‘वॉइट टाइगर’ की तलाश तो महज उस रोमांचक सफर का प्रेरणा बिन्दु बना, असल किस्सा तो पिछले सात-आठ सालों से पक रहा था । अचानक प्रोग्राम बना और हम निकल पड़े । बात उन दिनों की है जब मैं शाहजहाँपुर में रहता था । पोस्टग्रेजुएट के समय जब शाहजहाँपुर के रंगमंच पर किताब लिखने का कार्य आरम्भ किया तो सामग्री और बिखरे पड़े इतिहास की खोज के दौरान मेरी मुलाकात डॉ. प्रशांत अग्निहोत्री से हुई । वह शाहजहाँपुर के ही दूसरे महाविद्यालय ‘स्वामी सुकदेवानंद महाविद्यालय’ में असिस्टेंट प्रोफेसर थे । पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि वाले डॉ. प्रशांत से ज्यों-ज्यों मुलाकातें बढ़ती गईं, हमारे बीच एक रिस्ता बनता गया । उनकी रुचि गीत लेखन के साथ-साथ क्षेत्रीय इतिहास में खूब थी, जो मेरे रिस्ते की मज़बूत कड़ी बनी । हम कई बार क्षेत्र के सुदृढ़ इतिहास पर खूब देर तक बातें करते थे । इसी सिलसिले में एक बार मेरा उनसे जिक्र हुआ कि ‘मेरे घर के पास में एक स्थान है ‘माती’, जो ऐतिहासिक राजा बेन के नाम पर विख्यात है ।’ उनको पहले से इस स्थान की कुछ-कुछ जानकारी थी । जब उन्होंने मुझे उस क्षेत्र के पास का रहने वाला समझा तो उनकी वहाँ जाने की उत्सुकता ...