आंचलिक उपन्यास की अवधारणा और मैला आंचल
आं चलिक उपन्यास की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डा० रामदरश मिश्र कहते हैं कि –“जैसे नई कविता ने सच्चाई से भोगे हुए, अनुभव की भट्टी में तपे हुए पलों को व्यंजित करने में ही कविता की सुन्दरता देखी, वैसे ही उपन्यासों के क्षेत्र में आंचलिक उपन्यासों ने अनुभवहीन सामान्य या विराट के पीछे न दौड़कर अनुभव की सीमा में आने वाले अंचल-विशेष को उपन्यास का क्षेत्र बनाया । आंचलिक उपन्यासकार जनपद-विशेष के बीच जिया होता है या कम से कम समीपी दृष्टा होता है । वह विश्वास के साथ वहां के पात्रों, वहां की समस्याओं, वहां के संबंद्धों, वहां के प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश के समग्र रूपों, परंपराओं और प्रगतिओं को अंकित कर सकता है क्योंकि उसने उसे अनुभूति में उतारा है । आंचलिक उपन्यास लिखना मानों हृदय में किसी प्रदेश की कसमसाती हुई जीवनानुभूति को वाणी देने का अनिवार्य प्रयास है । आंचलिक कथाकार को युग के जटिल जीवन बोध का नहीं, इसीलिए वह आज भी पिछड़ हुए जनपदों के सरल, निश्छल जीवन की ओर भागने में सुगमता अनुभव करता है, ऐसा कहना असत्य होगा ।” १ वस्तुत: हिन्दी उपन्यास ...
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