राम राम बिस्मिल : सुनील मानव

RAAM-RAAM BISMIL    Written by  SUNEEL MANAV             


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SC#1/DAY-MOR/OUT/BANK OF RIVER/ASHAPHAK ULLA KHAN AND PANDIT RAMAPRASAD BISMIL
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एक ओर पं. रामप्रसाद बिस्मिल एक बेदी पर बैठे हुए हवन कर रहे हैं। वह नीचे एक सफेद धोती पहने हुए हैं और शरीर पर मोटा जनेऊ पड़ा हुआ है। वह हवन की अंतिम अहुति डालते हुए उठते हैं और नमाज पढ़ रहे अशफाक उल्ला खाँ की ओर देखते हैं। अशफाक नमाज पढ़ते रहते हैं और बिस्मिल उन्हें खड़े हुए स्नेह से देखते रहते हैं। कुछ पल बाद अशफाक नमाज से उठ जाते हैं। वह जानसाज उठाकर तहाते हैं और अपनी ओर देख रहे बिस्मिल के पास आ जाते हैं।

ASHAPHAK
. . . क्या देख रहे हो राम. . .

BISMIL
. . . तुम्हारी तल्लीनता को निहार रहा था. . .

ASHAPHAK
. . . वो तो तुम रोज ही निहारते हो. . . लेकिन आज तुम्हारी आँखें कुछ और ही बोल रही हैं. . .

बिस्मिल कुछ बोलते नही हैं। वह एक नजर भरके अशफाक को निहारते हैं और कुछ दूरी पर पड़ी एक चारपाई पर जा बैठते हैं। अशफाक भी उनके पीछे जाकर उनके बराबर में चारपाई पर बैठ जाते हैं। बिस्मिल की आँखों में देखते हैं। उनकी आँखें कुछ नम हैं।

ASHAPHAK (CON’T)
(बिस्मिल के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए) . . . क्या बात है राम. . . तुम्हारी आँखें आज तुम्हारा साथ क्यों नहीं दे रही हैं. . .

BISMIL
(अशफाक के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए) . . . हाँ खान ! . . . तुम मेरी हर नब्ज पकड़ लेते हो. . . आज मेरा मन हवन में एकाग्र नहीं हुआ. . .

ASHAPHAK
. . . क्यों. . . ऐसा क्या हुआ. . . तुम तो नियमों के बड़े पक्के हो. . .

BISMIL
. . . मित्र. . . अब धर्य छूट रहा है. . .

ASHAPHAK
. . . पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो राम. . . तुम्हें तो पता है कि मैं तुम्हारी पहेलियों को समझ नहीं पाता हूँ. .

BISMIL
(अशफाक के गाल को प्यार से छूते हुए मुस्कुराते हैं) . . . आज हवन पर बैठे हुए मेरा मन एकाग्र नहीं हो रहा था. . . और खान यह आज पहली बार नहीं हो रहा है. . . पिछले कई दिनों से मेरी यह हालत है. . . जब हवन करने बैठता हूँ. . . हमारे शहर की गर्म हो चुकी आवो-हवा के बेदर्द झोंके रह-रह कर मेरे हृदय से टकराने लगते हैं. . .

ASHAPHAK
(मुस्कुराते हुए) . . . तो हो आइये जाकर . . . तुम्हें तो धरती पर जाने की इजाजत है . . . जबसे हमें फाँसी हुई है. . . तबसे मैं यहीं नमाज पढ़ रहा हूँ, पर तुम तो. . . तुम तो कई बार धरती माँ की सेवा करने जा चुके हो. . .

BISMIL
(चेहरे पर उदासी आ जाती है) . . . अब नहीं. . . अब तो बिलकुल मन नहीं करता है जाने का. . . जबसे माता जी, पिता जी और छोटे भ्राता को तड़पकर मरते देखा है. . . धरती से जी उचट गया है. . . कभी सोचा नहीं था कि जिस आजादी के लिए हम जैसे न जाने कितनों ने अपना खून बहाया है, वह आजादी ऐसी होगी. . .

अशफाक बिस्मिल की बातें सुनते हुए कुछ उदास से हो जाते हैं। बिस्मिल के कंधे पर हाथ रखकर दूर कहीं शून्य में देखने लगते हैं। कुछ पल की शांति रहती है। अशफाक की आँखों से कुछ आँसुओं की बूँदें बिस्मिल के हाथ पर टपक पड़ती हैं। बिस्मिल अशफाक की ओर देखकर मुस्कुराते हैं। एकायक उठते हैं और अशफाक के हाथ पकड़कर उठा लेते हैं।
अब दोनों आमने-सामने आ जाते हैं। बिस्मिल के चेहरे पर उत्साह दिखने लगता है और बिस्मिल के इस स्वरूप को देखकर अशफाक के चेहरे पर प्रश्वचिन्ह उभर आते हैं।

BISMIL (CON’T)
(अशफाक के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए उत्साह के साथ) . . . मेरा एक काम करोगे खान. . .

अशफाक कुछ समझ नहीं पाते हैं। वह फटी हुई आँखों से केवल बिस्मिल को निहारते रहते हैं।

BISMIL (CON’T)
. . . तुम जाना चाहते थे ना धरती पर. . . चले जाओ. . . हमारा शहर देख आओ जाकर. . . (अशफाक के कंधों को अपने मजबूत हाथों से पकड़ते हैं)

ASHAPHAK
(कुछ सकपकाते हुए) . . . म. . . मैं. . . लेकिन राम तुम्हें तो पता है. . .

