बेलामती

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 40
#हाइ_दइया_जइ_का_अइसे_रहइं...

#दिसम्बर_दो_हजार_सत्रह की बात है । मेरा एक शब्दचित्र #बच्चूलाल’ संवदिया पत्रिका में छपा था । मैं घर पर ही था जब मुझे पत्रिका मिली । शाम को मेरे शब्दचित्र के नायक ‘बच्चूलाल’ की पत्नी #बेलामती घर आईं । हम सब इन्हें #बुआ’ कहते हैं । हमने उत्सुकताबस बुआ को पत्रिका दिखाई । पीछे से बहन ने कहा ‘बुआ इसमें फ़ूफ़ा की कहानी छपी है । दादा ने लिखी है ।’ बेलामती बुआ के चेहरे पर स्नेह और कहानी को जानने की उत्सुकता छलक आई । पत्रिका हाथ में ही थी उनके । उलट-पलट के हर पन्ने को देखने लगीं कि पता नहीं किस पन्ने पर ‘उनकी कहानी’ छपी है या पूरी पत्रिका में ही तो नहीं छपी है । बुआ पढ़ नहीं सकती हैं, इसलिए उनके लिए पत्रिका के प्रत्येक शब्द ने #उनकी_कहानी’ (बच्चूलाल) का स्वरूप धारण कर लिया था । मैं काफ़ी देर तक उनकी वह भाव-भंगिमा देखता रहा । इतनी देर में ऐसा लगा न जाने कितनी स्मृतियाँ उनके चेहरे पर आती-जाती रहीं अपने पति को लेकर, जिसे हम समझ नहीं सकते थे । बस हल्का-हल्का महसूस कर रहे थे । कुछ देर में जब वह कुछ सामान्य हुईं । मैंने धीरे से उनके हाथ से पत्रिका लेते हुए कहा कि ‘मैं आपको पढ़कर सुनाता हूँ ।’ 

 मैंने उन्हें पूरा शब्दचित्र पढ़कर सुनाया । उनके चेहरे से लग रहा था जैसे कि वह एक लम्बी यात्रा पर हों । कभी कहीं खो जातीं तो कभी चेहरे पर शृंगारिक मुस्कान आ जाती । कभी ग्लानि का भाव चेहरे पर आ जाता तो कभी सहज मुस्कान भी । कई बार तो ऐसा भी लगा जैसे वह बच्चूलाल को एक नवीन रूप में देख रही हों । एक ऐसे रूप में जिसमें उन्होंने कभी अपने पति को देखा न हो ! ऐसा लग रहा था जैसे कि वह आज बच्चूलाल के एक नवीन स्वरूप से परिचित हो रही हों ! पूरा शब्दचित्र सुनने के बाद अपनी चिर-परिचित मुस्कान और हँसी के साथ बोलीं #हाइ_जइ_का_अइसे_रहइं” । इसके बाद कुछ अधिक न बोलकर बुआ अपने घर चली गईं लेकिन मेरे सामने वह एक प्रश्नचिन्ह छोड़ गई थीं कि “क्या मैं उस संवेदना को अपने शब्दो में पिरो पाया हूँ जो बेलामती बुआ के हृदय में मैंने अभी-अभी देखी हैं ?”

बेलामती बुआ अपने मायके में ही रहती हैं और बच्चूलाल भी अपनी ससुराल में ही रहे थे आकर । इस कारण मैंने कई बार महसूस किया कि बच्चूलाल जी बेलामती बुआ से कुछ दबे-दबे से रहते थे । बुआ काफ़ी तेज-तर्रार भी हैं । इसलिए पति पर पूरा #हुकुमाना’ भी चलाती रहीं । बावजूद इसके बुआ का अपने पति बच्चूलाल के प्रति प्रेम कम नहीं था । बच्चूलाल मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे और बेलामती पुरी तरह से उनकी सहगामी थीं । मिट्टी लाने से लेकर उसको बनाने और बर्तनों को पकाने एवं बाज़ार में बेचने तक में पति की पूर्ण सहयोगी थीं । 

बेलामती और बच्चूलाल के कुछ छह बच्चे हुए । लड़के थोड़े बत्तमीज निकले । कई बार उनके लड़कों द्वारा बच्चूलाल को गालियाँ देते देखा था मैंने । इस अवसर पर बेलामती पति के आगे खड़ी होकर लड़कों को खूब गरियाती’ थीं । मजाल क्या किसी की हिम्मत होती हो एक भी और बात कहने की । 

