नीलगाय पर तीन कविताएँ
नीलगाय
बचपन में पहली बार सुना था उसके बारे में
सुना था कि जंगली होती हैं वह
गाय भी और जंगली भी
एक साथ दोनों
यह एक स्वप्न था
सच्चाई उन्हें जंगली अधिक घोषित करती है
यह मांसाहारे नहीं होती
अर्थात् मलेच्छ नहीं कहलाती
शाकाहारी होती है
एकदम सनातनी
शुद्ध आनाज ही इनका आहार है
समय के साथ इन्होंने अपने को बदला भी है
साहित्य में जैसे जैसे बदलते गए नायक
ठीक वैसे वैसे ही
बदलती गईं यह भी
यह किसी व्यक्ति पर जानलेवा हमला नहीं करतीं
लेकिन जान लेना इनकी फितरत है
दिखती गाय जैसी हैं
लेकिन
काम हमेशा शेर का करती हैं
शेर से भी दो हाथ आगे बढ़कर
इनके जादू से ढेर हो जाते हैं
कई कई जन एक साथ
वास्तव में
नीलगाय
ठाकुर नहीं होती हैं
वह राय साहब होती हैं
नीलगाय-१
नीलगाय कभी भागती नहीं
बस ओझल हो जाती हैं हमारी आंखों से
पूस की ठण्डी रात में
हल्कू को सोया जानकर
निकल आती हैं
अपनी दो गुनी शक्ति के साथ
और रौंदने लगती हैं
हल्कू की आत्मा को
जो ठिठुर रही है
पूस की रात में. . .
जब जब आती है पूस की एक रात
नीलगाय भी वापस आती हैं
और ज्यादा भीड के साथ
और भी ज्यादा सयानी होकर
नीलगाय-२
नीलगाय फिर आ गईं
खेत चरने
हल्कू का
और भी मजबूत होकर
और भी शक्तिशाली होकर
इस बात हल्कू
जाडे से ठिठुरकर
नहीं सोया था
बल्कि पूरे होश ओ हवाश में था
बैक की मदद कूद रही थी
उसके पेट में . . .
शैतान चूहों के माफिक
खुली थीं उसकी दोनों आंखें
टुकुर टुकुर निहार रहा था वह
अपना खेत चर रही
नीलगायों के झुण्ड को
जो गर्वोन्मत्त होकर कुचल रही थीं
हल्कू की आत्मा को
इस बार नीलगायों को भय नहीं था बिलकुल
हल्कू के जगने का
झबरे के भौंकने का
इस बार नीलगायों की पास
ताकत थी सत्ता की
ठसक थी व्यवस्था की
नीलगायें और भी शक्तिशाली हो गईं
हल्कू और झबरे की आत्मशक्ति और अधिक कुचल गई
. . . और देखते ही देखते
नज़र आने लगे अनगिनत मनुष्य शरीर
जिनके चेहरे पर मुखौटा था हल्कू का
ट्ंगे हुए पेडों की डालों पर
फंदों से झूलते इन शरीरों में अब हल्कू की आत्मा नहीं थी
नीलगायों ने कनखी से देखा इनकी ओर
साथी की ओर देखकर मुस्कुराईं
और सीना फुलाए चल दीं
अगले खेत की ओर
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