BISMIL
. . . हाँ मुझे पता है खान. . . तुम पक्के मुसलमान हो. . . इस्लाम तुम्हें पुनर्जन्म की इजाजत नहीं देता है. . . लेकिन खान . . . मैं तुमसे धरती पर जन्म लेने के लिए नहीं कह रहा हूँ. . .

ASHAPHAK
. . . तो . . . मैं कुछ समझा नहीं राम. . .

BISMIL
. . . तुम अपने इसी रूहानी शरीर से हमारे शहर में जाओ. . . और महसूस करो वहाँ बहने वाली इस समय की हवा को. . . और देखना कि वह हमारे समय से कितनी अलग है. . .

अशफाक बिस्मिल को अपनी मौन स्वीकृति देते हैं।
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SC#2/DAY/OUT-ASHAPHAK ULLA’S MAZAAR/SHAHAJHANPUR CITY/ASHAPHAK ULLA KHAN
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अशफाक उल्ला खाँ अपने रूहानी शरीर से शाहजहाँपुर में टहल रहे हैं।  बदल चुके शहर को बड़ी गंभीरता से निहारते जा रहे हैं। ऐसे ही चलते हुए वह सबसे पहले अपनी मज़ार पर पहुँचते हैं। जहाँ कुछ बकरियाँ चर रही हैं। कुछ बच्चे कंचे खेल रहे हैं। कुछ बच्चे पतंग उड़ा रहे हैं। कुछ लोग यहाँ-वहाँ बैठे हुए ताश खेल रहे हैं। कुछ एक नौजवान इधर-उधर बैठे हुए अपने मोबाइलों पर कुछ देख रहे हैं।
अशफाक पूरी मज़ार को घूमते हुए बाहर निकल जाते हैं।
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SC#3/DAY/OUT/HOME/ASHAPHAK ULLA KHAN

अब अशफाक अपने पुस्तैनी घर के सामने जा पहुँचते हैं। वह बड़ी संवेदना से अपने घर और इधर-उधर बैठे और टहल रहे लोगों को निहार रहे हैं। कुछ देर तक देखने-निहारने के बाद वह आगे बढ़कर अपने घर की दीवारों का स्पर्श करते हैं। दीवार का स्पर्श करते हुए अशफाक के कान में यकायक एक पुरुष का स्वर टकराता है।

V.O.
. . . अशफाक . . . ये कौन सी किताब देख रहे हो. . . अपना सबक याद करो. . . मौलाना जी आते ही होंगे. . .

अशफाक एक झटके के साथ अपना हाथ पीछे हटा लेते हैं।
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SC#3a/DAY/INT/HOME/CHILD ASHAPHAK AND HIS MOTHER AND FOTHER

अशफाक के अम्मी-अब्बू एक चटाई पर बैठे हुए उर्दू की एक किताब पढ़ रहे हैं। उनसे कुछ दूरी पर बालक अशफाक सफेद कुरते-पाजामें और सर पर गोल मुस्लिम टोपी लगाए हुए एक किताब को उलट-पुलट रहा है, जिसमें लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि की हाथ में तलवार आदि लिए हुए फोटो हैं। अशफाक बड़े गौर से उन फोटुओं को देख रहा है। उसके सबक की किताब एक ओर पड़ी है।
अशफाक का ध्यान किताब से नहीं हटता है। वह अब्बा की बात को नहीं सुन पाते हैं। अब्बा वापस टोकते हैं।

FOTHER (CON’T)
(कुछ तेज़ स्वर में) . . . अशफाक. . .

अशफाक की तंद्रा टूटती है। वह अब्बू की ओर देखते हैं और बड़े ही शांत स्वर में अब्बू से बोलते हैं।

ASHAPHAK
. . . मियाँ आप मुझे एक तलवार ला दीजिए. . .

अशफाक के अम्मी और अब्बू बालक की बालसुलभ जिज्ञासा पर स्नेह से भर जाते हैं।

FOTHER
(मुस्कुराते हुए प्यार से) . . . आप तो अभी छोटे हैं. . . कोई छीन लेगा तो. . .

ASHAPHAK
(चेहरे पर दृढ़ता बनी रहती है) . . . मियाँ आप चाँदी की तलवार न लाएं. . . लोहे की तलवार लाएं. . . वह कोई नहीं छीनेगा. . .

