छोटे शहर की समस्याएं और शाहजहाँपुर का रंगमंच सुनील ‘मानव’
छो टे शहरों की सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक व बौद्धिक स्तर पर अनेक समस्याएं होती हैं। यह एक ऐसा संक्रमण कालीन समाज होता है , जहाँ कस्बाई प्रवृत्तियाँ पूरी तरह से छूटती नही हैं और महानगरीय प्रवृतियाँ पूरी तरह से अस्तित्व में आ नहीं पाती। इसका चरित्र अन्तर्विरोधात्मक होता है। नए मूल्य स्थापित नहीं हो पाते और पुराने मूल्य छूट नहीं पाते। प्रगति और परम्परा के बीच बनता-बिगड़ता संतुलन इसे एक ऐसा चरित्र प्रदान करता है , जो सामान्य संकल्पना से बिल्कुल भिन्न होता है। बाज़ार और विज्ञापनवादी संस्कृति के प्रभाव ने इसकी प्रवृतियों को और उलझा दिया है। भूमण्डलीकरण और प्रछन्न आर्थिक उपनिवेशवाद ने छोटे शहरों के चरित्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। कुल मिलाकर तमाम तरह के सामाजिक - आर्थिक दवाबों से छोटे शहरों का स्वरूप विशिष्ट और जटिल हो जाता है। छोटे शहरों का समाज संक्रमणकालीन होता है। इसका निर्माण तमाम तरह की विरोधी प्रवृतियों से होता है। शिक्षा , स्वास्थ तथा रोजगार का स्तर जहाँ एक ओर प्रगति की सूचना देता है , वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास , आर्थिक असमानता तथा तीव्र जनसंख्या वृद्धि इसके विकास की अवरुद्धता क...