अहिच्छत्र : इतिहास की छत पर वर्तमान की चहलकदमी
अहिच्छत्र की यात्रा का अनुभव मेरे जीवन की उन स्मृतियों में से एक है, जो इतिहास की परतों को छूने का अवसर प्रदान करता है। बरेली के आंवला स्टेशन से उत्तर दिशा में कोई 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल, सदियों पुराने वैभव, ऐश्वर्य और उल्लास की कहानियां सुनाता है। जब मैं वहां पहुंचा, तो पहले पहल जो दृष्टिगोचर हुआ, वह थे खंडहरों के अवशेष—मानो एक युग जो अब इतिहास की किताबों तक सिमट चुका है, अपनी कहानी कहने को व्याकुल हो।
अहिच्छत्र, जो महाभारतकालीन पांचाल राज्य की राजधानी था, का नाम सुनते ही मस्तिष्क में द्रौपदी का चित्र उभर आता है। मान्यता है कि द्रौपदी यहीं पैदा हुई थीं, और इसी भूमि ने उनके गौरवशाली जीवन का आरंभ देखा। यहां के किले, जो आज जर्जर स्थिति में हैं, कभी महाभारत के नायकों के कदमों की गवाह रहे होंगे। मुझे बताया गया कि यह किला पांडवकालीन किला कहलाता है, क्योंकि कौरवों और पांडवों का यहां अधिकार था।
जैन अनुयायियों के लिए अहिच्छत्र विशेष महत्व रखता है। यहां 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अहिच्छत्र का यह पहलू मेरे लिए एक नया और अद्वितीय अनुभव था, क्योंकि इसने इस नगर के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को और अधिक स्पष्ट किया।
यहां की गलियों और खंडहरों में घूमते हुए, मेरे सामने इतिहास के अनेक रूप उभरते गए। नगर का व्यावसायिक और सांस्कृतिक वैभव उस समय अपने चरम पर था। ह्वेनसांग ने भी अहिच्छत्र के समृद्धशाली नगर का उल्लेख किया है, और जब मैंने उसकी वर्णन की पंक्तियां यहां के खंडहरों से मिलाई, तो एक भव्य चित्र उभर आया।
अहिच्छत्र के अवशेषों में घूमते हुए मैंने वह स्थान भी देखा जिसे 'भीम की गदा' कहा जाता है। यद्यपि यह वस्तु आकार में गदा जैसी नहीं दिखती, परंतु यहां के लोगों में यह मान्यता प्रचलित है। कनिंघम ने इसे शिवलिंग का विखंडित रूप बताया है। यह स्थल किवदंतियों और लोककथाओं से भरा हुआ है, जैसे 'पिसनारी का छत्तर', जो पांडवों की सेवा करने वाली दासियों से जुड़ी एक प्राचीन कथा को जीवंत करता है।
यहां की खुदाइयों में मिली वस्तुएं—मृण्मूर्तियां, पाषाण मूर्तियां, मुद्राएं और ताम्रपत्र—यह सिद्ध करती हैं कि अहिच्छत्र न केवल एक नगर था, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र भी था। आज ये सभी धरोहरें देश के प्रमुख संग्रहालयों में संग्रहीत हैं, परंतु इन खंडहरों को देखकर मैं यह सोचने पर विवश हो गया कि कैसे एक समृद्ध नगर आज केवल मूक साक्षी रह गया है।
अहिच्छत्र की यात्रा न केवल एक ऐतिहासिक स्थल का दौरा थी, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव था जिसने मुझे अतीत की गहराइयों में झांकने और उस युग की समृद्धि का एहसास कराने का अवसर दिया।
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