माता-पिता बालक के चेहरे की दृढ़ता को एकटक निहारते रहते हैं।
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SC#3b/DAY/OUT/HOME/ASHAPHAK ULLA KHAN

अशफाक अपने घर को एकटक निहार रहे हैं। उनकी आँखें नम हो चली हैं। अब वह वहाँ से वापस चल पड़ते हैं।
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SC#4/DAY/OUT/SHAHEED UDYAN/ASHAPHAK ULLA KHAN

अशफाक उल्ला की रूह अब शहीद पार्क पहुँच चुकी है। वह शहीद स्तंभ और वहाँ लगी मूर्तियों को एक-एक करके स्पर्श करते जाते हैं और मूर्तियों के नीचे लिखे शिलालेखों को देखते जाते हैं। पार्श्व से एक कविता अथवा कोई म्यूजिक का स्वर सुनाई पड़ रहा है।

मिट गया जब मिटनेवाला, फिर सलाम आया तो क्या,
दिल की बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या ।

मिट गईं जब सब उम्मींदें मिट गए सारे ख्याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या ।

ऐ दिले नादान मिट जा अब तो कूए-यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या ।

काश अपनी ज़िंदगी में हम वो मंज़र देखते,
बरसरेतुरबत कोई महशरख़राम आया तो क्या ।

आखिरी शब दीद के क़ाबिल थी बिस्मिल की तड़प,
सुबहेदम कोई अगर बालाए-बाम आया तो क्या ।
-बिस्मिल
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SC#5/DAY/OUT/NAGAR PALIKA PARISHAD/ASHAPHAK ULLA KHAN

अब अशफाक नगरपालिका परिषद के पास लगी शहीद प्रतिमाओं के पास खड़े हुए उन्हें निहार रहे हैं। वह आगे बढ़कर शहीद रोशन सिंह की प्रतिमा के पास जा पहुँचते हैं। रोशन सिंह की प्रतिमा का स्पर्श करते ही उनके जेहन में एक स्वर गूँजने लगता है। 

V.O.
. . . ठाकुर रोशन सिंह को चूँकि धारा 2a के तहत पाँच साल का कठोरतम कारावास पहले ही दिया जा चुका है. . .

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SC#5a/DAY/INT/JAIL/BISMIL, ROSHAN SINGH, DUBALISH, JUDGE AND OTHER

एक अदालत में बिस्मिल, रोशन सिंह, दुबलिश आदि तमाम सारे अभियुक्त बैठे हुए हैं। जज अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ कोई फैसला सुना रहा है।

JUDGE
. . . लेकिन उन्हें इससे भी आगे दोषी पाया गया है. . . वह बमरौली डकैती में डकैती के सरदार थे. . . इस कारण ठाकुर रोशन सिंह को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 396 के अंतर्गत मृत्यु हो जाने तक फाँसी की सजा सुनाई जाती है. . .

जज द्वारा सुनाये गये फैसले पर सभी के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगती हैं। रोशन सिंह एकदम शांत बैठे हैं। पास ही में बिस्मिल भी एकदम शांत बैठे हुए हैं। सभी रोशन सिंह की ओर संवेदनात्मकता के साथ हक्के-बक्के से होकर देखने लगते हैं। रोशन सिंह को जज की पूरी बात समझ में नहीं आती है। वह अपने पास ही में खड़े और उनकी ओर हक्के-बक्के से देख रहे विष्णुशरण दुबलिश से पूछने लगते हैं।

ROSHAN SINGH
(दुबलिश का हाथ पकड़कर अपनी ओर झुकाते हुए) . . . दुबलिश, फाइव इयर्स, फाइव इयर्स के अलावा इसने कुछ और भी तो कहा है ? . . . वह क्या है ?

दुबलिश रोशन को हाथ पकड़कर उठा लेते हैं और उनकी कमर में हाथ डाल देते हैं।

DUBALISH
(मुस्कुराते हुए रोशन सिंह की आँखों में आँखे डालकर) . . . पंडित जी और लाहिड़ी के साथ आपको भी फाँसी मिली है. . .

रोशन सिंह एकदम से उछल पड़ते हैं। पीछे मुड़कर अपने साथियों की ओर देखते हुए कहने लगते हैं।

ROSHAN SINGH
(चेहरे पर उत्साह के भाव के साथ) . . . देखा तुमने . . . फाँसी की सज़ा मुझे भी मिली है. . .

पास बैठे रामप्रसाद बिस्मिल की ओर मुड़कर उन्हें देखने लगते हैं।

ROSHAN SINGH
. . . क्यों पंडित, अकेले ही जाना चाहते थे. . . लेकिन यह ठाकुर कब पीछा छोड़ने वाला है. . . वह हर जगह तुम्हारे साथ रहेगा. . .

बिस्मिल उठकर खड़े हो जाते हैं और रोशन सिंह को अपने गले लगा लेते हैं। उनकी आँखें भर आती हैं।

BISMIL
. . . ईश्वर सबको आप जैसा बड़ा भाई दे. . . आप कुर्बानी में हम सबसे आगे निकल गए. . .


ROSHAN SINGH
(अदालत में बैठे अपने साथियों की ओर पीछे मुड़कर) . . . हमने तो जीवन का आनंद खूब उठा लिया. . . मुझे फाँसी हो जाए तो कोई गम नहीं. . . पर तुम लोगों ने तो अभी जीवन का कुछ भी नहीं देखा है. .
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SC#5b/DAY/OUT/NAGAR PALIKA PARISHAD/ASHAPHAK ULLA KHAN

अशफाक शहीद प्रतिमाओं को निहारने के बाद आगे आर्यसमाज मंदिर की ओर बढ़ने लगते हैं। पार्श्व से रोशन सिंह का एक शे’र सुनाई पड़ने लगता है।

V.O.
जिन्दगी जिन्दादिली को जान ऐ रोशन,
वरना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं।
CUT TO





