महतइन

#जानिए_मेरे_गाँव_जगतियापुर_को : 34
#जबसे_भोले_बाबाकि_सरणम_आईं_तबसे_कलिया_अरु_पउवा_छोड़ि_दो  ....

गाँव-गिराँव में अधिकांश लोगों के नाम विस्मृत ही रहते हैं । उन्हें बस सामाजिक रिश्तों या उनके एक विशेष नाम से ही अधिक जाना-पहचाना जाता रहा है । इसी क्रम में हमारे गाँव की #महतइन’ का नाम विशेष रूप से मेरे सामने आता है । इनके पति को गाँव में सभी #महतिया कहकर पुकारते हैं और उनकी पत्नी होने के नाते इनका नामकरण #महतइन के रूप में प्रचलित हुआ । 

 #महतइन गाँव में अधिकाँश हमउम्रों की ‘भौजी’ लगती हैं । इस कारण गाँव भरके अधिकाँश लोग उनसे हास-परिहास करते रहते हैं । #महतइन अपने पति #महतिया की भाँति अधिक सीधी नही हैं । वह तेज़-तर्रार हैं । क्या मज़ाल कि कोई उनका अहित कर सके । अपने पर आ जाएँ तो ऐसी की तैसी कर दें सबकी । उनके इसी स्वभाव से जुड़ी दो बातें दिल में समा गईं । 

 गाँव में चुनाव का वातावरण था । कई प्रत्यासी आमने-सामने थे । #महतइन वोट डालने गईं तो किसी देवर लगने वाले ने चुहल करते हुए कह दिया कि ‘उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है । किसी ने कटवा दिया ।’ फ़िर क्या था । महतइन ने पूरे गाँव में हंगामा काट दिया । ऐसी-ऐसी गालियाँ देने लगीं कि पुरुष तक दाँतों तले अँगुलियाँ दबा गए । संभवत: पहली बार था कि मैं ‘गालियों’ में लोकतंत्र देख रहा था । स्त्री और पुरुष की समानता लिए हुए वो गालियाँ आज भी विस्मृत नही हुई हैं । 

 तब किसी ने आकर उन्हें बताया कि ‘लड़के ने आपसे चुहल की है । तुम्हारा नाम है वोटर लिस्ट में ।’ उत्साह से भर गई #महतइन स्कूल की ओर ऐसे भागीं कि अब कोई उनका नाम कटवा न दे । गालियाँ, जो अब तक क्रोध से सिंचित थी, उत्साह और प्रेम का पर्याय बन गईं । ऐसे में नुक्सान उस प्रत्यासी के एक वोट का हुआ जिसके पक्षधर लड़के ने उनसे चुहल की थी । अब #महतइन दूसरे प्रत्यासी को खुला वोट डाल आई थीं और सब ठगे से देखते रह गए । 

 समय बीतता रहा । क्षेत्र में एक नए ‘भगवान’ का अवतार हुआ । समाज में उन्हें ‘भोलेबाबा’ के नाम से जाना गया । अनगिनत भगतों के बीच महतइन ने भी उनसे कान फ़ुकवा लिए । ‘भोलेबाबा’ ने उनको सामाजिक समानता का मंत्र दिया और #महतइन ने उसे आत्मा में उतार लिया । अब वह अधिक साफ़-सुथरी रहने लगी थीं । पैर छूने के वजाय हाथ जोड़कर ‘नमस्कार’ करने लगी थीं और अन्य साथी महिलाओं के साथ ‘भोलेबाबा’ के सत्संग के बहाने गाँव की सीमा से बाहर की स्वच्छंदता से मिलने लगी थीं । अब वह अपन नया वजूद भी गढ़ने लगी थीं । यह एक बड़ा बदलाव था #महतइन में जो मुझे बहुत बाद में एक दिन दिख गया ।

 मैं कहीं बाहर से आया था । रेलवे लाइन के किनारे पैदल ही घर की ओर अपने ख्यालों में खोया चला आ रहा था । सामने कुछ महिलाएँ आपस में बातें करती चली जा रही थीं । मेरी चाल तेज़ थी सो मैं उनके कुछ नज़दीक जा पहुँचा । महिलाएँ मेरे ही गाँव की थीं । साथ में #महतइन भी । सब ‘भोलेबाबा’ के किसी सत्संग से वापस आ रही थीं । मेरे कानों में #महतइन की आवाज़ स्पष्ट सुनाई दी । वह कह रही थीं ‘‘#बहिनी_जबसे_हम_भोलेबाबाकि_सरनम_आईं_तबसे_हमने_आजुलि_कलिया_नाइं_खाओ_पहिलेता_रोजु_रातिम_एक_पउवा_जब_तक नाइं पी लीती रहइं तलेल नींदइ नाइं आउति रहइ ... अबता पउवा पिए सालु भरिसे उपरइ हुइ गो हइ ... अबता मनउं नाइं कत्ति ...’’

 मैं तेज़ कदमों से आगे निकला । उन सबसे राम-जुहार हुई । मैं आगे निकल गया और वह मंद गति से चलते हुए ‘भोलेबाबा’ का एक भजन गाने लगीं ‘हम तो सरनि तुम्हारे आई सतगुरु ... राखो लाज हमारी हो सतगुरु ....’ 

 वास्तव में मैं आज #महतइन और उनके साथ की महिलाओं में एक बड़ा सामाजिक बदलाव देख रहा था । 

सुनील मानव
11.05.2020

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