'एक था मोहन' को पढते हुए - सुनील

वर्तमान में गाँधी को महशूस करना बड़ा जोखिम भरा काम है । बावजूद इसके मुझे वर्ष 2017 की कुछ बेहतरीन किताबों में ‘एक था मोहन’ लगी । प्रासंगिक और मनोवैज्ञानिक किताब, क्योंकि यह क...
सामान्य रूप से पढना और लिखना पसंद है । शाहजहाँपुर के रंगमंच पर एक किताब ‘छोटे शहर का बड़ा रंगमंच’ प्रकाशित होने के बाद इसी वर्ष (2019) में मेरी दो महत्त्वाकांक्षी पुस्तकें ‘गंठी भंगिनियाँ’ एवं ‘ईश्वरी दउवा की पोर’ प्रकाशित हो चुकी है । इनके अतिरिक्त ‘फ़ागुनवा बीते जाइं’ (कन्नौजी के धमार एवं लोकगीत) तथा ‘बालकविता समीक्षा’ प्रकाशनाधीन हैं । समसामयिक विषयों के साथ गाँव - गिरांव से जुडे मुद्धों पर रचनात्मक लेखन । बस अपनी ज़मी को रचने की जद्दोजहद है । और कुछ नहीं ।