क्रांतिबीज सुधीर विद्यार्थी से कुछ बातचीत
सुनील ‘मानव’ : क्रांतिकारी लेखन से आपका जुड़ाव कब, क्यों और किस रूप में हुआ? भारतीय साहित्य-विमर्श में जहाँ पाब्लो नेरूदा, नेल्शन मंडेला, एन्गेल्स इत्यादि को नायक के रूप मे...
सामान्य रूप से पढना और लिखना पसंद है । शाहजहाँपुर के रंगमंच पर एक किताब ‘छोटे शहर का बड़ा रंगमंच’ प्रकाशित होने के बाद इसी वर्ष (2019) में मेरी दो महत्त्वाकांक्षी पुस्तकें ‘गंठी भंगिनियाँ’ एवं ‘ईश्वरी दउवा की पोर’ प्रकाशित हो चुकी है । इनके अतिरिक्त ‘फ़ागुनवा बीते जाइं’ (कन्नौजी के धमार एवं लोकगीत) तथा ‘बालकविता समीक्षा’ प्रकाशनाधीन हैं । समसामयिक विषयों के साथ गाँव - गिरांव से जुडे मुद्धों पर रचनात्मक लेखन । बस अपनी ज़मी को रचने की जद्दोजहद है । और कुछ नहीं ।