SC#6/DAY/OUT/AARYA SAMAJ MANDIR/ASHAPHAK ULLA

अशफाक उल्ला की रूह मानवीय शरीर में अपने शहर को देखती हुई चली जा रही है। अब वह आर्य समाज मंदिर के सामने पहुँच चुके हैं। आर्य समाज मंदिर को देखकर उनकी आँखें संवेदना से भर उठती हैं। वह आगे बढ़कर नवीन रूप में सजे हुए आर्य समाज मंदिर की दीवारों का स्पर्श करते हैं। उनके कानों में बिस्मिल के कहे गये शब्द गूँज उठते हैं।

V.O.
. . . मेरे कुछ साथी तुम्हें मुसलमान होने के कारण घृणा की दृष्टि से देखते थे, किन्तु तुम अपने निश्चय पर दृढ़ थे। . . . मेरे साथ आर्य समाज मंदिर में आते-जाते थे।

आर्य समाज मंदिर में कोई हवन चल रहा है। मुख्य गेट से अशफाक अंदर प्रवेश करते हैं। आर्य समाज मंदिर की दीवारों पर बिस्मिल के छायाचित्रों और लेखों को देखते – पढ़ते और उन्हें संवेदनात्मकता के साथ छूते हुए अंदर की ओर आगे बढ़ते हैं।
अब तक अशफाक उस स्थान पर पहुँच जाते हैं, जहाँ पर वह बिस्मिल और अन्य लोगों के साथ बैठा करते थे। तमाम सारी बातों को सोचते-महसूस करते हुए अशफाक के दिमाग में उस समय की कुछ तस्वीरें उभर आती हैं।
अशफाक, बिस्मिल और चार-पाँच अन्य लोग बैठे हुए एक बड़ी थाली में एक साथ भोजन कर रहे हैं। आपस में हँस-बोल रहे हैं। अशफाक उल्ला खाँ की रूह अतीत के सजीव चित्रों के चारो ओर घूम रही है।

V.O.(CON’T)
. . . तुम्हारी इस प्रकार की प्रवृत्ति देखकर बहुदा मित्र-मण्डली में बात छिड़ती कि कहीं मुसलमान पर विश्वास करके धोखा न खाना। . . . तुम्हारी जीत हुई, . . . मुझमें-तुममें कोई भेद न था। . . . बहुदा मैंने-तुमने एक थाली में भोजन किया। . . .

आर्य समाज की दीवारों और वातावरण में रामप्रसाद बिस्मिल को महसूस करते हुए अशफाक बाहर निकल आते हैं।
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SC#7/DAY/OUT/KHIRANI BAAG MOHALLA/ASHAPHAK ULLA, MAN, OLD MAN AND OTHERS

अशफाक उल्ला खाँ कालीबाड़ी मंदिर के सामने खड़े हुए इधर-उधर जायजा ले रहे हैं। बिस्मिल के घर का रास्ता भूल गए हैं। काफी देर अनुमान लगाने के बाद एक नवयुवक को रोककर उससे बिस्मिल के घर का रास्ता पूछते हैं।

ASHAPHAK
. . . अरे भाई सुनए जरा . . .

उस स्थान पर कई व्यक्ति खड़े हैं। एक व्यक्ति अपने ओर का इशारा समझकर इधर-उधर देखने लगता है। जब उसे विश्वास हो जाता है कि उसे ही बुलाया जा रहा है तो वह अशफाक के पास बढ़ आता है।

MAN
. . . जी मैं . . .

ASHAPHAK
(स्वीकृति में सर हिलाते हैं. . . )

व्यक्ति पास आ जाता है।

ASHAPHAK
. . . जी वो पण्डित जी का घर कहाँ है . . .

MAN
(अपने आप से) . . . पण्डित जी. . . यहाँ तो बहुत से पण्डित जी रहते हैं . . .

ASHAPHAK
. . . नहीं. . . वो बिस्मिल जी. . .




MAN
(सोचने लगता है। कुछ याद नहीं आता है।) . . . बिस्मिल जी . . . मेरी समझ में यहाँ कोई बिस्मिल जी नहीं रहते हैं . . .

ASHAPHAK
(हल्के से मुस्कुराते हैं।) . . . नहीं . . . नहीं आप शायद समझे नहीं. . . रहते नहीं हैं . . . रहते थे . . . उन्हें काकोरी-काण्ड के आरोप में 19 दिसम्बर सन् 1927 को अंग्रेजों ने गोरखपुर जेल में फाँसी पर लटका दिया था. . .

MAN
(आश्चर्य से अशफाक का चेहरा निहारता है) . . . तू पागल हो गया है क्या चचा. . . बाबा आदम के ज़माने में मरे हुए आदमी का घर तलाश रहा है. . . जाओ यार इतिहास की किताबों में तलाश करो अपने बिस्मिल के घर का नस्शा. . . (बुदबुदाता हुआ अपने रास्ते चल देता है) . . . सौ साल पहले मरे हुए आदमी का घर तलाश रहा है. . . आज-कल हमारे शहर में पागलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. . .

व्यक्ति चला जाता है। अशफाक उसे निहारते रहते हैं। उनके चेहरे पर संवेदनात्मक परेशानी उभर आती है। पास ही एक चाय की दुकान पर बैठा हुआ कुछ बूढ़ा व्यक्ति अशफाक को काफी देर से निहार रहा है। पहले वाले व्यक्ति के चले जाने के बाद अशफाक के चेहरे की परेशानी को महसूस करते हुए बूढ़ा व्यक्ति अशफाक के पास आ जाता है।
बूढ़े व्यक्ति को अपने पास आया जानकर अशफाक उन्हें सलाम करते हैं। वह भी प्रतिउत्तर देता है।

OLD MAN
(हँसता है) . . . अच्छा आप काकोरी शहीद अशफाक उल्ला खाँ हैं और अपने मित्र काकोरी शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का घर तलाश रहे हैं. . .

