बड़ी अम्मा

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 39
#हाइ_जिज्जी_हमहूँ_कतइ_तुम्हारे_किसी ...

गाँव-गिराँव के सामाजिक रिश्ते बड़े मज़बूत और सहज होते रहे हैं । ऐसे ही रिश्ते की हमारी एक #बड़ी_अम्मा’ हैं । इनके पति #रामलाल_प्रजापति’, अब तो रहे नहीं, हमारे बापू के भाइयों में लगते थे । बापू से चूँकि बड़े थे तो वह हमारे ताऊ हुआ और हम सब उन्हें ‘दउवा’ कहने लगे । आस-पड़ोस घर होने के कारण पारिवारिक दूरियाँ कुछ कम रहीं और उनके घर के सभी सदस्य एक पारिवारिक रिश्ते में बँध गए । ... तो इसी प्रकार से ये हमारी ‘बड़ी अम्मा’ कहलाईं । हमारे बापू-चाचा आदि से बड़ी थी हीं सो सबके #भौजी’ लगती थीं । घर के बाहर #चकरोट’ है । जब भी वहाँ से निकलतीं, बापू-चाचा में से कोई न कोई कुछ मज़ाक कर देता था । वह भी मज़ाक का सालीन उत्तर दे दिया करती थीं । हम इस रिश्ते को हृदय में उतारते चले गए । 

उनका छोटा लड़का #खलोली’ हमारा हमउम्र था, सो साथ-साथ खेलना-कूदना लगा ही रहता था । वह भी हमारे घर के पास पीपल तले खेलता रहता और हम भी उसके ‘दुआरे’ खूब खेला करते थे । 

हमारे मोहल्ले या कहें कि तकरीबन पूरे गाँव में हमारी #जिया’ ही पढ़ी-लिखी थीं । वह अक्सर दोपहर में #रामायण पढ़ा करती थीं । जिया जब भी रामायण पढ़ने बैठतीं, आस-पास की औरतें उनके पास आ जाया करती थीं । इनमें ये बड़ी अम्मा सबसे अधिक नियमित स्रोता थीं । जिया भी उन्हें खूब व्याख्या कर-कर के समझाया करती थीं । बड़ी अम्मा पढ़ी-लिखी नही थीं लेकिन जिया से सुन-सुन कर रामायण के तमाम प्रसंग उन्होंने याद कर लिए थे । जिया उनके लिए आदर्श थीं । इसलिए वह उनका पूरा अनुसरण लिया करती थीं । पूजा-पाठ करना, साफ़-सुथरा रहना, गले में कंठी डालना और शाम को माला जपना । सब कुछ जिया के अनुसरण के अनुसार किया करती थीं बड़ी अम्मा । 

बड़ी अम्मा की एक बात #जिया के #उच्च_कुलीन_सामंती_स्वभाव’ को बड़ी अखरती थी । वह यह कि जिया जब भी कहीं किसी से या सामान्य रूप में कुच कह रही होती थीं तो उसके तुरंत बाद बड़ी अम्मा कह उठती थीं #हाइ_जिज्जी_हमहूँ_कतइ_तुम्हारे_किसी’ । 

जिया का ‘उच्च कुलीन सामंती स्वभाव’ काफ़ी समय तक बड़ी अम्मा की इस आदत को ‘इग्नोर’ करता रहा लेकिन एक दिन उबाल आ गया । उस दिन जिया ने बड़ी अम्मा को खूब गालियाँ दीं । जिया की कुलीनता ने बड़ी अम्मा की छोटी जाति को झकझोर के रख दिया था उस दिन । बड़ी अम्मा ने अपना पक्ष रखने का प्रयास भी किया लेकिन जिया कहाँ सुनने वाली । उनके मुँह में जो आया सो कह गईं । 

बस इसी दिन से इन दोनों गुरु-शिष्यों के बीच एक दरार पड़ गई । आगे चलकर कई बार आपसी लड़ाइयाँ भी हुईं । बाद में फ़िर से बोलचाल हो गई लेकिन पहले सा ‘रिश्ता’ कायम न हुआ । उनके अंदर भी एक प्रकार की भड़ास भर गई थी जो कहीं न कहीं निकलना चाहती थी सो एक दिन उन्हें भी ऐसा मौका मिल गया ।

उनके घर से लगा मेरा एक खेत था । बापू उसमें कुछ काम कर रहे थे तो किसी बात को लेकर बड़ी अम्मा ने उन्हें वो सुनाया कि पूछो मत । फ़िलहल बापू ने तो उन्हें कुछ न कहा लेकिन जिया ने उनकी एक न छोड़ी । यह कुछ ऐसी बाते थीं जो ‘दूरियों’ को बढ़ाती चली गईं । 

समय बीतता गया और बदलाव अपने पैर पसारने लगा । गाँव-गिराँव की सामाजिक और खोखले स्वार्थ के चलते कई बार दोनों परिवारों में मनमुटाव भी देखने में आने लगा जो आगे चलकर एक-आध बार थाने-पुलिस तक जा पहुँचा । रिश्ते की जो एक मज़बूत डोर थी वह टूट गई । आगे चलकर जब रामलाल ‘दउवा’ और कुछ दिनों बाद उनके बड़े बेटे ‘रामनिवास’ की मृत्यु हो गई तो बड़ी अम्मा और उनका घर टूट गया । 

आपसी सद्भव के जिस वातावरण में मैं पल-बढ़ रहा था, धीरे-धीरे आपसी वैमन्स्यता में बदलता चला गया । मैं इस ‘महाकाव्य’ का ‘नैरेटर’ बस इस बदलते हुए वातावरण को देखता, निहारता रहा । समय ने सब कुछ बदलकर रख दिया । कहाँ तो वह समय जब गाँव के लोग रिश्तों की मज़बूत डोर से बंधे होते थे, कहाँ आज कि एक ही परिवार, एक ही घर के लोग ‘बिखर’ गए । 

‘जिया’ और ‘बड़ी अम्मा’ दोनों बूढ़ी हो गई हैं । जिया ‘पैरालिसेस’ अटैक के बाद जहाँ पूरी तरह चारपाई पर पड़ी हुई हैं तो बडी अम्मा की कमर झुक गई है । बावजूद इसके भी वह लकड़ी टेकते हुए अपने घर से हमारे घर तक आ जाती हैं । समय के संघर्ष ने जहाँ दूरियाँ बढ़ाई हैं वहीं इन बुजुर्गों के अंदर की दूरियाँ कम हुई हैं । बड़ी अम्मा जब भी सामने पड़ती हैं तो बचपन के दिन याद कर लेती हैं । ... 

#जिया और #बड़ी_अम्मा के बीच प्रेम भी रहा और संघर्ष भी हुआ । बावजूद इसके ये लोग अपने आस-पास को मज़बूती से बाँधे रहे, लेकिन जैसे-जैसे इनके #बल_थके, हमारा समाज भी कमजोर होता चला गया । वास्तव में #इन_जैसे_चरित्रों_की_आज_बड़ी_आवश्यकता_है ....

... और मुझ जैसा मूक नैरेटर इस बदलाव को महज निहार ही पा रहा है ... कमजोर और असहाय-सा ... 
 
सुनील मानव
16.05.2020

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