कथा एक कंस की
बहुत दिनों बाद एक शानदार रंगमंच प्रस्तुति देखने को मिली । स्थान था – ऋद्धिमा ऑडीटोरियम और प्रस्तुति थी – एकलव्य देहरादून की ‘कथा एक कंस की’ । शाहजहांपुर से निकलने के बाद बंगाल में कुछ प्रस्तुतियां देखीं । उसके बाद दिल्ली एन एस डी में । बरेली में इतने दिनों से होने के बावजूद भी रंगमंच की यह मेरी पहली प्रस्तुति थी, जो मैंने आज देखी । देहरादून की एकलव्य संस्था, जिसके निर्देशक अखिलेश अलकाज़ी को ‘शाहजहांपुर रंग महोत्सव’ के बाद यहां पर देखना बेहद सुखद अनुभव रहा । उनकी अदाकारी ने नाटक के कथ्य के साथ जो तालमेल बनाया है, वह अद्भुत था । नाटक ने पूरे समय बांधे रखा । यह अच्छे कलाकारों की काबिलियत होती है । ‘कथा एक कंस की’ नाटक मनोवैज्ञानिक ढंग का है । पौराणिक मिथकीय पात्रों को आधुनिक मनोविज्ञान की चासनी में साना गया है । एक विशेष प्रकार का मिथ बन चुके पात्र कंस को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बेहद सुंदरता के साथ व्याख्यायित किया गया है । कहानी कंस के बाल रूप की है जहां पर उसके पिता उसको मजबूत पुरुष बनाना चाहते हैं । कंस के पिता में पुरुषोचित अहंकार है और बालक कंस में स्त्रियोचित करुणा ।...