ASHAPHAK
(मायूसी भरा चेहरा बनाते हैं) . . . जी . . .

OLD MAN
. . . अच्छा बता देता हूँ. . . पर किसी और से यह मत कहना कि आप काकोरी शहीद अशफाक उल्ला खाँ है और अपने मित्र रामप्रसाद बिस्मिल का घर देखने आए हैं. . .

अशफाक बूढ़े व्यक्ति का चेहरा देखते हुए उसे समझने का प्रयास भर करते हैं।

OLD MAN (CON’T)
. . . वो देखिए सामने जो गली है. . . उसमें जाने के बाद जो तीसरा मकान दिखेगा वही आपके शहीद मित्र का घर था कभी. . .

ASHAPHAK
(आश्चर्य से) . . . कभी. . .

OLD MAN
. . . हाँ कभी. . . अब वो किसी और के पास है. . . तुम्हारे दोस्त के मरने के बाद उनकी माँ को मुफ्लिशी को दौर में उन्हें वह घर और बिस्मिल के तीन सोने के बटन बेचने पड़े. . .

अशफाक कहीं सोच में पड़ जाते हैं। बूढ़ा व्यक्ति उहें हिलाकर उनकी चेतना को वापस लाता है।

OLD MAN (CON’T)
. . . मुफ्लिशी समझते हो. . . कष्ट के दिनों में. . . एक अमर शहीद की माँ ने अपने बेटे की कुर्बानी देने के बाद अपने कष्ट के दिनों में अपने बेटे की यादों को पापी पेट की खातिर बेंच दिया. . . और आज तुम पर और तुम्हारे दोस्त के नाम पर सब्सिडी खाने वाला यह शहर उन्हें अंधी होकर दर-बदर होकर मरते देखता रहा. . . जाओ अशफाक तुम भी देख आओ उन ईंटों को . . .

अशफाक की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह बूढ़े व्यक्ति को संवेदनात्मक आँखों से निहारते हैं।

ASHAPHAK
. . . आप कौन हैं जनाब. . . मैं आपको पहचान नहीं पा रहा हूँ. . . परन्तु आपको अपने हृदय के बहुत पास महसूस कर रहा हूँ. . .

OLD MAN
(हँसता है) . . . मैं. . . मैं हूँ इस शहर की बूढ़ी आत्मा. . . जो तुम्हारी तरह ही इस शहर को निहारने आई है. . . (कहते हुए चला जाता है।)

अशफाक बूढ़े व्यक्ति को जाते हुए देखते रहते हैं जब तक वह उनकी आँखों से ओझल नहीं हो जाता है। इसके बाद अशफाक बूढ़े द्वारा बताई गई एक गली में घुस जाते हैं।
CUT TO





SC#8/DAY/OUT/BISHMIL’S HOUSH/ASHAPHAK ULLA

अशफाक उल्ला एक गली में चारो ओर बने हुए मकानों को देखते हुए चले आ रहे हैं। कुछ पल बाद वह एक मकान के सामने आकर खड़े हो जाते हैं। वह उस मकान को एकटक निहारने लगते हैं। तभी अशफाक के जेहन में एक तस्वीर कौंध जाती है।
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SC#8a/DAY/INT/BISHMIL’S OLD HOUSH/BISMIL AND MOTHER
बिस्मिल तैयार हो रहे हैं। वह अपना कोट पहनते हैं, जिस पर सोने के तीन बटन लगे हुए हैं।
बिस्मिल की माँ एक थाली में चावल बीन रही हैं। बिस्मिल किसी विशेष कार्य के लिए बाहर जा रहे हैं। माँ चावल बीनते हुए बीच-बीच में उन्हें निहारकर बोलती हैं।

BISMIL’S MOTHER
. . . राम ये सोने के बटन तुम्हारे कोट पर खूब फबते हैं. . .

BISMIL
. . . माँ तुम इन्हें अपने पास सम्हालकर रखना. . . मुस्किल दिनों में काम आयेंगे. . . मेरे जीवन का क्या भरोसा. . . कल रहे रहे न रहे. . .
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SC#8b/DAY/OUT/BISHMIL’S HOUSH/ASHAPHAK ULLA
अशफाक आगे बढ़कर मकान का स्पर्श करते हैं। उनके दिमाग में हलचल मच जाती है। हजारों मनुष्यों का शोर उनके मनोमस्तिष्क में गूँजने लगता है।
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SC#8C/DAY/OUT/URDOO BAZAAR-GORAKHPUR/BISMIL’S MOTHER AND OTHER
हजारों मनुष्यों की भीड़ है। एक चबूतरे पर बिस्मिल का शव रखा हुआ है। लोग उत्साह में हैं। वह ‘रामप्रसाद बिस्मिल अमर रहें’ के नारों से वातावरण थर्रा रहे हैं। इसी गूँज के मध्य से कड़कती हुई आवाज में एक स्त्री का स्वर गूँजने लगता है। यह स्त्री स्वर बिस्मिल की माँ का है, जो अपने बेटे के जनाजे में आई भीड़ को संबोधित कर रही है।




