदोदरी लंका में लोगों को होली खेलती देखती हैं । एक सखी उससे भी होली खेलने का आग्रह करती है । मंदोदरी शोकात्मक व्यंग्य करते हुए खीझती है । वह रावण और राम के बीच के संघर्ष को याद कर उठती है । उसे हँसी आने लगती है लेकिन उसकी यह हँसी दर्द से भरी है । व्यंग्य से भरी है । वह सोचती है कि रावण के अहंकार ने पूरी जाति का विनाश कर दिया । यह दर्द इस गीत में मंदोदरी के द्वारा भरे जा रहे आहपूर्ण कटाक्ष से निकलने लगता है । वह प्रश्न कर उठती है - कौन सी होली खेलूं ? कैसी होली खेलूं ?

वह होली जो हनुमान ने पहली बार सीता की खोज के दौरान लंका आगमन पर लहेली गई थी, जिससे पूरी लंका ही जल उठी थी । है असुर ! क्या मैं यह होली खेलूं, जिससे लंका फिर से जल उठे या वह होली खेलूं जो दूसरी बार बालि पुत्र अंगद द्वारा खेली गई थी ? जब अंगद ने अहंकारी रावण की सभा में पैर जमाकर सबको अपने पैरों पर झुका दिया था । रावण का अहंकार चूर-चूर कर दिया था । अथवा वह होली खेलूं, जिसमें लक्ष्मण ने मेघनाद जैसे वीर का अमोघ बाण ओट कर मेघनाद जैसे योद्धा का वध कर डाला था । अथवा वह होली खेलूं जो राम ने अपनी पत्नी के लिए लंका के वीरों के साथ खेली थी । राम ने रावण का संहार परिवार सहित कर डाला था । है सखि ! तुम मुझसे कौन सी होली खेलने को कहती हो ?  'हसि कहइ मंदोदरि नारि, असुर लंका मइं होरी किन खेली' पंक्ति की हँसी वास्तव में मंदोदरी के दर्द को बयां करती है ।

रावण मारा गया । मेघनाद-कुम्भकरण मारे गए । पूरी असुर जाति मारी गई । एक विभीषण को छोड़कर । रावण का दोष इतना था कि उसने अपनी बहन के अपमान का बदला उसी रूप में लिया था । हो सकता था कि उसका तरीका गलत हो । राजा था । अहंकार होना लाजमी है । लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद, पूरे खानदान की मृत्यु के बाद उत्सव मनाना मंदोदरी को राश नहीं आता है । वह होली के उत्सव को देखकर खीझ उठती है । पूरे गीत में उसके द्वारा उठाए गए सभी प्रश्नों के।उलाहनों में लंका की वर्तमान सत्ता के प्रति विद्रोह है । वह चेताने का प्रयास करती है कि देखो यह होली नहीं है, जो अपनी हार के बाद खेली जा रही है । वास्तविक होली तो राम और उसकी सेना ने खेली है । मैं यदि होली खेलूँगी तो मेरी होली हनुमान, अंगद, लक्ष्मण और राम वाली होली होगी । वास्तव में यहाँ मंदोदरी अपनी जाति, अपने देश, अपने राष्ट्र के दंभ और अज्ञान से खीझती नज़र आती है ।

सुनील मानव, 15.02.2020

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