बुद्धा

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 35
#आजु_रासनु_बटिही_होउ ...

#बुद्धा के साथ मेरी कोई व्यक्तिगत ‘स्मृति’ जुड़ी न होने के बावजूद भी इनका हमारे गाँव में एक अलग ही महत्त्व रहा है । वह हमारे गाँव में ‘संचार’ के प्रमुख साधन के रूप में पहचाने जाते हैं । 

 हमेशा नंगे पाँव और गमछे में रहन वाले #बुद्धा अब कुछ बुढ़ा चले हैं लेकिन इनके कार्य को देखकर कोई इन्हें बूढ़ा न कहेगा । मैंने जबसे होश संभाला तबसे ही #बुद्धा को कुछ इसी अंदाज़ में देखता रहा हूँ । हमेशा खिला-खिला व्यक्तित्त्व । आवाज़ में जोश और बच्चों सा खिलंदड़ापन संजोए बुद्धा हमारी नज़रों में सदा ‘नौजवान’ ही बने रहे । 

 मुझे खूब याद है । गाँव में महेश सिंह बाबा की प्रधानी हुआ करती थी । लगातार तीन बार अर्थात पन्द्रह वर्ष तक प्रधान रहने वाले महेश सिंह बाबा के ये प्रमुख ‘कारकुन’ माने जाते थे । गाँव में कोई सूचना पहुँचा हो या गाँव की कोई बात उन तक पहुँचानी हो, बुद्धा इसमें पारंगत रहे । कोटे पर राशन आ गया हो या गाँव की पूजा के लिए चंदा इकट्ठा करना हो, होली पर धमार के लिए लोगों को इकट्ठा करना हो या किसी अन्य प्रकार की सूचना पूरे गाँव में देनी हो; #बुद्धा बड़ी ही सहजता और उत्साह के साथ सब कर लिया करते थे । गाँव में कोई सभा होनी हो या किसी अन्य प्रकार की व्यवस्था करनी हो; #बुद्धा सबसे तेज़ यहाँ-वहाँ भागते हुए दिख जाया करते थे । 
 
 समय बदला । गाँव की प्रधानी भी बदली लेकिन कुछ नहीं बदला तो बुद्धा का सेवा भाव । वह वैसे ही बने रहे और प्रधान चाहें कोई भी बना हो, वह उसकी सेवा और ‘अर्दली’ के कार्य को पूरी ईमानदारी से निभाते रहे । उनके इस कार्य के चलते गाँव के उग रहे लड़के-बच्चे उन्हें ‘प्रधानों का परमानेंट पी.ए.’ तक कहने लगे । #बुद्धा पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा ।

 #बुद्धा को मैं पूरे साल में एक बार अच्छे और नए कपड़े पहने देखता था । यह अवसर होता था ‘होली’ का । यहाँ इनका उत्साह विशेष रूप से देखने को मिलता था । शराब का नशा इनके उत्साह और मस्ती में चार चाँद लगा देता था । किसी भी प्रधान के यहाँ बैठने पर शराब इन्हें हमेशा से ही सहज रूप में उपलब्ध रही । साथ ही कुछ दस-बीस रुपए भी मिल ही जाया करते थे । 

 मैंने एक बात पर बड़ा गौर किया इनके बारे में सोचते हुए और लोगों से बातचीत के बाद मेरा सोचना विश्वास में भी बदल गया । वह यह कि #बुद्धा ने अपने जीवन में ‘कारकुनी’ केवल क्षत्रिय प्रधानों की ही की । जबकि स्वयं जाति से ‘तेली’ होने के बावजूद भी वह अन्य किसी जाति के प्रधान के यहाँ ‘अर्दली’ बनकर कम ही रहे ।  

 खैर ! कुछ भी सही लेकिन #बुद्धा ने गाँव के लिए जो ‘संचार’ का काम किया, आज वह करने वाला कोई दूसरा न रहा । बुद्धा की जिंदादिली और कर्मठता की मैं तारीफ़ भी करता हूँ और उनके बाद उनका काम संभालने वाला कोई न होने के लिए चिंतित भी हूँ । 

 वास्तव में #बुद्धा जैसे चरित्र अपने सहज और सामान्य रूप हर समाज के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं । ‘अहं’ में चूर होते जा रहे, अलग-थलग होते जा रहे समाज के लिए इनकी बड़ी आवश्यकता है । ये अपने कार्यों से लोगों को आज भी किसी न किसी रूप में जोड़े हुए हैं ।

सुनील मानव
12.05.2020

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