BISMIL’S MOTHER
. . . मेरे बेटे ने न केवल मेरी कोख की लाज रखी है, बल्कि आप सबको वह रास्ता दिखाया है, जिस पर चलकर आप एक न एक दिन देश को अवश्य आजाद करा लेंगे।. . . मेरे पास देश को देने के लिए कुछ और नहीं है।. . . हाँ! . . . छोटा बेटा है, जिसे मैं जयदेव कपूर को सौंपती हूँ और उनसे कहती हूँ कि वे इसे भी ऐसा ही बनायें, जैसा कि उसका बड़ा भाई था, वह भी अपने बड़े भाई के पद चिन्हों पर चलकर हँसते-हँसते फाँसी पर झूल जाए, यही मेरी अभिलाषा है।
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SC#8d/DAY/OUT/BISHMIL’S HOUSH/ASHAPHAK ULLA, MAHILA, SHIV VARMA

अशफाक की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह आगे बढ़कर मकान की दहलीज का स्पर्श करते हुए दरवाज खटखटा देते हैं। अंदर से एक महिला निकलती है। अशफाक आगे बढ़कर उसे सलाम करते हैं।

ASHAPHAK
. . . पण्डित जी का घर यही है. . .

MAHILA
. . . कौन पण्डित जी. . . यहाँ कोई पण्डित-बंडित नहीं रहता. . .

ASHAPHAK
. . . नहीं-नहीं आप शायद समझी नहीं. . . मेरा मतलब पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल से है. . . जो काकोरी-काण्ड में शहीद हुये थे. . .

MAHILA
(बिफर पड़ती है।) . . . कौन हैं ये रामप्रसाद. . . जबसे यह मकान लिया है. . . कोई न कोई मुँह उठाये खड़ा ही रहता है. . . जीना दूभर कर दिया है इस रामप्रसाद ने. . . (बड़बड़ाती हुई जोर से दरवाजा बंद कर लेती है)

अशफाक देखते रह जाते हैं। तभी सामने से एक व्यक्ति आता हुआ दिखता है। अशफाक उसकी ओर देखते हैं। वह व्यक्ति आकर अशफाक के पास रुक जाता है। इस व्यक्ति का नाम ‘शिव वर्मा’ है।



SHIV VARMA
(मुस्कुराकर अशफाक की ओर देखते हुए) . . . पण्डित जी के दोस्त अशफाक हो. . . पण्डित जी का घर देखने आये हो. . .

ASHAPHAK
(शिव वर्मा की ओर प्रश्नभरी निगाहों से देखते हैं) . . . जी. . .

SHIV VARMA
(अपने कंधे में पड़े झोले से एक डायरी निकालकर अशफाक को देते हुए) . . . ये लीजिए मेरी डायरी है. . . अंतिम बार जब बिस्मिल की माँ से मिलने आया था. . . तो कुछ लिखा था. . . 23 फरवरी 1946 का पृष्ठ पढ़ लीजिएगा. . . माता जी की अंतिम स्थिति आपके सामने सजीव हो जायेगी. . .

अशफाक शिववर्मा से डायरी ले लेते हैं। शिव वर्मा उन्हें डायरी देकर जाने लगते हैं। जाते-जाते रुककर कुछ कहते हैं और वापस चले जाते हैं।

SHIV VARMA (CON’T)
(जाते हुए पीछे मुड़्कर देखते हैं) . . . और अशफाक. . .

अशफाक जो डायरी देखने लगते हैं। शिव वर्मा की बात पर उनकी ओर देखते हैं।

SHIV VARMA (CON’T)
. . . इस डायरी के बारे में बिस्मिल से कोई जिक्र मत करना . . . और न ही इसमें लिखी उनकी माँ की स्थिति के बारे में कुछ बताना. . .

अशफाक उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हैं। उनकी बात की सहमति में सर हिलाते हैं। शिव वर्मा एक गली में कुछ दूर जाकर गायब हो जाते हैं। अशफाक डायरी के पेज पलटने लगते हैं। कुछ पेज पलटने के बद वह एक पेज पर रुकते हैं, जिस पर लिखा है – 23 फरवरी 1946
अशफाक वह पेज पढ़ने लगते हैं।

ASHAPHAK (V.O.)
. . . अशफाक और बिस्मिल का यह शहर कॉलेज के दिनों में मेरी कल्पना का केन्द्र था। फिर क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य बनने के बाद काकोरी के मुखबिर की तलाश में काफी दिनों तक इसकी धूल छानता रहा था। अस्तु, यहाँ जाने पर पहली इच्छा हुई बिस्मिल की माँ के पैर छूने की। काफी पूछताछ के बाद पता चला। छोटे से मकान की एक कोठरी में दुनिया की आँखों से अलग वीर प्रसविनी जीवन के अंतिम दिन काट रही है. . .
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SC#8e/DAY/INT/ROOM/MOTHER OF BISHMIL AND SHIV VARMA

एक कच्ची कोठरी में एक चारपाई पर एक बूढ़ी औरत लेटी हुई है। उसकी स्थित से लग रहा है कि वह काफी समय से बीमार है। उसकी आँखों की रोशनी नहीं है। कुछ पल बाद एक व्यक्ति शिव वर्मा अंदर आता है। वह बिना कुछ बोले बूढ़ी औरत और कमरे को अपनी संवेदनशील आँखों से निहारता है। बूढ़ी औरत को कमरे में किसी के होने का आभाष होता है। वह कशमशाकर चारपाई पर उठ बैठती है। अपनी बूढ़ी आँखों के अंतश से आगंतुक को महसूस करने का प्रयास करती है। यह बिस्मिल की माँ हैं।

BISHMIL’S MOTHER
(अपने हाथ आगे बढ़ाकर इधर-उधर किसी को खोजने का प्रयास करते हुए) . . . क. . . कौन है. . .

