राजिंदर चच्चा

#जानिए मेरे गाँव जगतियापुर को : 46 #अम्मा_हो_बउ_आओ_हइ_पंडितकु_लउड़ा रजिन्दरा उर्फ़ राजेन्द्र प्रसाद वाल्मीकि । बोलें तो ‘गंठी दादी’ का बड़ा लड़का । वही ‘गंठी दादी’ जो मेरी किताब ‘गंठी भंगिनियां’ की नायक हैं । दादी की बात हो और उसमें ‘राजिन्दर चच्चा’ का जिक्र न आए तो बात पूरी न होगी । जिस दर्द को दादी ने जीवन भर झेला, ‘राजिन्दर चच्चा’ ने भी उससे छुटकारा पाने का कोई खास प्रयास न किया । उन्होंने अपनी माँ और पिता की परंपरा को बनाए रखा । कुछ उच्चकुलीन दबंगों के सामाजिक दबाव से और कुछ सदियों से चली आ रही गुलामी के वशीभूत होकर । अच्छी बात यह कि ‘राजिन्दर चच्चा’ का लड़क नई राह पर चलने का प्रयास कर रहा है । देखकर प्रसन्नता होती है । ... तो बात होती ‘राजिन्दर चच्चा’ पर । ‘राजिन्दर चच्चा’ की उम्र इस समय यही कोई पैंतालिस से पचास के बीच हो रही होगी । इसके साथ ही जातीय असमानता के चलते भी हमारे बीच कोई खास प्रकार का मैत्री संबंध न रहा । हाँ ! दादी के साथ कई बार इन्हें देखा करता था । दादी जब गाँव के घरो में ‘जूठन’ माँगने आती थीं तो उनके तीनों लड़के उनके साथ आते थे कभी-कभी । बाद में एक लड़के की मृत्यु हो...