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Showing posts from November, 2016

एक बच्चे के प्रति ...

वह खड़ा था सेतु पर किशोरावस्था की बचपन से अछूता नहीं था बस बढ़ रहा था धीरे-धीरे माँ-बाप से अलग छात्रावास में रहते हुए अध्यापक ही थे उसके अभिवावक उसको ऐसा ही बताया गया थ...

प्रसिद्ध कथाकार हृदयेश जी से कुछ गुप्तगू

सुनील ‘मानव’ : कहानी में राजनीति की कहाँ तक गुंजाइश है? क्या यह कहानी के लिए घातक है? हृदयेश : देखिये राजनीति में तो बहुत सी विचारधारायें हैं। जहाँ तक कि एक विचारतत्त्व की ब...