शिव वर्मा कुछ बोलते नहीं हैं। उनकी आँखों में पानी आ चुका है। वह चुपचाप आगे बढ़कर चारपाई के पास नीचे माँ के पैरों के पास बैठ जाते हैं और बड़े ही आहिस्ते से माँ के पैरों पर अपने हाथ रख देते हैं।
माँ अनजाने स्पर्श से चौंक उठती है। उन्हें अपने पैरों के स्पर्श में अपनापन लगता है। उनकी आवाज में माँ का वात्सल्य उमड़ आता है।

BISHMIL’S MOTHER (CON’T)
(हाथ से हवा में टटोलते हुए शिव वर्मा का सर उनके हाथ में आ जाता है। प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए) . . . तुम कौन हो. . . 

शिव वर्मा की आँखों में आँसू हैं। वह माँ के चेहरे को निहारने लगते हैं। काफी प्रयास करने के बावजूद भी उनके मुँह से शब्द नहीं निकलते हैं। 

BISHMIL’S MOTHER (CON’T)
तुम बोलते क्यों नहीं. . . कहाँ से आए हो बेटा . . .

SHIV VARMA
(माँ के हाथ को अपने हाथ में लेकर बड़े प्रयास से) . . . गोरखपुर जेल में अपने साथ किसी को ले गईं थी अपना बेटा बनाकर . . .


BISHMIL’S MOTHER
(शिव वर्मा के हाथ को मजबूती से पकड़कर अपनी ओर खींच लेती हैं और बड़े प्यार से उनके सिर पर हाथ फेरने लगती हैं) . . . तुम वही हो बेटा! . . . कहाँ थे अब तक. . . मैं तो तुम्हें बहुत याद करती रही. . . पर जब तुम्हारा आना एकदम ही बंद हो गया तो समझी कि तुम भी कहीं उसी रास्ते पर चले गए. . .

माँ का दिल भर आया। उनका स्नेह उनकी बूढ़ी और अंधी आँखों से आँसू बनकर बहने लगा। बरसों से थमा सैलाब फूट पड़ा। वह रो पड़ीं। शिव वर्मा ने कुछ आगे बढ़कर उनके हाथ थाम लिए। पास पड़े एक कपड़े से उनके आँसू पोंछे।

SHIV VARMA
(अपने आँसू पोछते हुए) . . . बिस्मिल का छोटा भाई कहाँ है. . .

बिस्मिल की माँ ने अपने आँसुओं को किसी प्रकार रोका था, वह शिव वर्मा के प्रश्न पर वापस बह चले। वह और भी गति से रोने लगीं। उन्हें इस तरह देखकर शिव वर्मा भी रोने लगे। कुछ देर तक दोनों रोते रहे। काफी देर बाद माँ ने अपने आपको सम्हाला। आँसू रुके तो उन्होंने शिव वर्मा से कहना आरम्भ किया।

BISHMIL’S MOTHER
(शून्य में देखते हुए आप बीती सुनाने लगती हैं।) . . . आरम्भ में लोगों ने पुलिस के डर से इस घर में आना छोड़ दिया. . . बिस्मिल के वृद्ध पिता की कोई बंधी हुई आमदनी न थी. . . कुछ साल तक छोटा बेटा बीमार रहा. . . और अंतत: तपेदिक का शिकार बनकर एक दिन वह भी माँ को निपूती छोड़कर चला गया. . . उसके जाने के बाद पिता को कोरी हमदर्दी दिखाने वालों से चिढ़ हो गई. . . इससे वे बेहद चिड़चिड़े हो गए. . . घर का सब कुछ तो बिक ही चुका था. . . अत: फाकों से तंग आकर एक दिन वे भी चले गए. . . पेट में दो दाने डालने ही थे. . . अत: मकान का एक हिस्सा किराये पर उठाने का निश्चय किया. . . लेकिन पुलिस के डर से कोई किरायेदार नहीं आया. . . और जब आया तो पुलिस का ही एक आदमी. . . लोगों को अब भी चैन नहीं था. . . बदनाम करना शुरू किया कि बिस्मिल की माँ का संपर्क तो पुलिस से हो गया है. . .

BACK TO SCENE







SC#8f/DAY/OUT/BISHMIL’S HOUSH/ASHAPHAK ULLA AND SHIV VARMA

अशफाक डायरी पढ़ रहे हैं। उनकी आँखों में आँसुओं की झडी लगी हुई है।

ASHAPHAK (V.O.)
. . . उनकी दुनिया से बचा हुआ प्रकाश भी चल गया. . . पुत्र खोया, लाल खोया, अन्त में बचा हुआ था नाम, सो वह भी चला गया. . .
. . . उनकी आँखों से पानी की धार बहते हुए देखकर मेरे सामने गोरखपुर फाँसी की कोठरी घूम गई. . . तब माँ ने कितनी बहादुरी से बेटे की मृत्यु का सामना किया था. . .

