पुस्तक : भारतीय सिनेमा का सफरनामा संकलन एवं संपादन : जयसिंह विधा : समीक्षा प्रकाशक : प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली संस्करण : 2013 मूल्य : रु. 280 (पेपरबैक)
प्रकाशन विभाग से प्रकाशित और जयसिंह द्वारा संपादित यह पुस्तक भी सिने इतिहास की गहन पड़ताल करती हुई जान पड़ती है । ‘अपने सौ साल के सफर में भारतीय सिनेमा जन-जन की धड़कन का साक्षी रहा है । भाषा, क्षेत्र और धर्म-जाति के दायरों को पार करते भारतीय सिनेमा के विस्तार ने मानव मन के हर मनोभाव को समेटा है, अभिव्यक्ति दी है-हर सपने को रूप दिया है । सौ साल के इस दौर में विषय-वस्तु, पटकथा, गीत, संगीत, नृत्य से लेकर तकनीक तक अनेक और अद्भुत प्रयोग हुए हैं । सिनेमा आज कलात्मक अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त और विश्व-व्यापी माध्यम बन गया है । सिनेमा के शताब्दी-विस्तार को समेटती इस पुस्तक में सिने-जगत के शिखर-व्यक्तियों और पत्रकारों की उम्मीदों, विचारों और चिंताओं को समेटा गया है ।’ (इसी पुस्तक से) इस पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह कि इसमें संकलित सामग्री को अधिकांशत: सिनेमाई जगत के लोगों द्वारा ही लिखा गया है । दूसरे यह पुस्तक क्षेत्रीय सिनेमा के विस्तार से अपने वजूद में समेटे हुए है । पुस्तक को मुख्य रूप से पाँच खण्डों में बाँटा गया है । पहले खण्ड में ‘निर्देशकों की नजर से’ सिनेमा को जाँचा-परखा गया है । इस संब