बेलामती बुआ का यह तेज-तर्रार रूप गाँव में आस-पड़ोसियों के साथ भी कई बार देखा था मैंने लेकिन बेलामती बुआ का हृदय इतना सहज था कि जरा-जरा सी बात पर वह बच्चों की भाँति खिलखिलाकर हँस पड़ती थीं । ... और मज़े की बात यह कि थोड़ी सी बीमारी आने पर उनके हृदय में ‘मौत’ का भय सवार हो जाता था और खूब रोने लगती थीं । बेलामती की इस आदत को लेकर घर-परिवार के बच्चे उन्हें खूब चिढ़ा लिया करते हैं आज भी । 

बेलामती बुआ की सबसे बड़ी विशेषता है उनके गीत । घर-परिवार से लेकर गाँव-गिराँव तक कहीं भी, कोई भी मांगलिक अवसर हो और बुआ गीत न गाएं, ऐसा कहाँ संभव है । किसी बच्चे का जन्म या जन्मदिन हो तो आप उनसे #सोहर, #सरियाँ सुनिए । किसी की शादी-ब्याह हो तो विभिन्न रिवाजों पर बेलामती बुआ के गाए #गीत, #भजन, #छंद, #बन्ना, #बन्नी, #गारी, #मिढरा, #भात, #कलेवा, #ज्यौनार आदि गीतों के बिना कार्य मांगलिक लगता ही नहीं है । सावन में हिंडोला भी उन्हें कई बार हमने गाते सुना था और #चकिया’ पर #गेहूँ, #दाल, #चने आदि पीसते समय के गीत अलग । पुरुषों की भजन मंडली और धमार आदि के भी न जाने कितने गीत उन्हें सस्वर कंठस्थ हैं । अवसर कोई भी हो बेलामती बुआ पूरी तनमयता से गाती रही हैं । 

आज इन गीतों में काफ़ी परिवर्तन भी देख रहा हूँ । उनकी अपनी बोली-बानी कन्नौजी के गीतों में अब खड़ी बोली के शब्द और प्रवाह भी आने लगा है । यह बदलते परिवेश और आधुनिकताओं की संगत का भी असर कहा जा सकता है । एक बात जो मैं पूरे जोर के साथ कहना चाहता हूँ कि बेलामती आज पूरे गाँव में करीब-करीब अकेली ही हैं जो इन गीतों को अपने ही स्वरूप में संभाले हुए हैं । इनके बाद यह संस्कृति समाप्त ही है । 

अभी एक दिन मैंने उन्हें घर बुलवाकर कहा कि ‘बुआ #मिढरा गीत सुनाओ’ तो बुआ ऐसे लजा गईं जैसे ‘किसी नवयौवना को किसी नवयुवक ने शृंगारिक भाव से छेड़ दिया हो !’ ऐसा इस कारण था कि मिढरा गीत कुछ अश्लील शब्दावली को अपने में संजोए होते हैं और यह गीत शादी वाली घर में लड़का या लड़की के कमरे के बाहर #भुरहरे_भुरहरे’ ही गाए जाते हैं जब आस-पास कोई अन्य पुरुष न हो । इसका अपना एक विशेष मनोविज्ञान है । सीमा ने मेरी ओर संकेत किया तो मैं समझा और बाद में बुआ ने सरमाते हुए ही सीमा के सामने वह गीत गाया जो सीमा ने रिकार्ड करके बाद में मुझे सुनाया । 

वर्तमान में बेलामती बुआ अपने छोटे लड़के आसाराम के साथ रहती हैं । खेत-पात से लेकर गाय-गोरू तक और लड़के-बच्चों का सरा काम बुआ बड़ी प्रसन्नता के साथ करती हैं । इसके अतिरिक्त गाँव के पूर्व-माध्यमिक विद्यालय में रसोइया भी हैं तो वह ड्यूटी अलग से । 

फ़िलहाल तो बुआ के पास खाने-पीने की कोई कमी नहीं है बावजुद इसके कोई चीज कहीं से फ़्री में मिल जाए तो अन्य ग्रामीणों की ही भाँति इनकी भी बाँछें खिल जाती हैं । कल की ही बात है । गाँव में कहीं गई होंगी तो राशन की दुकान पर चावल और चना बँट रहा था । फ़्री में । अपनी धोती के ही पल्लू में ले आईं । मैं सामने पड़ गया तो दिखाने लगीं । वही चिरपरिचित खिलखिलाहट के साथ बोलीं #लल्ला_अइसेइ_मिलि_गे_आजु_ता ....’  

सुनील मानव
16.05.2020

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