भंवरा बड़ा नादान हो ...


भंवरा एक छोटा लेकिन शक्तिशाली कीट है, जिसकी पहचान उसकी काली-पीली धारियों से की जाती है। यह मधुमक्खी की तरह दिखता है, परंतु इसका स्वभाव अलग है। भंवरे की सबसे बड़ी आदत फूलों का रस चूसना है, जिससे यह पौधों के परागण में मदद करता है। यह दिन में सक्रिय होता है और मीठी खुशबू की ओर आकर्षित होता है। अपनी पंखों की तेज़ी से कंपन करने की क्षमता से यह लंबी दूरी तक उड़ने में सक्षम होता है।

भंवरे प्राय: छोटे समूहों में रहते हैं और ज़्यादातर फूलों के इर्द-गिर्द अपना समय बिताते हैं। इनके घोंसले जमीन के नीचे या पेड़ों में होते हैं। भंवरे अपने मधुर गीतों से वातावरण में संगीतमय ध्वनि पैदा करते हैं।

हिंदी साहित्य में भंवरा एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसे प्रेम, वफादारी, और स्वच्छंदता का प्रतीक माना जाता है। भंवरे की तुलना अक्सर प्रेमी से की जाती है, जो अपनी प्रिय की ओर आकर्षित होता है। प्रसिद्ध कवि कालिदास से लेकर आधुनिक कवियों तक भंवरे का उल्लेख उनके काव्यों में देखने को मिलता है, जो उसके मधुर गुणों और स्वाभाविक सौंदर्य को दर्शाता है।

हिंदी साहित्य में भंवरे का प्रतीकात्मक प्रयोग भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है। विशेष रूप से भक्ति साहित्य में भंवरे को प्रेम, भक्ति और अनुराग के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। भंवरा स्वभाव से चंचल और रसिक होता है, और इसका यह गुण कवियों को मानवीय भावनाओं, विशेष रूप से प्रेम और भक्ति को व्यक्त करने के लिए आकर्षित करता है।

सूरदास जैसे भक्तिकालीन कवियों ने भंवरे को श्रीकृष्ण की भक्ति में तल्लीनता के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया है। सूरदास की काव्य रचनाओं में गोपियों और श्रीकृष्ण के प्रेम का चित्रण करते हुए भंवरे का बिंब उनके संवादों में अक्सर देखने को मिलता है। भंवरा गोपियों के कृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाने वाला प्रतीक है, जो सदा-सर्वदा कृष्ण के चरणों का रसपान करता है।

इसके अलावा, भंवरे को जीवन के अस्थिर और चंचल स्वभाव का प्रतीक भी माना जाता है। वह विभिन्न फूलों पर मंडराते हुए मानो यह दर्शाता है कि यह संसार क्षणभंगुर और अस्थिर है, और स्थायी केवल ईश्वर की भक्ति और प्रेम है। हिंदी साहित्य के कई कवियों ने इस प्रतीक के माध्यम से संसार की नश्वरता और ईश्वर की अनंतता को चित्रित किया है।

सुनील मानव 

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