अशफाक बिस्मिल के मकान के बाहर डहलीज के पास जमीन पर बैठे हुए डायरी पढ़ रहे हैं। तभी शिव वर्मा वापस उनके पास आ जाते हैं। अशफाक की आँखों से निकल रहे आँसुओं को देखते हैं। उनके पास बैठ जाते हैं और उनके कंधे पर हाथ रखते हैं। कंधे पर हाथ रखे जाने से अशफाक संवेदनाओं के सैलाब से वापस आ जाते हैं।

SHIV VARMA
पढ़ ली डायरी. . . देख ली माँ की हकीकत. . .

अशफाक गीली आँखों से उन्हें निहारते हैं। शिव वर्मा उनकी आँखों में देखते हुए मकान की दीवार से पीठ टिकाकर बैठ जाते हैं। डायरी अशफाक के हाथों से लेकर अपने झोले में रख लेते हैं और सामने की ओर मुँह करके विचारवान मुद्रा में कहने लगते हैं।

SHIV VARMA (CON’T)
. . . मैं अक्सर सोचता हूँ अशफाक. . . कैसी है यह दुनिया. . . कितने रंग हैं इसके. . . एक ओर ‘बिस्मिल जिंदाबाद’ के नारे और चुनाव में वोट लेने के लिए ‘बिस्मिल द्वार’ का निर्माण और दूसरी ओर उनके घरवालों की परछाईं तक से भागना और उनकी निपूती बेवा माँ पर बदनामी की मार. . . एक ओर शहीद परिवार फण्ड के नाम पर हजारों का चंदा और दूसरी ओर पथ्य और दवा दारू के लिए पैसों के अभाव में बिस्मिल के भाई का टीवी से घुटकर मरना. . . क्या यही है शहीदों का आदर और पूजा. . .
. . . मित्र उस दिन मैं माँ के पास और ज्यादा देर नहीं रुक पाया. . . फिर आऊँगा माँ. . . कहकर चला आया और वापस जाने की हिम्मत न कर सका. . .
FADE OUT





SC#9/DAY-EVNG/OUT/BANK OF RIVER/ASHAPHAK ULLA KHAN AND PANDIT RAMAPRASAD BISMIL
FADE IN
रामप्रसाद बिस्मिल खड़े हुए ढ़लते हुए सूरज को निहारने के साथ-साथ इधर-उधर देख रहे हैं। वह अशफाक उल्ला की राह देख रहे हैं। काफी देर तक राह देखने के बाद बिस्मिल को धुँधले से अशफाक आते हुए दिखते हैं। वह जैसे-जैसे पास आते जाते हैं, उनका चेहरा स्पष्ट होता जाता है। कुछ पल में अशफाक बिस्मिल के पास आ जाते हैं। बिस्मिल आगे बढ़कर उनकी अगवानी करते हैं।
बिस्मिल के चेहरे पर प्रश्नभरी उत्सुकता है और अशफाक के चेहरे पर थकान और उदासी है।

BISMIL
(अशफाक के कंधों को सामने से पकड़ते हुए) . . . देख आए खान. . . हमारा शहर. . . कहाँ-कहाँ गए तुम. . . आर्यसमाज मंदिर गए थे क्या. . . और मजार पर अपनी. . . अच्छा मेरा पुस्तैनी मकान कैसा है इस समय. . .

बिस्मिल एक के बाद एक कई सवाल अशफाक से पूछते हैं। इससे पहले कि अशफाक कुछ बोलें अजान की ध्वनि होने लगती है।

ASHAPHAK
(अपने कंधों से बिस्मिल के हाथों को कुछ हटाते हुए से और अपने चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान लाते हुए) . . . मगरिब की अजान हो गई राम. . . और तुम्हारी संध्या का समय भी. . . मैं नमाज़ पढ़ लूँ. . . तुम भी संध्या कर लो. . . फिर बैठकर इत्मीनान से बातें करते हैं. . .

बिस्मिल अशफाक के कंधों से अपने हाथ हटा लेते हैं। अशफाक के बनावटी चेहरे की गहराई समझने का प्रयास करने लगते हैं। अशफाक वज़ू करने लगते हैं। वज़ू करके एक स्थान पर चारपाई के पास से उठाकर जानसाज बिछाते हैं और उस पर नमाज़ पढ़ने की मुद्रा में बैठ जाते हैं। बिस्मिल उन्हें अब तक निहार रहे हैं।
नमाज पढ़ने बैठ चुके अशफाक पीछे मुड़कर बिस्मिल की ओर एक नजर देखते हैं और कुछ कहकर नमाज़ पढ़ने लगते हैं।

ASHAPHAK (CON’T)
. . . राम . . . आगे कभी मुझे धरती पर जाने को मत कहना . . .

अशफाक नमाज़ पढ़ने लगते हैं और बिस्मिल लोटा उठाकर नदी की धार में प्रवेश करके नहाने लगते हैं।
FADE OUT

V.O.
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरश मेले,
वतन पर मरने वालों का यही आखिर निशां होगा॥

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